गाड़ियां बह रही थी, आंखों के सामने लोग डूबकर मर रहे थे

gadiyaनई दिल्ली [सुधीर कुमार]। पानी के तेज बहाव में गाड़ियां ऐसे बह रही थीं मानो वे किसी पेड़ के पत्ते हों। लोग चिल्ला रहे थे। आंखों के सामने लोगों को पानी में डूबकर मरते देख रहा था। बचाव के लिए लोग चीख रहे थे, लेकिन चाहकर भी कोई मदद कर पाने की स्थिति में नहीं था। सबको साक्षात मौत सामने नजर आ रही थी। चार दिनों तक यही लगता रहा कि अब जिंदा नहीं बचेंगे। ऊपर वाले की मेहरबानी ही थी कि मौत के मुंह से बचकर लौट आया। यह कहना था रायपुर छत्तीसगढ़ निवासी मनोज यादव का। जो शुक्रवार तड़के पौने तीन बजे हरिद्वार-दिल्ली स्पेशल ट्रेन से पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुंचे। उनकी तरह सैकड़ों यात्री स्पेशल ट्रेन से पुरानी दिल्ली स्टेशन पर उतरे। भूख-प्यास से तड़प रहे यात्री स्टेशन पर उतरते ही पानी, चाय और खाने-पीने की चीजों की ओर दौड़ पड़े।

तस्वीरों में देखें केदारनाथ का खौफनाक मंजर

यात्री मनोज यादव ने बताया कि परिवार के चार सदस्यों के साथ वह केदारनाथ की यात्रा पर गए थे। 15 जून की शाम वह केदारनाथ से 14 किलोमीटर दूर गौरीकुंड तक पहुंचे थे। तभी यह इलाका प्रकृति के कोप का शिकार हुआ। जहां बादल फटा था, वह वहां से थोड़ी दूर थे। लेकिन बादल फटते ही चारों तरफ अफरातफरी मच गई। भगदड़ के बीच सभी ने ऊंचे स्थान पर बने एक मकान में शरण ली। वहां से तबाही का मंजर साफ दिख रहा था। तेज धारा में गाड़ियां पेड़ के पत्ते की तरह बह रही थी। लोग मौत से संघर्ष करते हुए चिल्ला रहे थे पर कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। तड़पते हुए लोग दम तोड़ रहे थे। हर पल लग रहा था कि कहीं उन पर भी प्रकृति का कोप न बरसे। दो दिन तक भूख-प्यास से तड़पते हुए बिताए। फिर वापस लौटने लगे तो रास्ता जाम था। दो दिन सीतापुर में रुकना पड़ा। कभी पैदल तो कभी किसी सवारी में चढ़कर किसी तरह देहरादून पहुंचे और वहां से 20 जून को हरिद्वार आए। उनके साथी जगतराम यादव की तबियत काफी बिगड़ गई है।

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मध्यप्रदेश के शिवपुरी निवासी श्रीपत यादव परिवार के साथ उत्तरकाशी में फंस गए थे। वह कहते हैं कि पल-पल लगता था कि मौत उनके करीब है। विश्वास ही नहीं था कि वहां से निकल भी पाएंगे। भूख से तड़पते हुए और खौफ के साए में चार दिन काटना बहुत मुश्किल भरा रहा। जीवन में ऐसा भयानक समय नहीं देखा था। अब दिल्ली आने के बाद ऐसा लग रहा है कि नया जन्म हुआ है। स्पेशल ट्रेन में ऐसे कई लोग थे, जिन्होंने विनाश को एकदम नजदीक से देखा।

पलवल निवासी मनोहर लाल कहते हैं कि ऋषिकेश में भी पानी का उफान इतना अधिक था कि तटवर्ती इलाकों के मंदिरों व धर्मशाला में पानी घुस आया। लक्ष्मण झूले पर गाद जमा हो गई। वह 25 लोगों के समूह के साथ गए थे। ग्वालियर के रहने वाले जगदीश शर्मा भी परिवार के साथ ऋषिकेश में फंसे हुए थे। किसी तरह वहां से निकल कर हरिद्वार पहुंचे और अब दिल्ली पहुंचकर राहत की सांस ली। मथुरा निवासी श्याम अपने साथियों के साथ नीलकंठ गए थे और वहां से वह 30-35 किलोमीटर आगे बढ़ गए थे। इसी दौरान आपदा आ गई। सभी के सभी वहां फंस गए। रात-रात भर ऊंची पहाड़ी पर जाग कर समय काटते और दिन होते ही पैदल चलते और बाधा आते ही रुक जाते थे। चार दिनों के सफर के बाद हरिद्वार पहुंचे, तब जान में जान आई। ऋषिकेश में रहने वाले बाबा नारायण वेंकटेश ने ऋषिकेश में हुई तब तबाही के बाद ऋषिकेश छोड़ दिया और पुणे के लिए निकल पड़े। वह भी स्पेशल ट्रेन से दिल्ली पहुंचे। उनकी तरह ऋषिकेश और हरिद्वार में रहने वाले कई लोग भी दिल्ली आए हैं।

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