ज्यादा समय तक सेक्स से दूर रखना तलाक का आधार

courtकोच्चि। केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत मुस्लिम शादी को सिविल कांट्रैक्ट यानी समझौता माना है, जिसमें शारीरिक संबंध बनाने को कानूनी मान्यता दी जाती है। इसके साथ ही कोर्ट ने महिला या पुरुष को ज्यादा समय तक वैवाहिक हक से दूर रखने को क्रूरता मानते हुए इसे तलाक का आधार बताया है।

हाई कोर्ट के दो जजों पीसी कुरियाकोस और पीडी राजन की खंडपीठ ने अलपुझा के संजन एस की याचिका को खारिज कर दिया। संजन ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने उसकी पत्‍‌नी को तलाक लेने की मंजूरी दी थी। पत्‍‌नी ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि उसे तीन साल से ज्यादा समय तक सेक्स संबंध से वंचित रखा गया।

खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम समाज में भी विवाह एक समझौता है, जिसमें शारीरिक संबंध बनाना और बच्चे पैदा करने को कानूनी मान्यता दी जाती है। इसके साथ ही खंडपीठ ने कहा कि हमारी राय में पत्नी की इच्छा के बावजूद पति अगर सेक्स संबंध बनाने से इन्कार करता है तो इसे क्रूरता ही माना जाएगा।

गौरतलब है कि मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 में तलाक के आधार का जिक्र किया गया है। इसके खंड 2 में कहा गया है कि अगर तीन साल तक पति बिना किसी उचित कारण के वैवाहिक जिम्मेदारियां पूरी नहीं करता है तो यह तलाक का आधार बन सकता है। कोर्ट ने अपने फैसले में इसका जिक्र किया है।

संजन ने 16 मई 1999 को मुस्लिम रीति-रिवाज से शादी की थी। अगस्त 2004 में उसकी पत्‍‌नी ने एक बच्चे को जन्म दिया। फरवरी 2004 के बाद वह अपनी पत्‍‌नी से सेक्स संबंध बनाने से कतराने लगा। यह सिलसिला तीन साल से ज्याद चला। आखिरकार पत्‍‌नी ने 2006 ने संजन का घर छोड़ दिया और 2007 में फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल दी।

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