श्रीमद्भागवत कथा में तोता क्यों रखा जाता है?

हालांकि आकाश में स्वछंद विचरण करने वाले किसी पक्षी को पिंजरे में कैद रखना उचित प्रतीत नहीं होता, लेकिन हमारे यहां तोते को पालने का प्रचलन रहा है। उसे शुभ माना जाता है। चूंकि तोते की आवाज मीठी होती है और वह राम-राम जैसे कुछ शब्द आसानी से सीख लेता है, इस कारण कुछ लोग मनोविनोद के कारण उसे पालते हैं। शौक में कई लोग रंग-बिरंगी चिडिय़ाएं यथा लव बर्ड्स भी पालते हैं।
आपने देखा होगा कि जहां भी श्रीमद्भागवत कथा होती है तो वहां पर तोता रखा जाता है। अगर तोता उपलब्ध न हो तो कथा स्थल के मुख्य द्वार पर कार्ड बोर्ड का बना तोता टांगा जाता है। मैने स्वयं ने कई जगह ऐसा देखा है। स्वाभाविक रूप से यह जिज्ञसा होती है कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है?
पौराणिक जानकारी के अनुसार जैसे बंदर में हनुमान जी की उपस्थिति मानी जाती है, उसी प्रकार तोते को शुकदेव जी का प्रतिनिधि माना जाता है। ज्ञातव्य है कि शुकदेव जी ने राजन परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। शुकदेवजी का जन्म व्यासजी की पत्नी पिंगला के गर्भ से हुआ था, जिनके पेट में वह तोता 12 साल तक रहा था। उसने हिमालय की गुफा में उस वक्त कथा सुन ली थी, जब भगवान शंकर पार्वतीजी को यह कथा सुना रहे थे और इस दौरान पार्वती जी को निद्रा आ गई। स्वयं भगवान शंकर के श्रीमुख से कथा के दस स्कंध सुनने के कारण तोते की महिमा हो गई। तोते को शुक भी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि तोते की मौजूदगी के बिना व्यास कथा का महत्व नहीं रहता। तोते को आसन दे कर उसकी पूजा किए बिना श्रीमद्भागवत कथा मान्य ही नहीं है। हालांकि कथा करने वाले को कथा व्यास की पदवी होती है, मगर तोते की मौजूदगी के बिना वह कथा फल प्रदान नहीं करती।
प्रसंगवश बता दें कि पक्षियों में तोता ऐसा पक्षी है, जो कि मनुष्य की तरह बोल सकता है, अगर उसे प्रशिक्षित किया जाए। वैज्ञानिकों के अनुसार तोते के मस्तिष्क का सेरीब्रम पार्ट काफी विकसित होता है, इसी कारण उसे मनुष्य की बोली का प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

-तेजवानी गिरधर
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