नरेगा पर हुई राज्य स्तरीय जन सुनवाई

नरेगा के लचर क्रियान्वयन पर राज्य भर से आये लोगों ने जताया आक्रोश
नरेगा आयुक्त (सचिव) से मिलकर सौंपा मांग-पत्र

photo 2फ़िरोज़ खान बारां, ( राजस्थान ) ।जयपुर, 6 जून / सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान द्वारा लगाये धरने के छठे दिन आज प्रदेश के 20 जिलों से भी अधिक जगह से आये लोगों ने नरेगा पर हुई जन सुनवाई में भाग लिया और मनरेगा की जमीनी सच्चाई बताई जिसमें विभिन्न मुद्दे निकलकर आये. लोगों ने यहाँ माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नरेगा, अकाल प्रबंधन, खाध्य सुरक्षा और अन्य मुद्दों पर दिए गए 13 मई के निर्णय की पालना नहीं होने की बात भी की.
उल्लेखनीय है कि पिछले 1 जून से शहीद स्मारक पर एक ‘जवाब दो’ धरने का आयोजन किया जा रहा है. इस धरने की प्रमुख मांग सरकारी तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक पुख्ता कानून बनाने और साथ ही नरेगा, राशन, पेंशन, शिक्षा, स्वास्थय, खनन और वन अधिकार, दलित एवं महिला अधिकार सहित कई अन्य मुद्दे शामिल हैं.
आज की जनसुनवाई में नरेगा के पूर्व आयुक्त रहे श्री राजेंद्र भानावत, प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफे. वी. एस. व्यास, अरुणा रॉय, कविता श्रीवास्तव, अशोक खंडेलवाल, प्रेम किशन शर्मा, हरकेश बुगालिया, तथा अन्य गणमान्य नागरिक मौजूद थे.
नरेगा पर हुई जन सुनवाई के बाद उपस्थित लोगों ने ध्वनि मत से कुछ प्रस्ताव पास किये जिन्हें एक मांग-पत्र के तौर पर नरेगा आयुक्त से मिलकर उन्हें सौंपा गया.

