डांगी का संथारा हुआ पूर्ण, बैकुंठी निकाली

20SHP1-मूलचन्द पेसवानी. शाहपुरा- स्थानीय डांगी मौहल्ला निवासी सुश्राविका कानजी बाई डांगी पत्नी स्वश्री सुरेंद्रसिंह डांगी का संथारा पूर्वक देवलोकगमन रविवार को हो गया। उन्होंने शनिवार को संथारा ग्रहण किया था। उन्हें संथारा पचक्खान (अर्थात आयुष्य पूर्ण होने तक अन्न जल के त्याग का संकल्प) लेने के कारण आज  देवलोकगमन पर उनकी आज बैकुंठी निकाली गयी। डोलयात्रा में बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद थे। फुलियागेट बाहर स्थित वेणीमोहन गुरूधाम के पास मोक्षधाम में अंतिम संस्कार किया गया।
एक प्रहर संथारा बीतने के बाद डांगी ने अंतिम सांस ली। इस दौरान परिवारजन उन्हें णमोकार मंत्र, नवपद स्मरण, मांगलिक आदि का श्रवण कराते रहे। संथारे की खबर स्थानीय समाज के साथ ही अन्य स्थानों के  भक्तों तक भी जंगल में आग की तरह फैल गई। उनके दर्शन के लिए श्रद्घालुओं की लंबी कतार लगी।
20SHP2डोलयात्रा में सबसे आगे बैंड चला। पार्थिक देह को डोल में बिठा कर वाहन में शोभायात्रा के रूप में काला भाटा जैन मंदिर के यहां से प्रांरभ किया गया जो कोठार मोहल्ला, नया बाजार, सदर बाजार, बालाजी की छतरी सहित शहर के प्रमुख मार्गो से होती हुई शोभायात्रा फुलियागेट मोक्षधाम पहुंची। इसमें बड़ी संख्या में समाज के महिला-पुरुष शामिल हुए। इसमें जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार अनिल लोढ़ा, जैन महासभा के कंवरलाल सूरिया के अलावा आस पास के श्रावक संघों के पदाधिकारी मौजूद थे। बाद में वर्धमान भवन में गौतम प्रसादी का आयोजन भी किया गया। उल्लेखनीय है कि जैन धर्म मानता है कि जीवन की नश्वरता का सत्य सार्वभौम है। हर प्राणी को एक दिन मरना होता है, लेकिन कुछ व्यक्ति मृत्यु को हंसकर एक वीर की तरह गले लगाते हैंं। जैन समाज में भी मृत्यु को तप के साथ स्वीकार करने का प्रावधान है। जिसे संथारा कहते है।
दीक्षित होना चाहती थी कानजी बाई
संथारा लेने वाली कानजीबाई डांगी अपने भाई संतोकसिंह चौधरी के साथ ही जैन साध्वी की दीक्षा लेने वाली थी। अंतिम समय में परिवारजनों द्वारा अनुमति न देने से कानजीबाई साध्वी की दीक्षा नहीं ले सकी। उनके भाई ने तो दीक्षा ग्रहण कर ली थी। तब से ही कानजीबाई पूर्ण रूप से धार्मिक प्रवति की हो गयी थी। उनका हमेशा धार्मिक कार्यो में विश्वास था तथा जीवन इसी में व्यतीत किया।
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