रंगकर्मियाें की भावनाओं के मंच पर बसी आशाएं

moham thanvi 1बीकानेर। कला धर्मियों के आंदोलनों और भावनाओं की अनदेखी संवेदनहीन सरकार और प्रशासन करता रहा है। सुशासन में सर्वप्रथम राज सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण कर उन्हें नए आयाम देने में संस्कृतिकर्मियों को प्रोत्साहित करता है। कहा जा सकता है; राज की ओर से ऐसा तो नहीं किया गया । हालांकि बीकानेर में समाज ने संस्कृतिकर्मियों को खूब प्रोत्साहन दिया। समाज के ऐसे ही प्रोत्साहन की देन है धरणीधर रंगमंच । समाज के वरिष्ठ रामकिशन आचार्य और रंगधर्म को समर्पित वरिष्ठ रंगकर्मी; साहित्यकार; संपादक मधु आचार्य आशावादी की इच्छाशक्ति से शहर को समाज और युवाओं ने अल्पावधि में ही धरणीधर रंगमंच दिया । मगर ढाई दशक का सफर भी प्रशासन और सरकार को रवींद्र रंगमंच को साकार रूप दिलाने में नाकाफी रहा है। ऐसा कहने के लिए यह नजीर ही काफी है कि 13/12/16 को रवींद्र रंगमंच का लोकार्पण प्रस्तावित बताया जा रहा है मगर 5/12/16 को नगर विकास न्यास अध्यक्ष इसका अवलोकन करते व रंगकर्मियों से सुझाव मांगते हैं । यह सुखद भी लगा कि इस मौके पर रंगमंच के लिए संघर्ष करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी ओम सोनी; मधु आचार्य; प्रदीप भटनागर;
कामेश सहल सहित बुलाकी भोजक, आनंद वी. आचार्य, अविनाश व्यास, इकबाल हुसैन, हरीश बी. शर्मा, सुधेश व्यास, रामसहाय हर्ष, दलिपसिंह भाटी, मयंक सोनी, विपीन पुरोहित, सुरेश आचार्य, योगेश हर्ष, सुनील जोशी, कमलेश व्यास, येशुदास भादाणी सहित कई रंगकर्मी मौजुद थे।

सभी जानते हैं कि सोनी; आचार्य आदि ने बीकानेर के अधूरे; उपेक्षित कला मंदिर रवींद्र रंगमंच के लिए संघर्ष के दौरान कई मर्तबा सुझाव भी दिए । कला-साधकों ने भी मंच के लिए आंदोलन किए किंतु सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ जनप्रतिनिधि तक इस ओर आंखें मूंदे बैठे रहे। रंगमंच का निर्माण-कार्य पहले तो अधरझूल में छोड़ा गया, फिर आंदोलन के चलते इसमें प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर आशा के दीप प्रज्वलित किए गए ।
सरकार और जन प्रतिनिधियों को यह मालूम ही है कि बीकानेर में करोड़ों का कला मंदिर “रवींद्र रंगमंच” उपेक्षित पड़ा रहा । इससे बीकानेर के रंगकर्मी आहत हुए हैं।
रंगमंच की सर्वाधिक गतिविधियों वाली कला-नगरी बीकानेर चर्चित है। यहां टाउनहाल के अलावा एमएस, रामपुरिया, जैन, डूंगर और कृषि महाविद्यालयों सहित जूनागढ़, रेलवे स्टेडियम, रेलवे प्रेक्षागृह में भी रंग-प्रस्तुतियां दी और सराही जाती रही हैं। खेले गए नुक्कड़ नाटकों का भी अपना महत्व और इतिहास यहां बोलता है।

बोलता तो यहां के रंगकर्मियों का मनोबल और विश्वास भी है । इसी कारण बीकाणा के कलाधर्मियों ने बीते वर्षो में अधूरे रवीन्द्र रंगमंच परिसर में लालटेन की रोशनी में चित्र-प्रदर्शनी लगाकर विरोध प्रकट किया। सिर्फ इसलिए कि सरकार तक उनकी आशा की किरण पहुंच सके। सभी को याद है, बीते दशक में युवा चित्रकारों ने अधूरे रवींद्र रंगमंच पर लालटेन जला कर चित्र प्रदर्शित किए थे। अपनी आकांक्षाओं को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाते हुए इस ओर से आंखें फिराए बैठी रही सरकार और स्थानीय प्रशासन को जगाने-चेताने के अनुष्ठान किए थे। दो दशक से अधिक का समय बीता किंतु रंगकर्मियों की आंखों में बसा सपना साकार न हुआ । अब जरूर आशा की ज्योति झिलमिला रही है।
आवास विकास संस्थान और सांसद कोटे से राशि सहित सरकारी स्तर पर भी बजट की सुविधा के बावजूद एक निर्माण कार्य का सुफल देर से ही सही; मिलता लग रहा है।
किसी समय सार्वजनिक निर्माण विभाग ने इसके लिए 1.47 करोड़ के खर्च का अनुमान बताया था और आज इससे कहीं अधिक राशि व्यय होने पर इमारत खड़ी दिखने लगी है।

साहित्यकारों ने भी अपनी गतिविधियों से रवींद्र रंगमंच के अधूरे निर्माण पर क्षोभ प्रकट किया था। याद रहे जनकवि हरीश भादानी के सान्निध्य में बड़ी संख्या में साहित्यकार सड़कों पर उतरे थे। इस प्रकार प्रशासन का ध्यानाकर्षण करने में राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के सदस्य रहे वरिष्ठ रंगकर्मी मधु आचार्य ‘‘आशावादी’’; रंगमंच अभियान समिति के ओम सोनी, अनुराग कला केन्द्र के कमल अनुरागी, संकल्प नाट्य समिति, रंगन, अर्पण आर्ट सोसायटी, नट, साहित्य संस्कृति संस्थान, नेशनल थिएटर, सरोकार आदि कला-संस्थाओं के पदाधिकारियों आनंद वि आचार्य, विपिन पुरोहित, दलीप भाटी, प्रदीप भटनागर सहित नगर के हर सृजनधर्मी ने रंगमंच के अधूरे निर्माण को पूरा कराने के लिए प्रयास किए थे। इनमें अनेकानेक वे रंग-कला प्रस्तुतियां भी शामिल हैं जो रवींद्र रंगमंच निर्माण स्थल पर बिना सुविधाओं के भी रंगप्रेमी दर्शकों के सम्मुख दी और सराही गई।
कला धर्मियों के ऐसे आंदोलनों और भावनाओं की अनदेखी संवेदनहीन सरकार और प्रशासन करता रहा ।
अब जब इस संघर्ष को विराम मिलने वाला है । मन माफिक रंगमंच मिलेगा; ऐसी आशाएं रख सकते हैं।
– मोहन थानवी

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