राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता व उसके उन्नयन संबंधी अन्य मांगें

डॉ राजेंद्र बारहठ
डॉ राजेंद्र बारहठ

आदरजोग,
मुख्यमंत्री महोदया,
राजस्थान सरकार, जयपुर।

विषय: राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता व उसके उन्नयन संबंधी अन्य मांगें।

राजस्थानी भाषा जो आजादी पूर्व राजस्थान, मालवा, उमरकोट (पाकिस्तान) की राजभाषा थी, जिसकी मेवाड़ी, ढूंढाडी, मेवाती, हाड़ौती, वागड़ी, माळवी, ब्रज, मारवाड़ी, भीली, पहाड़ी, खानाबदोषी आदि बोलियां एवं डिंगळ-पिंगळ शास्त्रीय कविता की शैलियां हैं। इसके लाखों हस्तलिखित ग्रंथ शोध संस्थानों में प्रकाशन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सिंधी, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, मराठी के आदिकाल मध्यकाल राजस्थानी लिपि मुड़िया में ही है। हमारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी, वर्तमान गुजराती, पंजाबी की लिपियां इसी से विकसित हुई हैं। राजस्थानी के गीत छंद के 120 भेद हैं, जो विश्व की किसी भी भाषा के छंद शास्त्र में नहीं हैं। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों यू.जी.सी. में शिक्षण व शौध की भाषा है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं, टी.वी. चैनल में प्रसारण राजस्थानी में हो रहा है। नाटक व फिल्मों में अभिनय व रंगकर्म का श्रेष्ठ माध्यम साबित हो रही है। अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की समृद्धतम 13 भाषाओं में से एक मानते हुए पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया की 75 मिनट की रिकार्डिंग कर संग्रह में रखी है। शिकागो, मॉस्को, बर्लिन, केम्ब्रिज व विश्व के समृद्धतम विश्वविद्यालयों में राजस्थानी एक विषय रूप में है। पाकिस्तान में ‘राजस्थानी कायदो’ नाम से व्याकरण चलती है। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर एवं भारत सरकार की साहित्य अकादमी एवं अन्य देश दुनिया के साहित्यिक मंचों से राजस्थानी सृजनधर्मियों ने राजस्थानी को प्रतिष्ठापित किया है। राजस्थानी भाषा को संविधान की 8 वीं अनुसूची में जोड़ने के लिए राजस्थान विधानसभा ने 25 अगस्त, 2003 को सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार के पास भेज दिया, जो वहां लंबित है। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति प्रदेश व देश-दुनियां में राजस्थानी मान्यता का आन्दोलन अग्रिम संगठन राजस्थानी मोट्यार परिषद्, राजस्थानी चिंतन परिषद्, राजस्थानी महिला परिषद्, राजस्थानी खेल परिषद्, राजस्थानी फिल्म परिषद व सैकड़ों साहित्य, समाज, संस्कृति की संस्थाओं के माध्यम से चला रही है। हजारों बैठकें, गोष्ठियां, सम्मेलन, धरने, प्रदर्शन, रैलियां, मुखपत्ती सत्याग्रह जैसे आयोजन हुए हैं। केन्द्र सरकार ने राजस्थानी को अब तक मान्यता नहीं देकर जन भावनाओं एवं प्रदेश का अपमान किया है।
राज्य सरकार भी राजस्थानी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बहुत कुछ कर सकती है।
कुछ मांगें इस प्रकार हैं-

