कार्यरत पद से नीचे के पद का कार्य नहीं लेने के आदेश

jaipur newsजयपुर, राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिकरण, जयपुर द्वारा अप्रार्थी संस्था को निर्देश देते हुये आदेश पारित किया कि वह प्रार्थीगणों को दिनांक 25.01.92 के अनुसार चयनित वेतनमान का लाभ प्रदान करें तथा प्रार्थीगण जिस पद पर कार्यरत है उस पद से नीचे के पद पर यानि चतुर्थ श्रैणी कर्मचारी का कार्य करने हेतु प्रार्थीगण को बाध्य नहीं करे। उल्लेखनीय है कि प्रार्थीगण दाऊदयाल शर्मा एवं त्रिलोकी नाथ शर्मा की नियुक्ति अप्रार्थी संस्था में क्रमश: लाईब्रेरियन एवं कनिष्ठ लिपिक के पद पर क्रमश: दिनांक 02.06.1989 एवं 14.10.89 को हुई थी। प्रार्थीगण ल बे समय से अप्रार्थी संस्था ने कार्य कर रहे है किन्तु उन्हें चयनित वेतनमान का लाभ नहीं प्रदान किया गया एवं उन्हे वेतन का भुगतान भी मई, 2003 से किया गया। इस संबंध में प्रार्थीगण अधिवक्ता डी. पी. शर्मा का तर्क था कि राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिनियम 1989 की धारा 29 तथा नियम 34 के अनुसार प्रार्थीगण राजकीय कर्मचारियों के समान वेतन भत्ते प्राप्त करने के अधिकारी है परन्तु संस्था के द्वारा उक्त लाभ राजकीय कर्मचारियों के अनुसार नहीं दिया गया तथा प्रार्थीगण को लाईब्रेरियन तथा कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत रहने के बावजूद भी चतुर्थ श्रैणी कर्मचारी का कार्य भी करने हेतु बाध्य किया जा रहा है। मामले की सुनवाई के पश्चात् अधिकरण ने आदेश दिया कि प्रार्थीगणों को चयनित वेतनमान तथा वेतन भत्ते की राशि पर ब्याज प्रावधायी निधि विभाग के अनुसार देने के आदेश दिये।

छठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन स्थिरीकरण कर पुनरीक्षित वेतनमान की राशि का भुगतान बकाया होने की दिनांक से ब्याज सहित भुगतान के आदेश
जयपुर, राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिकरण, जयपुर ने अप्रार्थी संस्था प्रबन्ध समिति डी.ए.वी. सीनियर सैकण्डरी स्कूल, केसरगंज अजमेर (राज.) को आदेश दिया कि वे छठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन स्थिरीकरण कर पुनरीक्षित वेतनमान की राशि का भुगतान बकाया होने की दिनांक से ब्याज सहित प्रार्थीगण उमेश्वर मिश्रा व मुकेश दुबे को करे। उल्लेखनीय है कि प्रार्थीगण उमेश्वर मिश्रा व मुकेश दुबे ने प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर उक्त लाभ अप्रार्थी संस्था से दिलाने के लिए माननीय अधिकरण से निवेदन किया। प्रार्थी उमेश्वर मिश्रा की तृतीय श्रेणी अध्यापक के पद पर आदेश दिनांक 1-3-1996 से तथा मुकेश दुबे की इसी पद पर आदेश दिनांक 24-9-1994 से अप्रार्थी संस्था में नियुक्ति हुई। जो चयन समिति द्वारा स पूर्ण प्रक्रिया अपनायी जाकर हुई थी। अप्रार्थी संस्था राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त होते हुए 80 प्रतिशत अनुदान प्राप्त करती है। जिसने विभिन्न तरीके अपनाकर कर्मचारियों को तंग व परेशान करने का मानस बना रखा था। प्रार्थीगण ने अप्रार्थी संस्था से छठे वेतन आयोग के अनुसार बकाया वेतन देने का निवेदन किया। परन्तु अप्रार्थी संस्था ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रार्थीगण के अधिवक्ता डी.पी.शर्मा का तर्क था कि राजस्थान सिविल सर्विसेज (रिवाईज पे स्केल ) रूल्स, २००८ का लाभ राज्य सरकार के अधीनस्थ कर्मचारियो को दिनांक 1-9-2006 से दिया गया था तो मान्यता प्राप्त संस्था के कर्मचारी भी इसका लाभ उसी अनुसार प्राप्त करने के अधिकारी था। प्रार्थीगण ने अप्रार्थीगण की सेवा को जून, 2011 में छोडा है इसलिये इससे पूर्व के समस्त सेवा लाभ वे अप्रार्थी संस्था से प्राप्त करने के अधिकारी है। मामले की सुनवाई के पश्चात् अधिकरण ने प्रार्थीगण को छठे वेतन आयोग का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी मानते हुए उक्त लाभ बकाया होने की दिनांक से ब्याज सहित भुगतान करने के आदेश अप्रार्थी संस्था को दिये।

बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये सेवा समाप्ति आदेश को निरस्त कर पुन: सेवा में बहाली के आदेश
(राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक अधिकरण का मामला)
जयपुर, राजस्थान विद्यापीठ कुल उदयपुर के तहत संचालित प्रबन्ध समिति, हरिभाउ उपाध्याय महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय हटुण्डी अजमेर में कार्यरत व्या याता श्रीमती उषा राठौड़ व डॉ. बीना सिंह की अपील स्वीकार करते हुये सेवा समाप्ति के आदेशों को निरस्त करते हुये सभी लाभ परिलाभ सहित सेवा में बहाली के आदेश देते हुये राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिकरण ने व्यवस्था दी है कि सेवा समाप्ति से पूर्व अधिनियम 1989 की धारा 18 व नियम 1993 के नियम 39 की पालना करना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि उक्त दोनों व्या याताओं की नियुक्ति क्रमश: 09.11.1998 तथा 26.08.1997 को हुई थी तथा उक्त संस्था केन्द्र सरकार से योजनाओं के तहत अनुदान प्राप्त करती है। संस्था के द्वारा समय-2 पर नियुक्ति पत्र जारी कर नियुक्तियॉं दी गई तथा नियुक्तियॉं संविदा पर दिखाई गई। अन्त में दिनांक 22.08.2008 को सेवामुक्त कर दिया जिससे प्रार्थीगण ने अधिवक्ता डी.पी. शर्मा के माध्यम से चुनौती दी और तर्क दिया गया कि सेवा समाप्ति से पूर्व अधिनियम 1989 की धारा 18 व नियम 1993 के नियम 39 की पालना नहीं की गई जिसके तहत यह व्यवस्था है कि सेवा समाप्ति से पूर्व 6 माह का नोटिस या उसके बदले वेतन तथा शिक्षा निदेशक की पूर्व सहमति आवश्यक है। इसी प्रकार यदि आरोप के द्वारा सेवा से हटाया जाता है तो उसे सुनवाई का अवसर देने आवश्यक है परन्तु संस्था के द्वारा सेवा समाप्ति से पूर्व नियमों की कोई पालना नहीं की गई। इसके विपरीत संस्था की तरफ से तर्क दिया गया कि नियुक्ति निश्चित अवधि के लिये थी इसलिये अनुबन्ध समाप्ति के पश्चात्् किसी प्रकार की प्रक्रिया की पालना करना आवश्यक नहीं था। प्रार्थी के अधिवक्ता का तर्क था कि प्रार्थीगण की नियुक्ति विज्ञापन के तहत चयन समिति के द्वारा चयनित होने के उपरान्त की गई थी ऐसी स्थिति में उसे संविदा पर नियुक्ति दिखाना गैर कानूनी है। अत: नियुक्ति को नियमानुसार माना जाना चाहिये। मामले की सुनवाई के पश्चात् अधिकरण ने उक्त आदेश प्रदान किये।

डी. पी. शर्मा
अधिवक्ता
मो. 9414284018

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