65 साल: प्रगति, परमाणु संपन्नता, महंगाई, भ्रष्टाचार…

भारत को आजाद हुए 65 साल बीत चुके हैं। इन 65 सालों में भारतीय लोकतंत्र का चेहरा इतना बदल चुका है कि पहचाना नहीं जा सकता। भारतीय लोकतंत्र कई क्षेत्रों में परिवर्तन की सीढ़ियां चढ़कर आधुनिक और विकसित हो चुका है।

आर्थिक और व्यावसायिक तौर पर भारत ने निश्चित तौर पर तरक्की की है। तीसरी दुनिया का देश कहा जाने वाले भारत आज विश्व की तीसरी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। दूसरी तरफ सामाजिक विषमताएं और राजनीतिक जटिलताएं अभी भी भारतीय लोकतंत्र की परेशानी का सबब बनी हुईं हैं। 65 सालों का ये सफर भारतीय लोकतंत्र के विकास की एक ऐसी कहानी कहता है, जिसमें कई उतार चढ़ाव हैं।

आजादी के सफर में कुछ विषमताएं ऐसी है जिन पर चर्चा बहुत जरूरी है। एक तरफ हम चांद और मंगल पर जा पहुंचे हैं तो दूसरी ओर घर में चांद सी बिटिया नहीं चाहते। एक तरफ हम बच्चों को हुनरमंद और अच्छी नौकरी में देखना चाहते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि पढ़ाई मुहाल हो गई है। एक तरफ प्रेम को आधार बनाकर बनी फिल्में सुपरहिट हो जाती हैं तो दूसरी तरफ प्रेम विवाह करने वालों को जान से मार दिया जाता है।

एक तरफ देश में करोड़पतियों की संख्या एक लाख हो गई है तो दूसरी तरफ करीब 43 फीसदी आबादी दिन में रोज बीस रुपए भी नहीं कमा पाती। एक तरफ शहरों में मॉल कल्चर पनपा है और भारतीय शहरियों की खर्च करने की कैपेसिटी बढ़ी है तो दूसरी तरफ गांवों में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का अकाल है।

आर्थिक तौर पर मजबूत बना है भारत
1947 में जब भारत आजाद हुआ तब अंग्रेजी हुकूमत भारत को इतना निचोड़ चुकी थी कि ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाला भारत कंगाली के दर्जे तक पहुंच गया था। ऐसे में भारत-पाक विभाजन ने रही सही कसर पूरी कर दी। आजाद भारत को आर्थिक तौर पर संभलने में करीब ढाई दशक लगा। 1975 तक भारतीय उद्योग ठीक ठाक अवस्था में पहुंच चुके थे।

पिछले 20 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया है। भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। 65 सालों की एक बड़ी उपलब्धि इस क्षेत्र में तब मिली जब 2008 में भारत ने 9.4 फीसदी की विकास दर हासिल की। अर्थशास्त्री भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि आने वाले कुछ सालों में भारत विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल हो
जाएगा।

आईटी-बीपीओ के क्षेत्र में उन्नति
भारत में कंप्यूटर युग आने के बाद उन्नति के रास्ते खुले। आईटी कंपनियों ने वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाई। खासकर आईटी और बीपीओ के क्षेत्र में भारत ने दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाई। आज इस क्षेत्र के भारतीय हुनरमंद युवाओँ की विदेशों में भारी मांग है। आज विदेशों में काम कर रहे अधिकतर हुनरमंद प्रोपेशनल्स में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की है। भारत के आईटी और मेडिकल क्षेत्र के होनहार युवा कई देशों के विकास की रीढ़ बने हुए हैं।

बढ़ गई वैश्विक भागीदारी
आउटसोर्सिंग की बयार ने भारत को निश्चित तौर पर वो मौका दिया जिससे भारत अन्तरराष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बना रहा है। हमारा देश सूचना प्रौद्योगिकी और आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में द‌ुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना चुका है। यही वजह है कि 2001 से 2006 तक आईटी सेवा में भारत की वैश्विक भागीदारी 62 प्रतिशत से बढ़कर 65 प्रतिशत हुई और बीपीओ क्षेत्र में 39 से बढ़कर 45 प्रतिशत तक हो गया। उम्मीद की जा रही है कि 2015 तक आईटी-बीपीओ क्षेत्र की वैश्विक भागीदारी 75 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।

परमाणु संपन्नता हासिल की
पहले जहां भारत को तीसरी दुनिया के एक गरीब मुल्क के तौर पर देखा जाता था, वही भारत आज विश्व के महत्वपूर्ण देशों की सूची में आ गया है। परमाणु संपन्नता की दौड़ में भी भारत ने अपना नाम दर्ज कराया है। आज भारत को परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में छठा स्थान हासिल है। जी-8 नामक संपन्न और ताकतवर देशों के सम्मेलन में भारत बाकायदा सलाहकार की भूमिका निभाता है। लड़ाकू विमान से लेकर लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलें बनाने के मामले में हमारा कोई सानी नहीं।

हाल ही में भारत ने अग्नि-5 कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल बनाई है जो 5000 हजार किलोमीटर तक मार कर सकती है। 2016 तक भारत की योजना 5,000 किलोमीटर मारक क्षमता वाली मिसाइल-रोधी रक्षा प्रणाली विकसित करने की है। अभी तक यह प्रणाली सिर्फ अमेरिका, रूस और इजरायल के पास है।

