जान देकर बचाई जान

28_06_2013-itbp28गौचर। गौरीकुंड हादसे में आइटीबीपी के जवानों ने अपने छह साथियों खो दिया। लेकिन, साथियों की शहादत का गर्व उनके दर्द को छिपा लेता है। ‘अपनों’ को खोने का दर्द भले ही इन जवानों के दिलों में कहीं दबा हो, लेकिन उन्हें गर्व इस बात का कि उनके साथियों ने लोगों को बचाने के खातिर अपने प्राण न्योछावर किए।

गुरुवार को केदारघाटी से यात्रियों को रेस्क्यू कर वापस लौटे आईटीबीपी जवानों ने अपने इस अभियान के तमाम अच्छे-बुरे अनुभव ‘दैनिक जागरण’ के साथ बांटे। गौरीकुंड हेलीकॉप्टर दुर्घटना में साथियों को खोने के बाद भी इन जवानों के चेहरों पर गर्व था। उनका कहना था कि हमारे साथियों ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपनी जान दी है।

16 जून को हुई त्रासदी के बाद आइटीबीपी की गौचर स्थित आठवीं बटालियन के जवानों ने अपने पिट्ठ बांध लिए व गौरीकुंड जाने के लिए हेलीकॉप्टर का इंतजार करने लगे। गौरीकुंड में सर्वप्रथम रेस्क्यू करने उतरे आइटीबीपी के आठ-सदस्यीय दल का नेतृत्व कर रहे कमांडर राकेश नैनवाल इस घटना को जीवन की सबसे दुखद घटना मानते हैं।

बकौल नैनवाल गौरीकुंड में मौजूद श्रद्धालु 17 जून से मदद की बाट जोह रही थे, लेकिन मदद न पहुंच पाने के कारण वे काफी क्षुब्ध थे। पायलट ने गौरीकुंड में हेलीकॉप्टर लैंडिंग से इंकार कर दिया था। 19 जून की सुबह हेलीकॉप्टर उन्हें इस शर्त पर गौरीकुंड ले गया कि उन्हें टीम सहित हेलीकॉप्टर से छलांग लगानी होगी। इसके बाद वे अपनी टीम के साथ करीब पांच फुट ऊंचाई से जमीन पर कूदे।

जमीन पर उतरते ही आक्रोशित यात्रियों ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने यात्रियों को शांत किया। बाद में टीम ने गौरीकुंड में हैलीपैड बनाया। 20 जून से गौरीकुंड से रेस्क्यू शुरू हुआ, जबकि वे अपनी टीम के साथ जंगलों की ओर ट्रैक बनाने निकल पड़े। जंगल में यहां-वहां शव पड़े थे व जीवित यात्री लाशों के बीच स्वयं को बचाने की जद्दोजहद में जुटे थे।

आइटीबीपी के इंस्पेक्टर देशराज सिंह ने बताया कि उन्होंने कई रेस्क्यू ऑपरेशन में काम किया है, लेकिन यह रेस्क्यू ऑपरेशन उनके जीवन का सबसे कड़वा अनुभव रहा। कहीं महिलाओं का करुण क्रंदन तो कहीं बच्चों की किलकारियां। हर कोई लाश में तब्दील हो चुके ‘अपनों’ को छोड़ अपनी जिंदगी बचाने में जुटा था। 20 जून को जब पहली बार गौरीकुंड में हेलीकॉप्टर लैंड हुआ तो लोगों में हेलीकॉप्टर में चढ़ने के लिए मारामारी मच गई। किसी तरह लोगों को हाथ जोड़ किनारे किया व गंभीर यात्रियों को हेलीकॉप्टर से बाहर लाया गया।

21 जून से महिलाओं व बच्चों को प्राथमिकता दी गई। 26 वर्षो से आइटीबीपी में सेवारत एएसआइ बलजिंदर सिंह को पूरे घटनाक्रम का हाल सुनाते हुए आंखें नम हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि यात्रियों का दर्द देख खुद ही रोना आ रहा था।

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