एक फकीर ने छुड़ाए थें अंग्रेजों के छक्के

saint-had-created-problem-to-britishलखनऊ। गदर के दौरान स्वतंत्रता का पैरोकार एक फकीर भी था, जिसने घूम-घूमकर अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन को धार दी। लखनऊ में गदर की शुरुआत से लेकर अंत तक वह अंग्रेजों के दांत खंट्टे करता रहा। लोगों के बीच वह कई नामों से प्रसिद्ध था, हालांकि गदर के लड़ाके इस योद्धा को मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नाम से जानते थे। उसकी बहुआयामी शख्सियत के बारे में जीबी मैलेसन ने लिखा है, ‘मौलवी एक असाधारण व्यक्ति थे। वह लंबा, दुबला-पतला, कसरती बदन, बड़ी-बड़ी गहरी आंखें, पान के आकार की भौंहें, उभरी नुकीली नाक तथा लालटेनी जबड़े का स्वामी था।’

‘1857 का महान विद्रोह और मौलवी अहमद उल्लाह शाह’ की लेखिका डॉ. रश्मि कुमारी बताती हैं, क्रांति के समय मौलवी अहमद उल्लाह शाह की उम्र 39 या 40 साल थी। युवावस्था में फकीरी से प्रभावित होकर वह अपने साथ 10-15 आदमी लेकर 1856 के मध्य में उत्तरी भारत के भ्रमण पर निकल पड़े थे। यात्रा के दौरान उन्होंने भारतीय जनसमूह को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होने का आह्वान किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अनेक पुस्तकें तथा पर्चे लिखे थे, जो गुप्त रूप से मुद्रित कर व प्रकाशित वितरित किए गए।

कुछ ही महीनों में वह इतने लोकप्रिय हो गए कि उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ एकत्रित हो जाती थी। नगर में 30 मई को गदर की शुरुआत के पहले मौलवी फैजाबाद में थे। वहां से छूटने के बाद वह 30 जून को अपने दस्ते के साथ राजधानी पहुंचे। चिनहट के युद्ध में अंग्रेजी सेनाएं मौलवी और उसके सैनिकों की वीरता के सामने टिक न सकीं और उन्हें उल्टे पांव वापस शहर की ओर भागना पड़ा। ‘कैसरूत्तवारीख’ के लेखक ने लिखा है, ‘मौलवी बड़े साहस और वीरता के साथ लड़े, तभी अंग्रेजों को बेलीगारद के अंदर खदेड़ा जा सका।’ एक जुलाई को मौलवी ने मच्छी भवन पर आक्रमण किया। भीषण गोलाबारी हुई। जब अंग्रेजों पर सभी दांव उल्टे पड़ने लगे तो लेफ्टिनेंट थॉमस ने मच्छी भवन खाली कर उसे बारूद से उड़ा दिया और बेलीगारद में शरण ली।

मौलवी ने इसके बाद भी आक्रमण की कोई कसर नहीं उठा रखी। दो जुलाई व 16 जुलाई को बेलीगारद पर आक्रमण, फैजाबाद का युद्ध और अन्य युद्धों में क्रांतिकारियों को मिली सफलता मौलवी की रणनीति की ही देन थी। राजधानी में गदर खत्म होने के बाद वह शाहजहांपुर चला गया और वहां उसने गदर में महती भूमिका निभाई।

डंका शाह के नाम से भी बुलाते थे

मौलवी को डंका शाह या नक्कार शाह के नाम से भी जाना जाता था। वह किसी भी अभियान पर निकलते थे तो उनके आगे-आगे लोग डंका या नक्कारा बजाते चलते थे।

तिलिस्म ने लिखा था.

लखनऊ से प्रकाशित अखबार ‘तिलिस्म’ में गदर के पहले उनके प्रवास के बारे में लिखा था, ‘इन दिनों अहमद उल्लाह शाह नाम का एक आदमी फकीर का रूप धारण करके राजसी ठाठ-बाट के साथ शहर में आया है तथा वह सराय मुतामिद्दौला रुका और फिर वह घसियारी मंडी चला गया। बहुत बड़ी संख्या में लोग उनके वहां घूमने जाते थे तथा सोमवार व मंगलवार को उनकी रहस्यमय जनसभा (मजलिस-ए-हल-ओ-कल)में हिस्सा लेते थे।’

नहीं थी पद की लिप्सा

मौलवी फकीर था। उसे पद की लालसा नहीं थी। न तो फैजाबाद में ही पद चाहा और न ही यहां। अन्यथा अस्थाई शासन स्थापित करने के बाद वह चाहता तो स्वयं नवाब बन सकता था, लेकिन मौलवी ऐसा नहीं चाहता था।

डंका शाह के नाम से भी बुलाते थे

मौलवी को डंका शाह या नक्कार शाह के नाम से भी जाना जाता था। वह किसी भी अभियान पर निकलते थे तो उनके आगे-आगे लोग डंका या नक्कारा बजाते चलते थे।

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