इन मेहनतकश मजदूरों को कैसे मिले योजनाओं का लाभ

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के मुद्दों पर हुई राज्य-स्तरीय जनसुनवाई
Image 2जयपुर, 18 जून / प्रदेश के उदयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, डूंगरपुर आदि आदिवासी क्षेत्रों के कई असंगठित श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. राज्य सरकार की ओर से इन श्रमिकों के लिए संचालित विभिन्न योजनाओं के आवेदन करने के बाद भी ये सहायता राशि से दूर हैं. इन श्रमिकों ने विवाह सहायता, प्रसूति सहायता, साइकिल सहायता व छात्रवृति सहायता के लिए दो वर्ष पूर्व आवेदन किए थे. इनके आवेदनों पर अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है. कई मामलों में तो आवेदकों को दो साल बाद स्वीकृति मिली. चाहे खैरवाड़ा (उदयपुर) की लक्ष्मी बाई हो या केलवाड़ा (राजसमन्द) की चुन्नी बाई या फिर गोगुन्दा की भूरी बाई, इन सभी की यही कहानी है. इन सभी महिला श्रमिकों ने अपनी पुत्रियों के विवाह के लिए विवाह सहायता योजना में आवेदन किये थे लेकिन एक साल बीत जाने पर भी इन्हें ये खबर नहीं है कि ये सहायता राशि हमें मिल पायेगी या नहीं. ऐसे ही कई आदिवासी महिला, पुरुष श्रमिकों ने शहीद स्मारक पर दिए जा रहे ‘जवाब दो’ धरना स्थल पर आज हुई जनसुनवाई में ये मुद्दे रखे. उन्होंने मांग रखी कि आवेदनों की जांच व स्वीकृति की अवधि सुनिश्चित की जाए. अंत्येष्टि सहायता, प्रसूति सहायता व विवाह सहायता के आवेदनों पर आवेदन करने के दिन से 90 दिवस में कार्यवाही हो.

जनसुनवाई में श्रमिकों ने सरकार से मांग की कि आवेदनों का भौतिक सत्यापन श्रम कार्यालय के निरीक्षक द्वारा करवाया जाए, इस हेतु श्रमिकों को बाध्य नहीं किया जाए। नामों में अंतर के मामलों में आवेदन निरस्त नहीं किए जाए। सत्यापन के लिए आवेदक का शपथपत्र लेकर सहायता स्वीकृत की जाए। नामों के अंतर को लेकर जितने आवेदन निरस्त हुए है, उन सभी का पुर्नमूल्यांकन कर विवाह सहायता राशि स्वीकृत की जाए।
अरावली निर्माण सुरक्षा संघ के गोविन्द लाल ने कहा कि श्रमिक डायरियां बनाने में श्रमिकों को बहुत दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. उन्होंने कहा कि 90 दिन की उपस्थिति का प्रमाण पत्र देने की अनिवार्यता श्रमिकों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है क्यूंकि अक्सर श्रमिक एक जगह और एक ठेकेदार के पास काम नहीं करते हैं. इसी तरह किसी भी योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन करने पर ओरिजिनल डायरी विभाग द्वारा रख ली जाती है. कई ऐसे मामले भी हैं जहाँ यह श्रमिक डायरी एक साल तक वापिस नहीं दी जाती है.

जवाबदेही कानून है ज़रूरी
आजीविका ब्यूरो के लखन सालवी ने निर्माण श्रमिकों द्वारा झेली जा रही समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि आज गरीब श्रमिकों और उनकी समस्याओं के प्रति सरकारी तंत्र की उदासीनता और असंवेदनशीलता को देखते हुए ज़रूरी है कि सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान द्वारा मांगे जा रहे भागीदारी, जवाबदेही और सामाजिक अंकेक्षण कानून को लाया जाये ताकि इसमें सम्मिलित सिटीजन चार्टर, जॉब चार्ट, सामाजिक अंकेक्षण, सरकारी अधिकारीयों के ठीक से काम न करने पर उन पर पेनल्टी और नागरिकों को मुआवज़ा आदि के प्रावधान ठीक से लागू हों और अधिकारीयों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय हो.

श्रम आयुक्त से मिला प्रतिनिधि मंडल
जनसुनवाई के बाद एक प्रतिनिधि मंडल आज श्रम आयुक्त से मिला और इन सभी मुद्दों को उनके सामने रखा. इस प्रतिनिधि मंडल में सूचना रोज़गार अधिकार अभियान के निखिल डे, शंकर सिंह, मुकेश गोस्वामी, आजीविका ब्यूरो के लखन सालवी, अरावली निर्माण सुरक्षा संघ के गोविन्द लाल तथा अन्य शामिल थे.

सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान की ओर से
मुकेश – 9468862200, कमल – 9413457292, बाबूलाल नागा – 9829165513

error: Content is protected !!