सच्चा श्रावक-श्राविका बनें-जैनाचार्य मणि प्रभ सागर सूरिश्वरजी

bikaner samacharबीकानेर, 26 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वर ने बुधवार को बागड़ी मोहल्ले की ढढ्ढा कोटड़ी में ’’प्रशमरति’’ग्रंथ का वाचन विवेचन करते हुए कहा कि ’’सच्चा श्रावक-श्राविका’’ बनें। सच्चे श्रावक का जीवन पूर्ण वैज्ञानिक, धार्मिक व आध्यात्मिक होता है।
उन्होंने कहा कि वितराग परमात्मा के जैन धर्म में जन्म लेने के बाद श्रावकत्व के गुण ग्रहण नहीं करने पर गंगा में जाकर प्यासा रहने की कहावत चरितार्थ होगी। परमात्मा महावीर ने दो प्रकार के जीवन बताएं है। सर्व विरक्त यानि साधु साध्वी, देह विरक्त यानि श्रावक-श्राविका। देव, गुरु व धर्म में समर्पित सच्चे श्रावक को परमात्मा भी नमस्कार करते है। वितराग परमात्मा ने सच्चे श्रावक या भक्त को मुकुट की मणि का दर्जा दिया है। ’’भक्त मेरे मुकुट मणि’’। कोई श्रावक परमात्मा के नमस्कार करने के अधिकारी नहीं है उन्हें इस अमूल्य मानवीय जीवन में सच्चे श्रावक बनने का प्रयास व पुरुषार्थ करना चाहिए। मन, वचन व काया को नियंत्रित कर सच्चे श्रावक-श्राविका बनने का प्रयास करना चाहिए।
गच्छाधिपति ने कहा कि प्रवचन सुनने के तीन कारण है, मनोरंजन, मनोमंथन व मनोभंजन। मनोमंथन में मन को मथना यानि टटोलना है। मनोभंजन में मन के बुरे विचारों व परिणामों से अपने आपको अलग कर देना है। धनवान बनना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन अपने दुर्गुणों, कषायों को त्याग कर अपने समय का सदुपयोग कर गुणवान बनना सबके हाथ है। आवश्यकता है दृढ़ संकल्प के साथ साधना, आराधना व भक्ति करने की। अपने में व्याप्त बुराइयों को त्यागने की। पुण्य के संचय से व्यक्ति अपने आप धनवान हो जाता है।
प्रवचन स्थल पर तपस्वी साध्वी प्रिय मुद्रांजनाश्रीजी की तपस्या की अनुमोदना श्रीसंघ ने देव, गुरु व धर्म तथा तपस्वी के जयकारों के साथ नारे लगाकर की। तपस्विनी साध्वीश्री प्रिय मुद्रांजनाश्रीजी के महामृत्युंजय तप मासक्षमण की तपस्या के उपलक्ष्य में 29 जुलाई शनिवार से 2 अगस्त तक होने वाले पंचाहिन्का महोत्सव में अधिकाधिक भागीदारी की अपील की गई।
– मोहन थानवी

error: Content is protected !!