संभव है कि मंदिर की प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित कुछ लोग मात्र आस्था की वजह से मुखरित हों, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग इस कारण चिंतित हैं, क्योंकि जिला कलेक्टर के विनम्र मगर सख्त तरीके से कानून सम्मत काम करने के कारण मंदिर के मामले में रुचि ले रहे चंद लोगों पर सवाल उठने लगे हैं। मीडिया की तटस्थता से भी कुछ लोगों को तकलीफ है, जबकि यह अत्यंत ही गौरव की बात है कि अधिसंख्य पत्रकार तीर्थराज पुष्कर से धार्मिक या सामाजिक तौर पर जुड़े होने के बाद भी खबरों में पूरी निष्पक्षता बरत रहे हैं।
सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि महंत के निधन के बाद से लेकर अब तक जिला कलेक्टर जिस प्रकार मामले को हैंडल किया है, उसकी प्रशासनिक दृष्टिकोण से सराहना की जा रही है। सच तो ये है कि यही कार्य कुशलता राजनीति के उच्च स्तर पर बारीकी से आंकी जा रही है। अब तक एक भी ऐसा प्रकरण सामने नहीं आया है, जिससे लगता हो कि उन्होंने आस्था व प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ किया हो। किसी भी प्रमुख धार्मिक व्यक्ति अथवा राजनेता ने उनकी कार्यप्रणाली पर सार्वजनिक रूप से सवाल नहीं उठाया है। मगर चंद निहितार्थी इससे असहज हो रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि जो प्रमुख व्यक्ति इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर देख रहे हैं और मानसिकता विशेष से जुड़े जो लोग मंदिर पर काबिज होने में असफल हो रहे हैं, वे अंदरखाने शिकायत दर्ज करवा रहे हैं। दूसरी ओर जिला कलेक्टर इतने चतुर है कि मामले के हर बिंदु से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अवगत कराते हुए अपना विश्वास बनाए हुए हैं। कदाचित प्रेशर ग्रुप कामयाब हो भी गया तो वे जयपुर, यहां तक कि दिल्ली में किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए बुला लिए जाएंगे। वैसे भी किसी आईएएस अधिकारी के लिए स्थान विशेष में रुचि नहीं होती, उसकी रुचि तो इसमें होती है कि किस प्रकार सत्ता के साथ तालमेल बैठा कर बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी पर काम करने का मौका हासिल करे।
खैर, बात मंदिर की प्रतिष्ठा की करें तो ये बात बेमानी लगती है कि मंहत विवाद के बाद वहां प्रतिदिन जो प्रशासनिक कवायद हो रही है और उसकी खबरें प्रकाशित होती हैं, उससे मंदिर बदनाम होता है।
आपको याद होगा कि कुछ इसी प्रकार की चिंता ब्लैकमेल कांड उजागर होने के बाद लगातार आ रही खबरों में उसमें संलिप्त कुछ खादिमों का जिक्र आने पर दरगाह से जुड़े लोगों को ऐसा लगता था कि इससे दरगाह बदनाम हो रही है, मगर सच्चाई ये है कि ख्वाजा साहब के प्रति आस्था रखने वालों पर उसका कोई असर नहीं पड़ा, उलटे उसके बाद दरगाह आने वाले जायरीन की संख्या बढ़ी ही है। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के रचियता व उनके एक मात्र मंदिर के प्रति आस्था रखने वालों पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। ऐसा लगता है कि जिन लोगों को ब्रह्मा मंदिर के बदनाम होने का खतरा है, या तो उनकी आस्था कुछ कमजोर है या फिर वे नहीं चाहते कि दूध का दूध पानी का पानी हो।
आखिर में बड़ा सवाल। क्या ब्रह्मा मंदिर की प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए वहां अब तक हुई आर्थिक गड़बड़ी को दफ्न कर दिया जाना चाहिए?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000
