दादा गुरुदेव का नाम आज भी जुबांए आम है

01बीकानेर, 4 जुलाई। खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वर ने कहा है कि देव, धर्म व गुरु तथा अपने पूर्वजों के आदर्शों को नहीं भूलें। भारतीय संस्कृति के अतीत में समभाव से संत व महापुरुष सबके कल्याण का मार्ग बताते थे। दादा गुरुदेव जिन दत्त सूरिश्वर अविस्मयकारी, अद्भूत, ओजस्वी व तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने जैन धर्म की व्यापक स्तर पर प्रतिष्ठा के कारण सैकड़ों वर्षों के बाद भी उनके आदर्श अनुकरणीय व प्रेरणा दायक है। लोग अपने पूर्वजों के नाम भूल गए लेकिन दादा गुरुदेव का नाम आज भी जुबांए आम है व हमेशा रहेगा।

जैनाचार्य मंगलवार को दस्साणियों के चौक के पास की ढढ्ढा कोटड़ी में दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरिश्वर के स्वर्गारोहण दिवस पर प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 860 से अधिक वर्ष पूर्व दादा गुरुदेव ने एक लाख 30 हजार लोगों को जैन बनाया। उनमें व्याप्त शराब, मांसाहार व व्यसनों सहित विभिन्न बुराइयों को दूर किया तथा अहिंसा, सत्य,ब्रह्मचर्य, अचौर्य व परिग्रह का सिद्धान्त दिया। दादा गुरुदेव आदि महापुरुषों के धर्म के प्रति निष्ठा व आस्था के कारण जैन धर्म जन धर्म बना हुआ है।

गच्छाधिपतिश्री ने कहा कि दादा गुरुदेव ने जैनत्व की गरिमा को बढ़ाया तथा अंधकार,गर्त, पतन का रास्ता अपनाने वाले लोगों को सच्चा मानव बनाया तथा भव सागर से पार करने का रास्ता दिखाया। केवल जैन परिवार में जन्म लेने से कोई सच्चा जैनी नहीं होता। जैन धर्म के सिद्धान्त, मर्यादाओं व अनुशासन की पालना करने वाला किसी भी धर्म व मजहब का व्यक्ति जैनी हो सकता है। वर्तमान में कई जैन धर्मावलम्बी भी विभिन्न कारणों से जैन धर्म के नियम व कायदों तथा मर्यादाओं का पालन नहीं कर जैन धर्म की विशिष्टताओं से स्वयं तथा परिवार को दूर कर रहे है, उनको धर्म से जोड़ने का दायित्व सबका है।

मुनि मनित प्रभ सागरजी ने प्रवचन में कहा कि दादा गुरुदेव के हम सभी वंशज है। हमें रिश्तों का प्रतिबोद्ध रखना चाहिए तथा उनकी मर्यादाओं की पालना करनी चाहिए। साध्वीश्री प्रिय श्रद्धांजना ने कहा कि दादा गुरुदेव के आदर्शों से प्रेरणा लेकर सद्मार्ग का अनुशरण करें तथा गलत, आचरण व बुराइयों का त्याग करें। कषाय,कर्म व भव को कम कर मोक्ष पद प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करें। आचार्यश्री का धनराज ढढ्ढा कोटड़ी में नियमित प्रवचन सुबह नौ बजे से दस बजे तक चलेगा। श्राविका सुशीला गुलगुलिया ने भी दादा गुरुदेव के जीवन आदर्शों का स्मरण दिलवाया।

error: Content is protected !!