खतरों से खेलते है आरटीआई कार्यकर्ता और पत्रकार

28_06_2013-28Allparties1सूचना के अधिकार के तहत सरकारी विभागों से जानकारी मांगने पर देशभर में अब तक कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान पर मंडराने वाला यह खतरा अब धीरे-धीरे राजस्थान की ओर बढ़ रहा है। कानून  की छत्रछाया होने के बावजूद आरटीआई कार्यकर्ताओं को धमकियां मिलने का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा। दरअसल सरकारी विभाग और सरकारी बाबू हमेशा से सरकारी गोपनीयता कानून के किले में सुरक्षित रहे हैं। जब तक यह किला अभेद्य रहा, तब तक सरकारी बाबू सांड की तरह सरकारी परियोजनाओं की मलाई डकारते रहे। सरकारी गोपनीयता कानून का किला कितना सुरक्षित था कि सरकारी बाबूओं को कभी माल डकारने के बाद न तो जुगाली करने की जरूरत पड़ी और न उन्होंने डकार ली, लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 ने गोपनीयता कानून के किले की दीवारों को तहस-नहस करके रख दिया। आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपनी सूझ-बूझ, दिलेरी और जान हथेली पर रखकर अनेक मौके पर यह साबित किया कि भ्रष्टाचार के हमाम में सरकारी बाबू नंगे हैं। जान जोखिम का ख़तरा ख़ोजी पत्रकारों पर हमेशा से मंडराता रहा, लेकिन खोजी पत्रकार सदैव सच को सामने लाने के लिए तत्पर हैं, खतरे की इसी कड़ी में आखिरी नींद सुला दिया गया, एक जाने-माने  खोजी पत्रकार को, जोकि हमेशा लोकहित में अपराध, अंडरवल्र्ड, पुलिसिया करतूत का खुलासा करने में माहिर थे। इसके अलावा झूठे मामले कितने पत्रकारों पर लादे गए, कितने जेल गए और कितनों की हत्या कर दी गई इसका इतिहास लिखने वाला खुद इतिहास बन जाएगा, लेकिन इनकी दमन गाथा सामाप्त नहीं होगी। कौन हैं आखिर का इनका दमन करने वाले? देश की जनता को जानने का हक है, वह हैं जनविरोधी, देशविरोधी गतिविधियों को निजी लाभ के चलते अंजाम देने वाले। इस तरह के सफेदपोश शासन में होते हैं तो प्रशासन को अपनी ऊंगलियों पर नचा कर देश के सजग प्रहरियों का दमन करते हैं, जब वह प्रशासन में होते हैं तो शक्ति का दुरुपयोग कर उनका दमन करते हैं, जब वह समाज के बीच होते हैं तो ‘प्रोटेक्शन मनी’ देकर भ्रष्ट पुलिसकर्मियों से खोजी पत्रकारों का दमन तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर करवाते हैं। लोकहित को अपना प्रथम कर्त्तव्य मानने वालों का दमन कब बंद होगा? शायद इसका जवाब आज किसी के पास नहीं है।।
Jagdish sen panawara

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