बयान पर उलझे ठाकरे, मोदी पर साधी चुप्पी

uddhav-thackerayशिवसेना के संस्थापक तो शायद आधिकारिक रूप से कभी दिल्ली आये नहीं, खुद वर्तमान कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे कब दिल्ली आये पता नहीं। लेकिन पहली बार एक उद्योगपतियों के समूह एसोचैम के कार्यक्रम में जब उद्धव ठाकरे को बतौर वक्ता बुलाया गया तो यह अपने आपमें थोड़ा चौंकानेवाला निर्णय था। चौंकानेवाला इस लिहाज से अगर प्रदेश से किसी क्षत्रप को ही बुलाना था तो एसोचैम की सुविधानुसार बहुत सारे ऐसे नाम हैं जिन्हें ऐसोचैम बुला सकता था, लेकिन उद्धव ठाकरे को निमंत्रण देखकर एसोचैम ने यह संकेत देने की कोशिश किया है कि व्यापारिक घराने भाजपा की बजाय एनडीए को भी महत्व दे रहा है।

इसी सम्मेलन में शुक्रवार को दिल्ली आये उद्धव ठाकरे ने एक ऐसा बयान दे दिया जो मीडिया में विवाद का कारण बन गया। विवाद भी ऐसा बना कि आज उद्धव ठाकरे को मुंबई में प्रेस कांफ्रेस लेकर सफाई देनी पड़ी। मीडिया में उनके हवाले से जो सफाई सामने आई है वह यह कि उन्होंने जो नेतृत्व के अभाव की बात कही थी, वह कांग्रेस के संदर्भ में थी। उसे अनायास मोदी से जोड़कर देखा जा रहा है। अव्वल तो उद्धव ठाकरे की यह बात सही नहीं है कि उन्होंने किसी एक को टार्गेट करके यह बात कही है। उन्हीं के मुखपत्र सामना में उनके भाषण का जो सार छपा है उसमें साफ तौर पर लिखा है- “दुर्भाग्य देखिए, पूरे देश को जिस पर विश्वास हो ऐसा कोई चेहरा दिखाई नहीं देता है।” यह बयान साफ तौर पर किसी एक दल या व्यक्ति की बजाय समानरूप से देश के परिप्रेक्ष्य में कही गई है जिसमें मनमोहन भी आते हैं तो मोदी भी आते हैं।

उनका यही बयान जब मीडिया में मोदी विरोधी बयान बनाकर चलाया गया तो आज उद्धव ठाकरे ने प्रेस कांफ्रेस करके सफाई दी कि वे तो पहले ही उन्हें अपनी शुभकामानाएं दे चुका हूं। लेकिन जब पत्रकारों ने उनसे मोदी की दावेदारी के बारे में और अधिक जानने की कोशिश की तो उन्होंने एक बार फिर तकनीकि जवाब का सहारा ले लिया। ”यह तो भाजपा का संसदीय बोर्ड तय करेगा। वे जब हमसे मिलेंगे तब हम अपनी राय उन्हें देंगे।” जाहिर है एनडीए में सबसे बड़े घटक दल के रूप में बचे रह गये शिवसेना को एक साथ कई बातों को साधकर आगे बढ़ना है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की वरिष्ठता का भी ख्याल रखना है और बाला साहेब द्वारा सुषमा स्वराज को दिये गये आशिर्वाद की लाज भी रखनी है। लेकिन इन सबके बीच मोदी के उभार को जब खुद भाजपा नहीं नकार पा रही है तो शिवसेना भला कैसे नकार देगी?

वैसे भी शिवसेना की सेन्ट्रल पॉलिटिक्स को साधते समय महाराष्ट्र की ग्राउण्ड रियलिटी का ध्यान भी रखना होगा। उसे एक साथ जहां भाजपा से अपने ढाई दशक पुराने रिश्ते को भी बनाकर रखना है वहीं एक दल के रूप में अपनी वही वरिष्ठता कायम रखनी है जो बाल ठाकरे के समय में कायम हुई थी। बाल ठाकरे के जाने के बाद तकनीकि तौर पर अब भाजपा-शिवसेना युति में शिवसेना की बड़े भैया वाली छवि नहीं रही। मजबूरी में ही सही, उसे नेता विपक्ष का पद भाजपा को अगर देना पड़ा है तो उसका आधार राजनीतिक नहीं बल्कि तकनीकि था। शिवसेना के “चाणक्य” जब तब राज ठाकरे को बैकफुट पर जाने के लिए मजबूर जरूर कर रहे हैं लेकिन सेन्ट्रल मीडिया का फोकस बाल ठाकरे के बाद अब राज ठाकरे पर बन गया है। तात्कालिक तौर पर भले ही इसका खामियाजा शिवसेना को नजर न आये या फिर राज ठाकरे की संगठन अक्षमताओं का फायदा शिवसेना को मिलता रहे लेकिन दीर्घकालिक तौर पर होनेवाले नुकसान का अंदेशा तो शिवसेना को भी है।

ऐसे में, भाजपा के भीतर जारी गुटीय संघर्ष के साथ तालमेल बिठाकर राजनीतिक बयान देना उनकी मजबूरी है। इसलिए अगर उद्धव ठाकरे मुंबई में एक तरफ राजनाथ सिंह से मिलते हैं तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात करते हैं। वह भी इन अफवाहों के बीच कि मोदी ने भाजपा को राज्य में अकेले आगे बढ़ने के लिए तैयार रहने की सलाह भी दी है। इसलिए आज जब शुक्रवार को एसोचैम के भाषण और शनिवार की उनकी तकनीकि सफाई में भले ही मोदी विरोध का विरोध किया जा रहा हो और मीडिया को राष्ट्रीय दायित्व निभाने का उपदेश दिया जा रहा हो लेकिन सच्चाई कितनी उलझी हुई है, यह उद्धव के बयान ही सामने रख रहे हैं। वैसे एक बात और काबिलेगौर है, जो मीडिया ने मुद्दा नहीं बनाया। जिस मंच से उद्धव ने यह बात कही उस मंच पर बतौर वक्ता भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी मौजूद थे।
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