राज्य सरकार से मांगें
1. केन्द्र को राजस्थानी मान्यता के लिए पत्र लिखें और इस हेतु सक्रिय प्रयास करें। प्रदेश के सभी सांसदों को भी इस मांग को प्रमुखता से उठाने हेतु निर्देशित करें।
2. केन्द्र के समक्ष राजस्थान की मांगें रखते हुए राजस्थानी भाषा को मान्यता की मांग को प्राथमिकता दी जाए।
3. राजस्थानी को राज्य की दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया जाए। यह काम राज्य सरकार ही कर सकती है।
4. अनिवार्य शिक्षा कानून की पालना में राज्य की प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा राजस्थानी किया जाय।
5. विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में राजस्थानी शिक्षकों के खाली पद भरे जाएं एवं जहां विभाग नहीं है वहां खोले जाएं।
6. राजस्थान लोक सेवा आयोग में अनिवार्य व ऐच्छिक विषय के रूप में राजस्थानी शुरू किया जाय।
7. सरकारी खरीद में राजस्थानी की पुस्तकों का प्रतिशत तय किया जाय।
8. सरकारी आयोजनों में राजवुड व अन्य राजस्थानी कलाकारों एवं कवियों को ही बुलाया जाय।
9. राजस्थान रोड़वेज के दरवाजों पर ‘पधारो सा’ एवं बसों पर ‘पधारो म्हारै देस’ लिखा जाय।
10. राजस्थानी अकादमी को सिरमौर अकादमी घोषित की जाय एवं इसका बजट 5 करोड़ किया जाय, साथ ही अकादमी अध्यक्ष को केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाय।
11. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी व राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष यथाशीघ्र नियुक्त किए जाएं।
12. राजस्थानी फिल्मों को मनोरंजन कर से मुक्त किया जाय।
13. राजस्थानी फिल्मों हेतु अनुदान दिया जाय।
14. राजस्थानी फिल्म शूटिंग लोकेशन फ्री की जाय।
15. प्रदेश के सिनिमाघरों में राजस्थानी फिल्म सप्ताह में एक दिन अनिवार्य रूप से दिखाने का नियम बनाया जाय।
16. राजस्थानी फिल्म डवलपमेन्ट कार्पोरेशन का गठन किया जाय।
17. सरकारी विभागों के विज्ञापन राजस्थानी में प्रसारित किए जाय।
18. प्रदेश में योजनाओं या संस्थानों आदि के होने वाले नामकरणों में राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास से जुड़े महापुरुषों के नामों को ही प्राथमिकता दी जाए।

संघर्ष समिति सरकार से राजस्थानी भाषा-संस्कृति के सवाल पर अपील करती है कि वे अपना मायड़भाषा के प्रति फर्ज निभाएं। कोई भी सरकार जनवाणी का सम्मान करके ही जनप्रिय व सच्ची जनतंत्री हो सकती है। जनवाणी की उपेक्षा से जनभावना की उपेक्षा होती है। जनतंत्र की जड़ें कमजोर होती है। वर्तमान सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस संबंध में कई घोषणाएं की थीं और यही वजह थी कि राजस्थान की जनता का पूरा समर्थन इस दल को मिला। अतः अब समय आ गया है कि राज्य सरकार अपना फर्ज निभाए और राजस्थानी जनता से किए गए वायदों को पूरा करे।
जै राजस्थान, जै राजस्थानी।
अरजवंत
डॉ. राजेन्द्र बारहठ
प्रदेश महामंत्री

परम आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी सा,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली।

विषय: राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता हेतु निवेदन।

मान्यवर,
हमें प्रसन्नता है कि आपने हिन्दी के विकास में विश्वस्तरीय प्रयासों की शुरुआत कर भारत का गौरव बढ़ाया है। संविधान के अनुच्छेद 351 से यह स्पष्ट होता है कि 8 वीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली व पदों को आत्मसात कर शब्द-भंडार को बढ़ाते हुए हिन्दी विकास करेेगी। जबकि राजस्थानी भाषा को अब तक आठवीं अनुसूची में शामिल न किए जाने से यह हिन्दी के विकास की वैधानिक भागीदार नहीं बन पाई है। अतः राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किए जाने के संबंध में बिन्दुवार निवेदन है कि-

