मोरारी बापू कितने सही, कितने गलत?

सुप्रसिद्ध कथा वाचक मोरारी बापू इन दिनों खासे विवाद में हैं। उन पर भद्दी-भद्दी गालियां बरस रही हैं। अन्य धर्मों के प्रति उनकी सदाशयता तो बहस का विषय है ही, विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण को लेकर दिया गया बयान उनकी मुसीबत बन गया है। हालांकि उन्होंने अपने बयान के लिए बाकायदा खेद व्यक्त कर दिया है, मगर अनेक धर्मप्रेमी उनके पीछे ल_ लेकर पड़े हुए हैं। विवाद को समाप्त करने के लिए द्वारिका जाने पर एक जनप्रतिनिधि ने उन पर हमले तक का प्रयास किया।
इस बीच मामला कुछ टर्न लेता भी दिखाई दे रहा है। मोरारी बापू के अनुयायी तो उनकी पैरवी कर ही रहे हैं कि उनका पूरा जीवन सनातन धर्म को समर्पित रहा है, अकेले एक बयान के आधार पर उनकी अब तक की साधना को शून्य नहीं किया जा सकता। पहले बुरी तरह से आलोचना कर चुके चंद विरोधियों का रुख भी कुछ नरम पड़ रहा है। वे बापू के कहने के ढंग पर तो ऐतराज कर रहे हैं, मगर तर्क दे रहे हैं कि मोरारी बापू ने अपने मन से कुछ नहीं कहा। उन्होंने कुछ शास्त्रों में उल्लिखित बातों के आधार पर ही बयान दिया था। यानि कि अब विवाद घूम कर उन कथित शास्त्रों पर टिक रहा है, जिनके बारे में कहा जाता रहा है कि उनमें इस्लामिक साम्राज्य के दौरान काट-छांट कर अंटशंट बातें जोड़ दी गईं। यानि कि अब बहस ऐसे शास्त्रों की समीक्षा की ओर घूम रही है।
ज्ञातव्य है कि बापू ने एक कथा के दौरान ये बयान दे दिया कि दुनियाभर में धर्म की स्थापना करने वाले भगवान श्रीकृष्ण अपने राज्य द्वारिका में ही धर्म की स्थापना नहीं कर पाए। वहां अधर्म अपने चरम पर था। ऐसा कहते हुए वे यहां तक कह गए कि वे टोटली फेल हो गए। वे यहीं नहीं रुके, भावातिरेक में वे यहां तक बोले कि और भी कई बातें हैं, उनकी चर्चा न ही की जाए तो अच्छा है। यानि कि उनके पास कहने को और भी बहुत कुछ था, जो अगर सामने आता तो विवाद और भी अधिक गहरा हो सकता था।
इसमें कोई दोराय नहीं कि उनकी दृष्टि में जो सत्य था अथवा जो आवृत तथ्य उनकी जानकारी में आया, उसको अनावृत करने का तरीका धर्मप्रेमियों को चुभ गया। उनका कहना है कि वे कितने भी बड़े श्रीकृष्ण प्रेमी हों, आजीवन व्यास पीठ की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया हो, मगर बयान के अतिरिक्त उनकी बॉडी लेंग्वेज तक श्रीकृष्ण की महिमा पर प्रहार करने वाली थी। असल में बापू दुखी उस विरोधाभास से थे कि उनके आराध्य अपनी द्वारिका को क्यों नहीं बचा पाए, भाई-बांधवों तक को नहीं सुधार पाए? मगर योगीराज, सर्वगुणसंपन्न व भगवान के अवतार श्रीकृष्ण के विपरीत टिप्पणी भला कैसे बर्दाश्त की जा सकती थी।
इतना तो तो तय है कि बापू न तो अंतर्यामी हैं और न ही त्रिकालदर्शी, कि अकेले उनको उस तथ्य का पता लग गया, जो कि अब तक छुपा हुआ था, और उन्होंने उद्घाटित कर दिया। ऐसा भी नहीं हो सकता कि उन्हें सपने में ऐसा कुछ नजर आया हो, जिसे अभिव्यक्त करना जरूरी हो गया हो। स्वाभाविक रूप से उन्होंने मसले का संदर्भ कहीं न कहीं पढ़ा होगा। वह संदर्भ गलत है या सही, यह तो धर्माचार्य व धर्म शास्त्रों के मर्मज्ञ ही निर्णय कर सकते हैं। पर इतना तय है कि बापू का कथन श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति रखने वालों के लिए बहुत पीड़ादायक था। इसको बापू को समझना चाहिए था। भावावेश में वे इसका अनुमान ही नहीं लगा पाए कि उनका कथन दिक्कत पेश कर सकता है। भले ही उन्हें श्रीकृष्ण के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां मिल गई हों, जो कि आपत्तिजनक थीं, मगर उन्हें कहने की जरूरत क्या थी? बिना कहे भी चल सकता था। क्यों बैठे ठाले वर्षों की साधना व प्रभु सेवा से अर्जित प्रतिष्ठा को दाव पर लगा दिया। इसमें कोई दोराय नहीं है कि वे विद्वान हैं, शास्त्र के जानकार हैं, बेहतरीन कथा वाचक हैं, उनके चरित्र पर कोई बड़ा लांछन नहीं लगा है, मगर एक बयान मात्र ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया।
जहां तक श्रीकृष्ण के बारे में आपत्तिजनक जानकारियां किन्हीं शास्त्रों में उल्लिखित होने का सवाल है, उस पर शास्त्रों के जानकार शंकराचार्यों व विद्वानों को चर्चा करनी चाहिए। अगर वास्तव में गलत जानकारियां उन शास्त्रों में प्रविष्ठ करवा दी गई हों तो उसका पता लगाना चाहिए कि ऐसा कैसे संभव हुआ। शंका होती है कि कहीं यह प्रसंग गांधारी के कथित श्राप से जुड़ा हुआ तो नहीं है। अधिकृत व जिम्मेदार धर्माचार्यों को शास्त्रार्थ के अतिरिक्त सर्वसम्मत निर्णय भी देना चाहिए। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि मुरारी बापू के मुख से निकला तथ्य एक बार तो सभी के संज्ञान में आ गया है। भले ही बापू ने खेद व्यक्त कर दिया हो, मगर वास्तविकता तो सब के सामने आनी ही चाहिए।
ऐसा नहीं कि यह एक मात्र मामला है, जिसको लेकर विवाद हुआ है, महाभारत के अनेक पात्रों को लेकर भी कुछ विरोधाभासी बातें प्रचलन में हैं। द्रोपदी को लेकर तो नाना प्रकार की बातें यूट्यूब पर मौजूद हैं। ऐसे में शास्त्रों की नए सिरे से व्याख्या की जरूरत महसूस होती है।
मोरारी बापू का चित्र बीबीसी न्यूज हिंदी से साभार

-तेजवानी गिरधर
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