सुन्न दाग, बदरंग निशान, कुष्ठ रोग की है पहचान

कुष्ठ रोग उन्मूलन हेतु चिकित्साधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण

img_20161105_1305062020 तक कुष्ठ रोग के पूर्ण उन्मूलन के संकल्प के साथ रविवार को स्वास्थ्य भवन सभागार में जिला चिकित्सालय, शहरी व ग्रामीण पीएचसी के चिकित्साधिकारियों व नर्सिंग कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया।
मुख्य प्रशिक्षक, चिकित्सा निदेशालय जयपुर के नॉन मेडिकल सुपरवाइजर दिनेश चन्द्र शर्मा ने बताया कि त्वचा पर सामान्य रंग से हल्का या लाल या तांबीय संवेदनहीन/अल्प संवेदी धब्बा हो जो लम्बे समय से धीरे-धीरे बढ़ रहा हो तथा सामान्य उपचार से ठीक न हो रहा हो, तो वह कुष्ठ रोग हो सकता है। कुष्ठ रोग पूर्व जन्म के पापों का फल नहीं है और ना ही यह लाइलाज है। कुष्ठ रोग जीवाणु “माइक्रोबैक्टिरियम लेप्री के द्वारा फैलता है। कुष्ठ रोग किसी भी अवस्था में पूरी तरह ठीक हो जाता है। यह बात अलग है कि आरंभिक अवस्था में इसका उपचार आसानी से हो जाता है। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। इस बीमारी के कारण वे सुन्न होकर क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। रिहैबिलिटेशन एंड रिसर्च केंद्रों पर शल्य क्रिया द्वारा निशुल्क इलाज होता है। शल्य चिकित्सा करवाने वाले कुष्ठ रोगी को पुनर्वास हेतु व शल्य चिकित्सा करने वाले संस्थान को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। एन.एम.एस. शर्मा ने रोगी के उपचार की विधि, रिकॉर्ड संधारण व प्रबंधन की जानकारी दी।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. देवेन्द्र चौधरी ने जानकारी दी कि यह भी तपेदिक (टी.बी), पोलियोमायलिटिस, डिप्थीरिया आदि की तरह ही संक्रामक रोग है परंतु बहुत ही कम फैलनेवाला है। केवल ऐसे संक्रामित कुष्ठ रोगी जिनका बहुत दिनों से उपचार न हुआ हो उसके संपर्क में आने से कुष्ठ फैल सकता है। यह रोग वंशानुगत नहीं होता है। वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में इस रोग के होने का खतरा अधिक होता है। अतः जो बच्चे कुष्ठ रोगियों के संपर्क में रहते हैं, उनको इस रोग से बचाव के लिए अधिक घ्यान देने की जरूरत होती है। जिला स्तर से प्रशिक्षक उपमुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. इंदिरा प्रभाकर ने बताया कि कुष्ठ रोगियों का इलाज पूर्ण करने पर पीबी लेप्रोसी केस के लिये आशा को 400 रूपये व एमबी केस के लिये 600 रूपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। कुष्ठ रोगी को उपचार हेतु प्रेरित करने वाले प्रेरक को 250 रूपए तथा शारीरिक विकृति वाले रोगी को प्रेरित करने वाले को 200 रूपए की प्रेरक राशि प्रदान की जाती है।
प्रशिक्षण में राज्य कुष्ठ सलाहकार डॉ. अरुण महाजन, बीसीएमओ कोलायत डॉ. अनिल वर्मा, बीसीएमओ बीकानेर डॉ. सुरेन्द्र चौधरी, सहायक लेखाधिकारी बजरंग व्यास, जीएनएम हीरा भाटी व जिला आई.ई.सी. समन्वयक मालकोश आचार्य उपस्थित रहे।

कुष्ठ का प्रसार
कुष्ठ के बैक्टीरिया शरीर के अपेक्षाकृत ठंडे भागों जैसे त्वचा, नासिका व ईयर लॉब्स में पनपते हैं तथा लम्बे समय तक रोगी के सम्पर्क में रहने पर उसके नासिका द्रव्य तथा त्वचा के माध्यम से फेैेलता है । 98 प्रतिशत लोग प्राकृतिक रूप से इस बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखते है अर्थात मात्र 2 प्रतिशत लोग ही इस बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं।
कुष्ठ रोग का उपचार
एम.डी.टी. (मल्टीड्रग थैरेपी) से पी.बी. केस 6 से 9 माह में 6 डोज।
एम.डी.टी. से एम.बी. केस 12 से 18 माह में 12 डोज।
कुष्ठ रोगियों को उपचार के दौरान देय अन्य प्रोत्साहन
जीएनएम हीरा भाटी नेे जानकारी दी कि कुष्ठ रोगियों को कम्बल, सुन्न पैर वालों को माइक्रो सेलुलर रबर की चप्पल साल में 2 बार, पैर में घाव या विकृति होने पर छड़ी या बैसाखी, आँखों हेतु नीले ग्लास का चश्मा आदि दिए जाते हैं।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
बीकानेर

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