विधानसभा का संकल्प और केन्द्र की सैद्धांतिक सहमति:
25 अगस्त को राजस्थानी मान्यता हेतु राजस्थान विधानसभा में लिए गए सर्वसम्मत संकल्प को 11 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। 25 अगस्त 2003 के संकल्प के तुरंत बाद राज्य सरकार ने केन्द्र को पत्र लिखा। 17 दिसंबर 2006 को लोकसभा में तत्कालीन गृहराज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने घोषणा की कि ‘राजस्थानी एवं भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु केन्द्र सरकार ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है और बजट सत्र 2007 में इस हेतु विधेयक आ जाएगा। इसके लिए सरकार कृत संकल्प है।’ श्री जायसवाल ने उन दिनों यह बयान 5-7 बार अलग-अलग जगहों पर दोहराया भी था।

आपत्तियां एवं उनका निराकरण:
तत्पश्चात गृह मंत्रालय ने कहा कि रिजर्व बैंक के गर्वनर का पत्र आया है कि नोट पर लिखने के लिए जगह नहीं है। न्च्ैब् के अध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा कि आयोग की परीक्षाओ ंमें इससे कार्यभार बढ़ जाएगा। मान्यवर, नौकरशाही द्वारा पैदा की गई यह तकनीकी समस्या मान्यता में बाधा व देरी का कारण बनी। जबकि सर्वविदित है कि नोट पर 15 भाषाएं लिखी हैं एवं 8 वीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं। इसलिए रिजर्व बैंक की आपत्ति अर्थहीन साबित हो गई है। 2013 के शुरू में केन्द्र सरकार में एक कमेटी बनी जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आठवीं अनुसूची में जोड़ने हेतु न्च्ैब् का अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यक नहीं है। इससे पूर्व डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के प्रथम कार्यकाल में 8 वीं अनुसूची में भाषाओं को जोड़ने हेतु श्री सीताकान्त महापात्र समिति बनी जिसने राजस्थानी को समृद्ध व सशक्त भाषा माना परन्तु 2035 तक किसी भी भाषा को 8 वीं अनुसूची में नहीं जोड़ने की सिफारिश की। सरकार ने इस समिति की सिफारिश को अस्वीकार कर दिया। रिजर्व बैंक व न्च्ैब् की दोनों तकनीकी समस्याओं से भी निजात मिल गई है। अब राजस्थानी भाषा को 8 वीं अनुसूची में जोड़ने में कोई सरकारी तकनीकी समस्या नहीं रह गई है।

मान्यता से होने वाले प्रमुख लाभ:
आप जानते हैं कि डोगरी, मैथिली, संथाली सहित देश की 22 भाषाओं के माध्यम से प्।ै बनने की सुविधा है, जब कि देश की अत्यंत समृद्ध और बड़े समुदाय की भाषा राजस्थानी में यह सुविधा नहीं प्रदान की जाती। संवैधानिक मान्यता होने से प्।ै की मुख्य परीक्षा में 2000 में से 600 अंक का राजस्थानी भाषा-साहित्य का प्रश्न पत्र एवं राजस्थानी माध्यम की सुविधा देश के अन्य प्रांतों के युवाओं के समान राजस्थानी युवा को मिल सकेगी। केन्द्र की अन्य समस्त नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में अन्य राज्यों के युवाओं के समान राजस्थानी युवाओं को अपनी भाषा की सुविधा मिल सकेगी। त्।ै सहित प्रदेश की अन्य नौकरियों में राजस्थानी को तवज्जो मिलने से राजस्थान में राजस्थान मूल के प्रतिभागियों को प्राथमिकता मिल सकेगी। अन्य प्रांतों की भांति राजस्थान के बालक-बालिकाओं को भी अपनी भाषा में पढ़ने का अधिकार मिल सकेगा।

