होटल बह गया, लेकिन जान बच गई, आखिर क्यों बहकी मंदाकिनी?

01_07_2013-1madakiniगुप्तकाशी, (अनुराग उनियाल)। जो कुछ उन्होंने देखा, वो तीन पीढि़यों ने भी नहीं देखा। किसी को समझ नहीं आ रहा कि अक्सर मंद गति से बहने वाली मंदाकिनी क्यों ‘बहक’ गई। केदारघाटी में मंदाकिनी का प्रलंयकारी रूप देख लोग स्तब्ध हैं। रामबाड़ा में होटल चलाने वाले रांसी गांव के महेशा सिंह नेगी कहते हैं ‘होटल बह गया, लेकिन जान बच गई।’ वह पूछते हैं ‘आखिर जीवनदायिनी यह नदी हमसे क्यों रूठी’।

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केदारनाथ से लेकर तिलवाड़ा तबाही लेकर आई इस नदी से पूरी केदारघाटी दहशत में है। केदारनाथ में हल्की सी धारा के रूप में बहने वाली मंदाकिनी ने किनारे बने घर, मंदिर और खेत कुछ भी नहीं बख्शा।

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गुप्तकाशी के स्थानीय निवासी और केदारनाथ के पुरोहित कमल शुक्ला कहते हैं ‘पिताजी और दादा से मंदाकिनी के बारे में काफी कुछ सुना था। इसके बाद जब से होश संभाला तो मंदाकिनी को देखते आ रहे हैं। यह हमेशा शांत रही, लेकिन अब इसकी गर्जना से डर लगने लगा है।’

जखोली तहसील के किमाणा गांव निवासी शिक्षक सुरजीत सिंह बिष्ट चेताते हैं कि ‘अब वक्त आ गया है कि मंदाकिनी के बदले स्वभाव पर गंभीरता से विचार किया जाए।’ उखीमठ तहसील के कंडारा गांव निवासी विनोद प्रसाद गैरोला आगे जोड़ते हैं कि प्रकति के साथ छेड़छाड़ ठीक नहीं। कुदरत संतुलन बनाना जानती है। वह कहते हैं ‘नुकसान की भरपाई तो नहीं हो सकती, कुदरत को सम्मान देकर भविष्य को बचाया जा सकता है।’

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