आदमी से ज्यादा जीव-जंतु समझते हैं प्रकृति के इशारों को

इसमें कोई दोराय नहीं कि आदमी का दिमाग सुपर कंप्यूटर है। उसी सुपर कंप्यूटर ने अद्भुत वैज्ञानिक अविष्कार किए हैं। प्रकृति के संकेतों को समझने के लिए कई उपकरण भी बनाए हैं। बारिश का पूर्वानुमान लगाने के लिए यंत्र बनाए हैं, मगर वे भी कई बार विफल हो जाते हैं। दूसरी ओर मंद बुद्धि जीव-जंतु प्रकृति के इशारों को आदमी से बेहतर समझते हैं। वस्तुत: प्रकृति ने उन्हें विशेष क्षमता दी है।
आप देखिए हवाई मखलूकात या भूत-प्रेत की मौजूदगी का अहसास आम आदमी को नहीं हो पाता। कदाचित कुछ लोगों को हो भी सकता होगा, लेकिन जानवरों को तो हवाई मखलूकात बाकायदा नजर आती हैं। यह सर्वविदित मान्यता है कि भूत-प्रेत दिखाई देने पर कुत्ता रात में भौंकने लगता है। यदि किसी की मौत सन्निकट हो तो कुत्ते को यमदूत नजर आते हैं और वह उसके घर के बाहर जोर से रोना शुरू कर देता है।
अन्य पशु-पक्षियों को भी प्रकृति के संकेत समझ में आते हैं। यह पुरानी मान्यता है कि कौआ छत की मुंडेर पर कांव-कांव करे तो वह मेहमान के आने का इशारा होता है। इसी प्रकार चिडिय़ा अगर धूल में नहाए तो उसे बारिश के आने का संकेत माना जाता है। यह वैज्ञानिक तथ्य ही है कि बारिश के आगमन से पहले चींटियों सहित अन्य जंतु ऊंचे स्थान पर अपने अंडे शिफ्ट करते हैं। इसी प्रकार मोर भी बारिश के आगमन की पूर्व सूचना देते हैं। नक्षत्र भी बारिश के बारे में संकेत दिया करते हैं। जैसे अगस्त्य नामक तारे का उदय हो तो मान लीजिए कि बारिश समाप्त होने वाली है। कहावत है- अगस्त ऊगा, मेह पूगा। इसी कड़ी में कहावत है कि जे मंडे तो धार न खंडे, अर्थात यदि बारिश फिर भी हो जाए तो मान कर चलिए कि बारिश जम कर होगी, थमेगी ही नहीं।
अकाल पडऩे के बारे में नक्षत्र संकेत देते हैं, वो यह कि अक्षय तृतीया पर रोहणी नक्षत्र न हो, रक्षाबंधन पर श्रवण नक्षत्र न हो और पौष की पूर्णिमा पर मूल नक्षत्र न हो तो अनावृष्टि की आशंका होती है। इसको लेकर कहावत है- अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय। पो ही मूल न होय तो, म्ही डूलंती जोय।
मान्यता ये भी है कि आप कहीं जा रहे हैं और अचानक बिल्ली रास्ता काट जाए तो किसी अनिष्ट का सूचक माना जाता है। इसी कारण लोग कुछ समय रुक कर फिर रवाना होते हैं ताकि अनिष्ट के पल टल जाएं।
यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढ़े तो समझना चाहिए कि इतनी वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसकी कहावत है – उलटे गिरगिट ऊँचे चढै। बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
एक कहावत है- अम्मर रातो, मेह मातो, यानि कि अगर आसमान में लालिमा हो तो समझिये बारिश जोरदार पडऩे वाली है। इसी क्रम में कहते हैं- अम्मर हरियो, चूव टपरियो। अर्थात आसमान में हरीतिमा दिखाई दे तो वह सामान्य बारिश होने का संकेत है।
ऐसी मान्यता है कि यदि तीतर के पंख बादल जैसे रंग के हो जाएं तो पक्का जानिये कि बारिश होगी ही, जिसमें कोई संदेह नहीं है। इसकी कहावत है:- तीतर पंखी बादळी, विधवा काजळ रेख, बा बरसै बा घर करै, ई में मीन न मेख। यदि रात में विचरण करते वक्त ऊंटनी को आलस्य आए या वह ऊंघने लगे तो इसका मतलब है कि बारिश की उम्मीद है। एक कहावत है कि अत तरणावै तीतरी, लक्खारी कुरलेह। सारस डूंगर भमै, जदअत जोरे मेह। इसका अर्थ है कि तीतरी जोर से आवाज करे, लक्कारी कुरलाए, सारस ऊंचे स्थान का चयन करे तो तेज बारिश आ सकती है।
इसी प्रकार कहते हैं कि बारिश के मौसम में लोमड़ी ऊंचे स्थान पर खड्डा खोद कर अपना विश्राम स्थल बनाए और उछल-कूद करे तो समझिये अच्छी बारिश होगी। इसकी कहावत है- धुर बरसालै लूंकड़ी, ऊंची घुरी खिणन्त। भेळी होय ज खेल करै, तो जलधर अति बरसन्त।
ऊंटनी भी बारिश का संकेत जमीन पर पैर पटक कर, एक स्थान पर न टिक कर और बैठने से आनाकानी करके यह संकेत देती है कि बारिश जरूर आएगी। इसकी कहावत है- आगम सूझे सांढणी, दौड़े थळा अपार। पग पटकै बैसे नहीं, जद मेह आवणहार।
यूं आदमी में भी प्रकृति के कुछ संकेत पकडऩे की क्षमता होती है। जैसे कहीं जाते वक्त अचानक छींक आ जाए तो उसे अनिष्टकारी माना जाता है और कुछ पल ठहर कर यात्रा आरंभ की जाती है। इसी प्रकार यदि बच्चा झाड़ू लगाए तो माना जाता है कि कोई मेहमान आने वाला है।
ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए निकलते हैं तो शव यात्रा, झाडू़ लगाती महिला सफाई कर्मचारी, पानी का घड़ा भर कर लाती महिला आदि के सामने आने को शुभ माना जाता है। अर्थात जिस कार्य के लिए हम जा रहे हैं, उसके संपन्न होने की पूरी संभावना होती है। ठीक इसके विपरीत विधवा महिला, धोबी या स्वर्णकार का सामना होने सहित अन्य कई दृश्य निर्मित होने को अच्छा नहीं माना जाता। यानि कि हमने अनुभव के आधार पर प्रकृति के संकेतों को समझने की कोशिश की है। कई लोग आसमान में वायु व बादलों की हरकतों से यह बता देते हैं कि इस बार बारिश कब आएगी और कितनी आएगी।
लब्बोलुआब, प्रकृति बहुत रहस्यपूर्ण है और उसके इशारों को समझने में पशु-पक्षी हमसे कहीं अधिक सक्षम हैं।

-तेजवानी गिरधर
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