हमारा निवेदन:
राजस्थानी भाषा को 8 वीं अनुसूची में जोड़ने की मांग अब सम्पूर्ण राजस्थानियों द्वारा प्रदेश व प्रवास से जोर-शोर से उठाई जा रही है। जनगणना 2011 में भी राजस्थान के 4 करोड़ 83 लाख लोगों ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करवाई है। प्रवासी राजस्थानियों की संख्या भी कम नहीं है। वहीं ‘घूमर’ लोकनृत्य को दुनिया के टोप टैन नृत्यों में चौथा स्थान मिलना, अमेरिका की लायब्रेरी ऑफ कांग्रेस द्वारा राजस्थानी को दुनिया की तेरह समृद्धतम भाषाओं में शुमार किया जाना, अमेरिका सरकार की नौकरियों के लिए राजस्थानी को मान्यता दिए जाने सहित कई ऐसे प्रमाण हैं जो राजस्थानी को समृद्ध और बड़े समुदाय की भाषा ठहराते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा शब्दकोश, ढाई हजार वर्षों का इतिहास, साढे तीन लाख हस्तलिखित व 25 हजार प्रकाशित ग्रंथ आदि इस भाषा की अन्य विशेषताएं हैं।
निवेदन यह भी है कि लगभग हर प्रांत में अपनी-अपनी भाषाएं प्रथम राजभाषा का दर्जा हासिल किए हुए है। वहीं हिन्दी प्रांत कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में उर्दू, दिल्ली में पंजाबी व उर्दू, हरियाणा में पंजाबी द्वितीय राजभाषाओं का दर्जा हासिल हैं। छतीसगढ़ में छतीसगढ़ी राजभाषा है और बिहार की मैथिली संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, जबकि राजस्थानियों की मातृभाषा राजस्थानी उपेक्षित है। राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी विधायक को अपनी मातृभाषा में शपथ लेने तक का अधिकार नहीं है, जबकि नेपाल की संसद में राजस्थानी में शपथ लेने व बोलने की सुविधा है। नेपाल सरकार का अखबार ‘गोरखा-पत्र’ पाक्षिक एक पृष्ठ राजस्थानी में छापता है। राजस्थान के स्कूलों में उर्दू, सिंधी, पंजाबी, गुजराती, संस्कृत आदि भाषाएं तृतीय भाषाओं के रूप में पढ़ाई जाती हैं, मगर राजस्थानी बालक को अपनी मातृभाषा तृतीय भाषा के रूप में ही पढ़ने का अधिकार नहीं है। राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलने से वह राज्य के स्कूलों में तृतीय भाषा बनने की अधिकारिणी तो बन ही सकेगी।
हमें प्रसन्नता है कि राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए मौजूदा सरकार प्रतिबद्ध है। राजस्थान की वर्तमान भाजपा सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस बात को शामिल किया है। जो घोषणा पत्र अब सरकारी दस्तावेज बन चुका है। जिसके लिए आपका आभार। वहीं लोकसभा व राज्यसभा में भाजपा सांसदों ने इस मुद्दे को कई बार प्रमुखता से उठाया है। अतः निवेदन है कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में आप राजस्थानी भाषा को शामिल करवाकर राजस्थान का गौरव बढ़ाएं। ऐसा होने से राजस्थान ही नहीं पूरे देश के प्रांतों व विदेशों से राजस्थानी समाज में हर्ष होगा एवं इस काम में अग्रणी नेताओं के साथ-साथ आपकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ेगी। अन्य दलों से ताल्लुक रखने वाले राजस्थानी भाषा प्रेमियों का स्वाभाविक झुकाव आपकी ओर होगा। इस काम का यश आपको पूरे देश व विदेश से भी मिलेगा एवं राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण मिलेगा। अतः संसद के आगामी सत्र में राजस्थानी भाषा को 8 वीं अनुसूची में जुड़वाने का पुनीत एवं ऐतिहासिक काम आप करवाएं। आपसे ही अपेक्षा है। क्योंकि मातृभाषा का महत्त्व आप जानते हैं। इतिहास में इस काम के लिए आप राजस्थानी समाज द्वारा सराहना के भागीदार होंगे।

अरजवंत
डॉ. राजेन्द्र बारहठ
प्रदेश महामंत्री

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