कानून में ‘जुर्म’ नहीं है मैच फिक्सिंग

spot-fixing-is-not-a-crime-in-lawनई दिल्ली। आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के रैकेट का खुलासा कर दिल्ली पुलिस ने भले ही श्रीसंत समेत तीन क्रिकेटरों और 11 बुकियों को गिरफ्तार कर लिया हो, लेकिन आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करना और उन्हें अदालत से सजा दिलाना उसके लिए आसान नहीं होगा। चौदह साल पहले हुए मैच फिक्सिंग के मामले में सीबीआइ ने पूरा केस यह कहते हुए बंद कर दिया था कि किसी भी कानून के तहत इन क्रिकेटरों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं किया जा सकता।

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गौरतलब है कि 1999 में दिल्ली पुलिस ने इसी तरह दक्षिण अफ्रीकी टीम के कप्तान हैंसी क्रोनिये के साथ भारतीय टीम के कप्तान अजहरुद्दीन, अजय जडेजा व अजय शर्मा जैसे बड़े खिलाड़ियों के मैच फिक्सिंग में शामिल होने का खुलासा किया था। बाद में इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई थी। लगभग दो साल की जांच के बाद सीबीआइ ने इन खिलाड़ियों के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उनके खिलाफ पुख्ता सबूत भी जुटाए लेकिन कानून की किसी भी धारा में मैच फिक्सिंग के अपराध नहीं ठहराए जाने के कारण सीबीआइ किसी भी खिलाड़ी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी। इसी जांच के आधार पर बाद में बीसीसीआइ ने अजहरुद्दीन और अजय शर्मा पर आजीवन प्रतिबंध लगाया।

मैच फिक्सिंग की जांच से जुड़े रहे सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरोपी खिलाड़ियों के खिलाफ चार्जशीट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एमके मुखर्जी और तत्कालीन सॉलीसिटर जनरल हरीश साल्वे से कानूनी सलाह भी ली। ये दोनों न्यायविद भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 415, 417 व 420, जुआ निरोधक कानून के साथ-साथ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत मैच फिक्सिंग के आरोपियों को चार्जशीट करने पर विस्तार से विचार करने के बाद इस फैसले पर पहुंचे थे कि इनमें से किसी भी कानून के तहत आरोपियों करे खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती।

हैरानी की बात है कि दिल्ली पुलिस ने राजस्थान रॉयल्स के इन खिलाड़ियों के खिलाफ 420 और 120बी के तहत केस दर्ज किया है। सीबीआइ के उक्त अधिकारी ने कहा कि इन धाराओं के तहत आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। उस समय सीबीआइ ने सरकार को मैच फिक्सिंग रोकने के लिए आइपीसी में जरूरी संशोधन की सिफारिश की थी।

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