पं. दीनदयाल उपाध्याय नाम से देश भर में भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण किसे दिया जाता है यह हर कोई समझ सकता है। जिसको कोई ज्ञान नहीं हो उसे ही ज्ञान देने के लिए सस्कार शिविर होते है। ऐसा ही कुछ शाहपुरा की भाजपा के साथ हो रहा है। आज पं. दीनदयाल उपाध्याय महाप्रशिक्षण शिविर के नाम से धरती देवरा में कुछ ऐसा ही हुआ। शिविर में इस बात पर सर्वाधिक ज्यादा चिंतन करने की आवश्यकता है कि वहां मौजूद लोग पं. उपाध्याय के जीवन से कितनी प्रेरणा ले रहे है। शिविर में संभागी कौन होगें प्रदेश स्तर से गाइड लाइन जारी हो चुकी है पर शिविर में मौजूद कौन है, किसे सूचना दी गई, किसे जानबूझ कर सूचना नहीं दी गई तथा वास्तव में सहभागिता कौन निभा रहे है यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। हद तो तब हो जाती है जब फतवे की राजनीति से त्रस्त वास्तविक संभागी ही इससे दिन भी दूरी बनाये रहे।
यहां याद दिलाना उचित रहेगा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के दिन संगोष्ठि के आयोजन का बहिष्कार करने का फतवा जारी करने वालों को भी बताना होगा कि जयंती पर संगोष्ठि में जाने से कार्यकर्ताओं को तो रोक लिया अब बड़े नेताओं की मौजूदगी में हो रहे शिविर के लिए भी तो फतवा जारी कर देते तुम्हारा क्या बिगड जाता। पार्टी तो नगर पालिका चुनाव में तुम्हारे कर्मो से गर्त में डूब ही गई।
यह स्थिति केवल नगर में हो ऐसा भी नहीं है ग्रामीण मंडल की राजनीति करने वालों के भी माझने यही है। मंच पर बैठकर भले ही अपनी रहनुमाई समझ ले पर उन नेताओं के धरातल पर क्या हालात है। उनके कहे अनुसार कितने लोगों को एकत्र किया जा सकता है। ऐसे नेताओं को जब तक पं. उपाध्याय के नाम पर हो रहे शिविरों में बेनकाब नहीं किया जायेगा तब तक संगठन की मजबूती कैसे होगी यह समझ से परे है।
मूलचंद पेसवानी