वैज्ञानिक उपलब्धि और अंतरिक्ष में छलांग
अंतरिक्ष में जाने वाले भारतीयों में कल्पना चावला और स‌ुनीता विलियम्स का नाम लेते ही हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। नासा में ऐसे कई भारतीय वैज्ञानिक हैं जिनसे नासा के कार्यक्रम फलदायक साबित हुए है। दुनिया की उत्पत्ति का राज जानने को कराए गए ‘बिगबैंग परीक्षण’ में भी भारतीय र्वैज्ञानिकों का अहम योगदान रहा। ‘गार्ड पार्टिकल’ यानी ‘हिग्स बोसोन’ की खोज में भी भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस की अहम भूमिका की दुनिया भर में चर्चा हुई है।

जन जन की रग में घुसा भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भारत की दुखती रग बन चुका है। राजनीति से लेकर आम जनता की सामान्य दिनचर्या तक में भ्रष्टाचार इतना घुस गया है कि इससे छुटकारा पाने की कोशिशें दम तोड़ चुकी हैं। पिछले पैंतीस-चालीस सालों में भ्रष्टाचार भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। सरकारी स्तर पर पारदर्शिता सवालों के घेरे में आ चुकी है और राजनीति में समाहित नैतिकता धुंधली हो गई है।

ऐसा लगता है मानो राजनीति लोकतंत्र नहीं भ्रष्टतंत्र की दिशा में काम कर रही है। घोटालों की फेरहिस्त इतनी लंबी हो गई है कि पढ़ी तक नहीं जा सकती। सच कहें तो आज भ्रष्टाचार इस कदर आम जीवन में बस गया है कि एक व्यक्ति के लिए ईमानदार बने रहना नामुमकिन सा लगता है।

धन और बल पर टिका लोकतंत्र
जिसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, वहां चुनाव बंदूकों के साए में होते हैं। लोकतंत्र पर बुलेटतंत्र और धनतंत्र हावी है। जाति और धर्म के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं।

अलगाववादी और नक्सली संगठनों से पूरा देश ग्रसित है। उतर पूर्व के कई राज्यों में अलग देश बनाने की मांग उठ रही है। देश के 14 राज्यों के 280 जिले आज नक्सलवाद की मार झेल रहे है। इनमें से 180 से ज्यादा जिलों में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए बाकायदा सेना को लगाया गया है।

महंगी होती उच्च शिक्षा
आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो दुनिया के सबसे ज्यादा युवा भारत में हैं। इस लिहाज से भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति मजबूत और बेहतर होनी चाहिए। लेकिन स्थिति इसके उलट है। देश में उच्च शिक्षा बहुत महंगी है।

आम आदमी अपने होनहार बच्चों को मेडिकल, आईटी जैसे कोर्स कराने का सपना देखता है लेकिन महंगी पढ़ाई और भारी भरकम डोनेशन से उसके हौंसले पस्त हो जाते हैं। दूसरी ओर, यहां कदम कदम पर फर्जी इंस्टीट्यूट खुल गए हैं जो महज कुछ कमाई के लिए विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।

डंस रहे हैं सामाजिक विषमता के नाग
अपने आपको आधुनिक कहने वाले भारत में सामाजिक विषमता की गहरी खाई है। हालांकि सामाजिक और जातीय विषमता तो आजादी से पहले भी थी लेकिन आधुनिक भारत में इसकी मार भयंकर है। एक तरफ समलैंगिकों को अधिकार देकर अदालतें न्याय और बराबरी की मिसाल पैदा कर रही हैं तो दूसरी तरफ ‘कन्या भ्रूण हत्या’, ‘दहेज हत्या’, ‘यौन शोषण’, ‘बाल श्रम’ और ‘ऑनर किलिंग’ के मामले समाज को निचले दर्जे पर ला रहे हैं।

पिछले एक दशक में बलात्कार के मामलों ने रिकार्ड तोड़‌ दिया है। जिस भारत में औरत को ‘देवी मां’ का दर्जा दिया जाता है, उसी भारत में औरतों को ‘डायन’ बताकर नग्न घुमाने के मामले शर्मिंदा करते हैं। ऐसा लगता है जैसे की समाज में संवेदनशीलता खत्म हो गई है। एक तरफ ‘लिव इन’ का चलन बढ़ा है तो दूसरी तरफ वृद्धाश्रम में बुजुर्गो की तादाद भी बढ़ी है। संयुक्त परिवार एकल परिवारों में टूट गए हैं और एकल परिवार सिंगल पेरेंट में बदल रहे हैं।

बढ़ती महंगाई और बढ़ते गरीब
महंगाई ‘सुरसा’ की तरह मुंह फैला रही है और गरीबी ‘फीनिक्स’ पक्षी की तरह बार-बार अपनी ही राख से फिर पैदा हो जाती है। गरीबी की रेखा 22 रुपए और 32 रुपए के बीच झूल रही है। महंगाई इतनी तेजी से बढ़ी है कि सरकार का नारा ‘गरीबी हटाओ’ की बजाय ‘गरीब हटाओ’ में तब्दील होता दिख रहा है। विडंबना है कि कृषि आधारित भारत में खाद्य महंगाई सर्वाधिक तेजी से बढ़ी है।

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