मोदी के साम, दाम, दंड, भेद को जस्टीफाई किया जा रहा है

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
एक समय में पार्टी विथ द डिफ्रेंस का तमगा लगाने वाली भाजपा जब से अपनी रीति-नीति बदल कर सत्ता में आई है, उसके कार्यकर्ताओं को लग तो ये रहा है कि अब वे उस पार्टी के नहीं रहे हैं, जिसकी वे दुहाई दिया करते थे। वे सब समझ रहे हैं कि जिन बातों को लेकर वे कांग्रेस की आलोचना करते नहीं थकते थे, आज वही बातें खुद की पार्टी में हो रही हैं, मगर उन्हें लगता है कि सत्ता में बने रहने का यही फंडा है। यहां तक कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले अपनी ही पार्टी को कांग्रेस युक्त होता देख रहे हैं तो उन्हें उसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता। स्वभाविक रूप से अब जबकि भाजपा निशाने पर है तो उसके कार्यकर्ताओं को लगता है कि बचाव का एक मात्र तरीका यही है कि मौजूदा रीति-नीति को जस्टीफाई किया जाए। ढ़ीठ हो लिया जाए।
एक बानगी देखिए:-
जब तक भाजपा वाजपेयी जी जैसों की विचारधारा पर चलती रही, वो राम के बताये मार्ग पर चलती रही। मर्यादा, नैतिकता, शुचिता इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे, परन्तु आज तक कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी। मात्र एक लाख रुपये लेने पर भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्षमण को हटाने में तनिक भी विलंब नहीं किया, परन्तु चुनावों में नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात…। ताबूत घोटाले के आरोप पर जार्ज फर्नांडिस का इस्तीफा, परन्तु चुनावों में नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात…। कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्ट्राचार के आरोप लगते ही येदियुरप्पा को भाजपा ने निष्कासित करने में कोई विलंब नहीं किया, परन्तु चुनावों में नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात…। आखिरकार मोदी के कार्यकाल वाली भाजपा ने अपनी नीति बदल दी और अब साम, दाम, दंड, भेद वाली नीति अपना कर सत्ता पर काबिज है। काबिज ही नहीं है, तोड़-फोड़ कर लगातार विस्तार करती जा रही है।
जो भाजपा भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसती थी, उसी के कार्यकर्ता अब नई भाजपा को यह कह कर जस्टीफाई कर रहे हैं कि हमारी रंगों में पूर्ववर्ती सरकारों ने ऐसे भ्रष्टाचार के वायरस डाल दिये हैं कि हम स्वयं भ्रष्ट हो गये हैं। हमें जहां मौका मिलता है, हम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने से नहीं चूकते हैं। पुलिस का चालान हो, या सरकारी विभागों में काम हो, हम कुछ ले देकर अपने काम को निपटाने में ही यकीन रखते हैं।
भाजपा के नए अवतार पर एक कार्यकर्ता ने लिखा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नक्शे कदम पर चलने वाली भाजपा को मोदी कर्मयोगी कृष्ण के राह पर ले आये हैं। कृष्ण अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं करते हैं। छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से। अधर्मी को नष्ट करना ही उनका ध्येय होता है। इसलिए वो अर्जुन को सिर्फ मछली की आंखों को ही देखने को कहते हैं।
भाजपा कार्यकर्ता की मानसिकता में आए परिवर्तन की बानगी देखिए:-
येदियुरप्पा को फिर से भाजपा में शामिल किया गया, नतीजा लोकसभा चुनावों में सामने है। पीडीपी से गठबंधन करके कम से कम काश्मीर के अंदरूनी हालात से रूबरू तो हो रहे हैं..। कुल मिलाकर सार यह है कि, अभी देश दुश्मनों से घिरा हुआ है, नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जा रहे हैं। अभी भी हम नैतिकता को अपने कंधे पर ढ़ोकर नहीं चल सकते हैं। नैतिकता को रखिये ताक पर, और यदि इस देश के बचाना चाहते हैं तो सत्ता अपने पास ही रखना होगा। वो चाहे किसी भी प्रकार से हो। साम दाम दंड भेद, किसी भी प्रकार से…. । बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को चाहिए कि कर्ण के अंत करते समय के विलापों पर ध्यान न दें (येदियुरप्पा, पीडीपी, ललित मोदी), सिर्फ ये देखें कि…….अभिमन्यु की हत्या के समय उनकी नैतिकता कहां चली गई थी?
कुल मिला कर भाजपा कार्यकर्ताओं में एक नई सोच जन्म ले रही है, कि सत्ता में रहना है तो उसके लिए कुछ भी करना जायज है। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी इत्यादि को लेकर आसमान सिर पर उठाने वाले भाजपा कार्यकर्ता इन समस्याओं के पहले से ज्यादा हो जाने पर भी आंख मूंदने को मजबूर हैं, क्योंकि सत्ता पर सवार हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

error: Content is protected !!