फ़िरोज़ खान बारां, ( राजस्थान ) 05 जुलाई। वैसे तो रथयात्रा महोत्सव मुख्य रूप से उडीसा के पुरी तथा गुजरात के अहमदाबाद में मूल रूप से भव्यता के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसका ऐसा भी आशय नही है कि यह महापर्व देश भर में अन्य कई नही मनाया जाता हो। भगवान जगन्नाथ, छोटे भाई बलभद्र तथा बहिन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के यहां जाने की पंरपरा का निर्वहन करते हुए वर्ष के मंगल कार्यो की समाप्ति के ठीक पहले देश के कोने-कोने में रथयात्रा महोत्सव उत्साह, उल्लास तथा भक्ति के माहौल में मनाया जाता है।
बारां में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा का अति प्राचीन मंदिर जिसकी स्थापना राघवगढ रियासत के संयासी राजा द्वारा की गई। जिनका प्रथम नाम श्री प्यारेराम जी महाराज होने के कारण इस मंदिर को आज भी सिर्फ प्यारेरामजी मंदिर के नाम से जाना जाता है। पूर्व में यहां सुसज्जित रथ में मंदिर परिसर के भीतर ही परिक्रमा कर रथयात्रा महोत्सव मनाकर पंरपरागत रूप से आमरस व चावल का प्रसाद वितरीत किया जाता रहा है। तोप की गर्जना के साथ मनाए जाने वाले इस उत्सव में दो दशक पहले तक तो शहर के कई श्रद्वालु पहुंचकर रथयात्रा के दर्शन करते थे लेकिन यह पर्व आमजन तक पहुंचे इन्हीं विचारों को लेकर विश्व हिन्दू परिषद से जुडे कोटा के चंद्रभान शर्मा जब बारां प्रवास पर आए तो उन्होनें ऐतिहासिक मंदिर की जीर्ण-शीर्ण हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी रथयात्रा के आयोजन का सुझाव दिया जो नगर में भ्रमण करते हुए आमजन को धार्मिक धारा से जोड सकें। इसी की परिणिति में वर्ष 2000 में लाला चंद्रभान, प्रेमसागर शर्मा, राममनोहरदास महाराज परमहंस, बंशीलाल गोस्वामी, रामकुंवार सोनी, प्रकाशचंद खंडेलवाल, सत्यनारायण शर्मा, प्रेमनारायण सोनी ने छोटे स्तर पर रथयात्रा प्रांरभ की। जो आज विशाल रूप से जन-जन की आस्था का केंद्र है।
यह जानकारी देते हुए इतिहास के जानकार प्रेमनारायण सोनी ने बताया कि शनै-शनेै यह रथयात्रा नगर सहित आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए भक्ति के सागर में डुबोने का एक ऐसा माध्यम बनी कि हर कोई व्यक्ति रथ को खींचने के बाद खुद को मानो भाग्यशाली समझ रहा हो। भारी पुलिस लवाजमें के बीच स्थान-स्थान पर धार्मिकजनों द्वारा आरती, प्रसाद वितरण के मनोहारी दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि मानों बारां की रथयात्रा भी पुरी और अहमदाबाद की तर्ज पर अपना एक अहम स्थान बनाती जा रही है। 16वें वर्ष में प्रवेश यह रथयात्रा 6 जुलाई 2016 बुधवार को परपंरा के अनुसार प्राचीन प्यारेरामजी मंदिर से राजकीय अधिकारियों की पूजा अर्चना के बाद मंत्रोच्चार के साथ रवाना होगी। अल्पसंख्यक क्षेत्र से गुजरने वाली यह रथयात्रा जहां सामाजिक सद्भाव की जीती जागती मिशाल बन गई है। वहीं शहर के आमजन की श्रद्वा व भक्ति के बीच इस रथयात्रा ने अपना एक अहम मुकाम कायम कर लियाा है। बंगाली व उडीसा की भजन मंडली कलाकारों, डांडिया खेलते हुई युवतियां, भजन कीर्तन करती महिलाओं के साथ गले में दुपट्टा, सिर पर तिलक, भगवान जगन्नाथ का जयकारा करते हुए यह शोभायात्रा जहां-जहां से गुजरती है मानो वह स्थान अपने आप में धन्य हो जाता है। वर्तमान में इस रथयात्रा की पूरी जवाबदेही तथा बागडोर प्रारंभ से जुडे प्रकाशचंद खंडेलवाल, ओम सारस्वत, परसा वाले बाबा, कल्याणमल गोस्वामी के साथ नई टीम के रूप में योगेश सेानी, मुरली ठठेरा, कैलाश सोनी आदि एक सप्ताह तक तैयारियां कर यात्रा को अंतिम रूप देते है।
लंबी यात्रा के बाद सांयकाल प्रताप चैक पर महा आरती के बाद रथ को भूतेश्वर मंदिर पर ले जाया जाता है तथा प्रतिमाओं को पुनः दूसरे दिन श्री प्यारेराम जी मंदिर पर जाकर विराजमान कर दिया जाता है।