खौफनाक मंजर के गवाह की जुबानी, सुनिए जिंदगी की जंग की कहानी

25_06_2013-25uttarakhand (1)देहरादून (गौरव गुलेरी)। जिंदगी बच गई यह भगवान का आशीर्वाद है और जीवन की जो जंग लड़ी वह भी भगवान के प्रसाद की बदौलत। उस खौफनाक मंजर के गवाह रहे झारखंड के बागमारा गांव (धनबाद) निवासी रामधनी राम व उनकी पत्नी पुष्पा भले ही खुद सकुशल लौट आए, लेकिन अपनों को खोने की पीड़ा उनके चेहरों पर साफ झलकती है। केदारघाटी में आई जलप्रलय में उनके कुनबे के 13 लोगों को अब भी कोई अता-पता नहीं है।

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सोमवार को रेलवे स्टेशन पहुंचे रामधनी राम व उनकी पत्‍‌नी पुष्पा देवी जिंदगी की उस जद्दोजहद को याद करकेसिहर उठते हैं। पुष्पा की आंखों के आंसू तो थमते ही नहीं। रामधनी बताते हैं गंगोत्री व यमुनोत्री की यात्रा करने के बाद 15 जून की सुबह केदारनाथ पहुंचे। हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। रात वहीं एक आश्रम में गुजारने के बाद 16 की सुबह केदार बाबा की पूजा-अर्चना की।

इस बीच, बारिश तेज होने लगी है। दोपहर होने से पहले ही हमने पैदल रास्ता तय करना शुरू किया। जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, नदी का जलस्तर भी बढ़ने लगा। घुटने-घुटने तक पानी आ गया, लेकिन हमने चलना बंद नहीं किया। करीब पांच-छह किमी चलकर रामबाड़ा के पास पहुंचे ही थे कि अचानक चट्टानें टूटकर गिरने लगीं। तभी पता चला कि हमारे साथी इंद्रजीत बदानी की पत्नी उफनती नदी में समा गई। पूरा ग्रुप तितर-बितर हो गया। रामबाड़ा में सब कुछ तबाह हो चुका था। जैसे-तैसे जंगलचट्टी पहुंचे और एक झोपड़ीनुमा घर में शरण ली।

कम से कम दो सौ लोग वहां दो दिन फंसे रहे। 19 जून को जंगल चट्टी से फिर आगे बढ़े। लेकिन, गौरीकुंड से लगभग डेढ़ किमी पहले गणेश चट्टी में तीन-चार सौ मीटर सड़क पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। दूसरी तरफ गहरी खाई थी। तीन दिन जंगल में ही बारिश में भीगते और ठंड से कंपकंपाते हुए गुजारे। पास में गंगोत्री-यमुनोत्री का प्रसाद पड़ा था, उसी के सहारे डेढ़ दिन गुजारे। 21 जून को रेस्क्यू के लिए आए हेलीकाप्टर ने राहत सामग्री के पैकेट गिराए, मगर वह सब खाई में समा गए। मुश्किल से दो-तीन पैकेट सही जगह गिरे, लेकिन वह भी हमारे हाथ नहीं लगे। अगले दिन फिर हेलीकाप्टर से राहत सामग्री गिराई गई, भाग्य से हमें भी मिल गई। 22 जून को हमें हेलीकाप्टर के सहारे गणेश चट्टी से निकालकर गौरीकुंड और फिर गुप्तकाशी ले जाया गया। वहां से आपदा राहत में लगी गाड़ियों में बैठकर सकुशल वापस आ गए।

रामधनी रास्ते का मंजर याद करते हुए कहते हैं कि हर जगह लाशें ही लाशें नजर आ रही थीं। वह बताते हैं कि आपदा के समय में कम से कम तीस हजार लोग केदारघाटी में मौजूद थे। उनका दावा है कि कम से कम 12 हजार लोग इस आपदा में काल का ग्रास बन गए होंगे। यह उम्मीद भी ना के बराबर है कि उनके 13 साथी भी जिंदा बचे होंगे।

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