जो ‘सूरज’ कभी चमकता था, आज है उसका कुछ ऐसा दर्दनाक हाल

noidaनोएडा। कभी गोल्ड मेडल की चमक से रोशनी बिखेरने वाला सूरज कब गुमनामी की जिंदगी जीने लगा, उसे पता ही नहीं चला। धीरे धीरे दस साल बीत गए। सालों बाद वह इतने लोगों के बीच तब आया जब उसकी मां का शव पुलिस वाले निकाल रहे थे। अब रिश्तेदार सूरज को नई जिंदगी देने की तैयारी में हैं। ये वही सूरज हैं जिन्होंने पहली कक्षा से लेकर बी टेक की पढ़ाई में टॉप किया और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के पहले बैच के गोल्ड मेडलिस्ट रहे।

ओएनजीसी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करने वाले सूरज की जिंदगी ने अचानक यू टर्न ले लिया। रिश्तेदार ने बताया कि पंद्रह साल पहले उन्होंने अचानक ओएनजीसी कार्यालय जाना छोड़ दिया। एक साल बाद कंपनी ने उन्हें निकाल दिया। इसके कुछ महीने बाद मानसिक रूप से वह अस्वस्थ हो गया। इसी दौरान उनकी पत्‍‌नी ने भी साथ छोड़ दिया। बताया जाता है कि पत्‍‌नी फरीदाबाद के एक कान्वेंट स्कूल की पि्रंसिपल रही हैं और अब सेवानिवृत हो गई हैं।

मौत के दो दिन बाद तक मां को जिंदा समझता रहा मां की मौत के दो दिनों बाद तक सूरज उन्हें जिंदा समझता रहा। शव से दुर्गंध आने के बावजूद बेटे को पता नहीं चला। बताया जा रहा है कि वह मानसिक रूप से बीमार है इसलिए मां को जिंदा समझकर उनके शव के साथ एक कमरे में ही रह रहा था। शव से दुर्गंध आने पर पड़ोसी ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर आसपास के लोगों से जानकारी ली। घर में मां व बेटे दोनों पिछले दस साल से रह रहे थे।

दो महीनों से खाना नहीं बना: दस अगस्त को सूरज के फुफेरे भाई तेजस्वी चंडीगढ़ से नोएडा आए थे। उन्होंने बताया कि उस वक्त से उनके घर चूल्हा नहीं जला। पड़ोसियों ने बताया कि वह ब्रेड व दूध रोजाना लाता था। रास्ते में किसी से भी बात नहीं करता था।

पुलिस के पहुंचते ही जुटी भीड़: पड़ोस में रहने वाले लोग मां बेटे के के बारे में जानते थे और मदद भी करते थे। लेकिन मानसिक रूप से अस्वस्थ सूरज कभी किसी से बात नहीं करता। उसे किसी पर भी भरोसा नहीं होता। कभी कोई रिश्तेदार अगर बाहर से कुछ खाना लाता तो उसे फेंक देता था।

15 दिन पहले पड़ोसी ने खिलाई थी मिठाई: पड़ोसियों ने बताया कि पंद्रह दिन पहले कुछ लोग सूरज के घर गए थे। तब उनकी मां विमला ने मिठाई व समोसे खाने की इच्छा जताई थी। पड़ोसियों ने मिठाई व समोसा लाकर दोनों को खिलाया था।

रिश्तेदारों ने भी मुंह मोड़ा: 1967 में सूरज के पिता की मौत के बाद इनका परिवार रिश्तेदारों से धीरे धीरे दूर होने लगा। 1984 में शादी होने के बाद सूरज मुंबई में शिफ्ट हो गया। उनके रिश्तेदार तेजस्वी ने कहा कि कई सालों तक सूरज से कोई संपर्क नहीं था। चार साल पहले जब सूरज के बारे में जानकारी मिली तो नोएडा आकर मुलाकात की।

पड़ोसी एसएस बिदरी रखते थे नजर: पड़ोस में रहने वाले आरडब्ल्यूए के पूर्व पदाधिकारी एसएस बिदरी इन मां बेटे पर नजर रखते थे। उनकी मां से मुलाकात करते थे। बिदरी के पासदो महीने पहले सूरज की मां मेरे घर पर पड़ोसी के साथ आई थी। उनका इलाज मैंने दिल्ली के अस्पताल में कराया था फिर वह चली गई।

-कोमोडोर एस नाथ, सूरज के रिश्तेदार

मां के पेंशन से चलता था खर्च: सूरज के पिता हरियाणा के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। इनकी मां को लगभग 18 हजार रुपये पेंशन मिलता था। इसी से खर्च चलता था। पेंशन के पैसे निकालने में पड़ोसी मदद करते थे। पड़ोसी ही बिजली बिल जमा करते थे। इधर कुछ महीनों से बिजली इनके घर नहीं आ रही थी।

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