इस मांग पत्र की प्रमुख मांगें निम्नानुसार हैं –
1. अकाल प्रभावित इलाकों में 150 दिन तक काम दिया जाये: 13 मई 2016 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नरेगा के सम्बन्ध में दिए गए निर्णय की तुरंत पालना कराई जाये जिसमें सबसे पहले राज्य के अकाल घोषित इलाकों में लोगों को 150 दिन का काम मिले इस प्रकार का आदेश राज्य सरकार द्वारा सभी जिलों को भेजा जाये जिससे वहां लोगों द्वारा 100 दिन पूरे करते ही 50 दिन का अतिरिक्त रोज़गार मिल सके.
2. देरी से भुगतान पर मुआवजा: आज भी राज्य में ज्यादातर ग्राम पंचायतों में नरेगा भुगतान 15 दिन में नहीं किया जा रहा है इसकी वजह से नरेगा श्रमिक हतोत्साहित होते हैं क्योंकि उन्हे काम करने के बाद जीविकोपार्जन करने के लिए धन की आवश्यकता होती है और उनकी मजदूरी का भुगतान छः-छः महिने में होता है अतः राज्य सरकार को नरेगा के मजदूरों का भुगतान निर्धारित 15 दिन में कराने की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी और भुगतान में देरी होने पर जितने समय की देरी हुई है उतने समय का ब्याज संबंधित मजदूर के खाते में जमा किया जाना चाहिए और ब्याज की राशि जिम्मेदार सरकारी कर्मचारी/अधिकारियों से वसूला जाना चाहिए. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय में भी कहा गया है कि मजदूरों को 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का भुगतान करना चाहिए यदि भुगतान में देरी होती है और नरेगा के शेड्यूल दो के अनुच्छेद 29 (1) के मुताबिक – मस्टर रोल के बंद होने के 15 दिनों के अन्दर यदि मजदूरी का भुगतान न हो तो मजदूरों को देरी का मुआवजा मिलने का हक है और यह मुआवजा 0.05% की दर से उन्हें मस्टर रोल के बंद होने के 16वें दिन से मिलना चाहिए.
वार्षिक मास्टर सर्कुलर की धारा 2.8.9 भी यह कहती है कि अगर मजदूरी का समय पर भुगतान न हो तो बकाया पेमेंट का स्वतः भुगतान (नरेगासॉफ्ट की गणना के मुताबिक) मजदूर के अकाउंट में सीधा होगा. इसके लिए मंत्रालय में इसी उद्देश्य से बनाये गए अकाउंट से पैसा काट लिया जायेगा. इसे केंद्रीय आवंटन के (राज्य को दिए जाने वाले) हिस्से के एडवांस पेमेंट के तौर पर माना जायेगा और इस पूरे अमाउंट को राज्यों को दिए जाने वाले अगले रिलीज़ में से काट लिया जायेगा. MIS में एक अलग रिपोर्ट ऐसे सारे भुगतानों का ब्यौरा देगी.
3. जॉबकार्ड का अद्यतन: राज्य के सभी जिलों में जॉब कार्ड बने हुए 10 वर्ष हो गए हैं. ये सभी जॉब कार्ड केवल 5 वर्ष के लिए ही बनाये गए थे अब उन सभी जॉब कार्ड्स में पेज समाप्त हो गए और अभी ज्यादातर कार्यक्रम अधिकारी उसी पुराने जॉब कार्ड्स में पेज जोड़कर काम निकाल रहे जिसकी वजह से जॉब कार्ड धारी व्यक्ति को उस पेज को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है इसलिए राज्य सरकार को नए जॉब कार्ड छपवाने चाहिए और इसी सत्र में उनको काम में लेना शुरू किया जाये.
4. सामाजिक अंकेक्षण एवं भ्रष्टाचार: राज्य में नरेगा में भ्रष्टाचार कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है, जवाबदेही यात्रा के दौरान हमें लोगों ने बताया था कि हमारे गाँव में तो JCB से काम करा लिया जाता है और लोगों को 50-60 रुपये का भुगतान कर देते हैं और बाकी बचा हुआ भुगतान JCB मशीन मालिक और ग्राम पंचायत के कार्मिकों और अन्य द्वारा आपस में बाँट लिया जाता है. इसी प्रकार कुछ जिलों से यह शिकायत आई है कि हमारे जिले में तो जॉब कार्ड को आधे बटाई चलाया जा रहा है. नरेगा जैसे कार्यक्रम में जहाँ बाकायदा कानून के अन्दर ही सामाजिक अंकेक्षण के प्रावधान मौजूद हैं यह निहायत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि नरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की उचित व्यवस्था सरकार ने अब तक नहीं की है. सामाजिक अंकेक्षण न होने की वजह से ही ऐसा हो रहा है कि कई लोगों के नाम एक ही समय में कई मस्टर-रोलों में प्रदर्शित हो रहे हैं, मरे हुए लोगों के नाम से भी मजदूरी उठाई जा रही है और भ्रष्टाचार पनप रहा है. हम मांग करते हैं कि राज्य में नरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की पुख्ता व्यवस्था तुरंत लागू की जाये.
5. नरेगा भुगतानों के लिए मजदूर बैंक एवं पोस्ट ऑफिस के बीच फुटबॉल बने हुए हैं. यह सुनिश्चित किया जाये कि ऐसा न हो और मजदूरों को उनकी मजदूरी सही समय पर मिले.
6. पानी – नरेगा वर्कसाइटों पर पीने के पानी की उचित सुविधाएं अक्सर उपलब्ध नहीं पाई जाती. इस भीषण गर्मी में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है और सरकार को चाहिए कि पूरे प्रयास कर सभी वर्क साइटों पर पीने के पानी की व्यवस्था तुरंत सुनिश्चित की जाये ताकि नरेगा श्रमिकों को कुछ राहत मिल सके.
7. शिकायतें: नरेगा कानून में तो प्रावधान है कि प्राप्त होने वाली शिकायतों का 7 दिन में निस्तारण किया जायेगा लेकिन ऐसा होता नहीं है. यह सुनिश्चित किया जाये कि मजदूर अपने ही गाँव के स्तर पर अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें और उनका समयबद्ध निस्तारण हो.
8. नरेगा के शेड्यूल 1 की धारा 18 के मुताबिक़ बुजुर्ग एवं शारीरिक विकलांगों के लिए अलग से कार्य की श्रेणी बनाई जाये और इसकी पालना सुनिश्चित की जाये.
9. पारदर्शिता – राज्य में पिछले कुछ वर्षों में नरेगा में पारदर्शिता का घोर अभाव देखने में आया है. वाल-पेंटिंग के ज़रिये नरेगा के कामों, मजदूरों को मिली मजदूरी तथा अन्य जानकारी अधिकतर पंचायतों में उपलब्ध नहीं है. हम मांग करते हैं कि तुरंत आदेश जारी कर सुनिश्चित किया जाये कि नरेगा के कार्यों सम्बन्धी नवीनतम जानकारी सभी पंचायतों में वाल-पेंटिंग के ज़रिये प्रदर्शित हों.
जन सुनवाई के पश्चात् धरना स्थल से एक शिष्टमंडल ने नरेगा आयुक्त श्री रोहित कुमार से मिलकर एक मांग-पत्र सौंपा और इस पर उचित कार्यवाही करने की मांग की.

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