प्रसूताओं की रक्तस्त्राव से मृत्यु रोकेगा “बीकाणा बैलून”

स्वास्थ्य विभाग दे रहा दूर-दराज के स्टाफ को “स्टॉप” प्रशिक्षण

IMG-20170825-WA0024बीकानेर 25/8/17 ( मोहन थानवी )। प्रसव काल में होने वाली मौतों में से लगभग 30 फीसदी महिलाएं सिर्फ इस कारण अपनी जान गंवा बैठती हैं कि प्रसव पश्चात् तेज गति से हो रहे रक्तस्त्राव यानिकी पीपीएच को सही समय पर नहीं रोका जा सका। कभी अस्पताल तक पहुंचने में देरी हुई तो कभी सही उपचार मिलने में। मरने वाली महिलाओं में गांव देहात की महिलाओं का ग्राफ ऊंचा है क्योकि कई बार वहां से रेफर तब किया जाता है जब हालत काफी बिगड़ चुकी होती है और फिर बड़े अस्पताल तक पहुँचते-पहुँचते गायनेकोलोजिस्ट या वरिष्ठ चिकित्सक के हाथ कुछ नहीं रहता लेकिन इस मौत के ग्राफ को “बीकाणा बैलून” से आधा किया जा सकता है। सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज की स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष डॉ. सुदेश अग्रवाल ने महँगे बाकरी बैलून उपकरण का प्रभावी जुगाड़ वर्जन तैयार कर प्रत्येक छोटे से छोटे स्वास्थ्य केंद्र पर भी प्रसूता को बचा पाने का नायाब रास्ता निकाला है। बीकाणा बैलून की खासियत है कि इसे जरूरत पड़ने पर सामान्यतया उपलब्ध सर्जीकल ग्लव्ज व कैथेटर की सहायता से बनाया जा सकता है।

कैसे काम करेगा “बीकाणा बैलून”
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि अत्यधिक रक्तस्त्राव की स्थिति में इसे प्रसूता के गर्भाशय में अंतरित कर फ्लूइड से स्फीत किया जाता है जिससे रक्तस्त्राव नियंत्रित हो जाता है। कई मामलों में रक्तस्त्राव पूर्णतया बंद हो जाता है तो कई बार दुबारा भी शुरू जो जाता है लेकिन उच्चतर संस्थान तक पहुचने के बाद भी उसके प्रबंधन के लिए पर्याप्त समय और संभावनाएं बन जाती है।

दिया जा रहा है “स्टॉप” प्रशिक्षण
प्राचार्य डॉ. आर.पी. अग्रवाल, अधीक्षक डॉ. पी.के. बैरवाल व सीएमएचओ डॉ. देवेन्द्र चौधरी के निर्देशन व डॉ. नवल गुप्ता के सहयोग से दूर-दराज के चिकित्सकों व महाविद्यालय के इंटर्न को पीबीएम अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में “स्टॉप” यानिकी स्टेप टुवर्ड्स मैनेजमेंट एंड प्रिवेंशन ऑफ पीपीएच” का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। डॉ. सुदेश अग्रवाल के नेतृत्व में डॉ. कमला वर्मा, डॉ. मूलचंद खत्री, डॉ. सुषमा गौड़ व डॉ. शैफाली महाजन प्रशिक्षुओं को पीपीएच की स्थिति बनने से रोकने और पीपीएच होने पर पुख्ता प्रबंधन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। डॉ. अग्रवाल के अनुसार पीपीएच प्रबंधन में एक-एक सेकंड की कीमत बढ़ जाती है और तुरंत निर्णय व उपचार से प्रसूता की जान बचाई जा सकती है। बीकानेर संभाग में मातृ मृत्यु दर 191 प्रति एक लाख जीवित जन्म है जिसे नीचे लाने के लिए सरकार प्राथमिकता से कदम उठा रही है।

क्या है पीपीएच ?
प्रशिक्षक दल में शामिल डॉ. कमला वर्मा के अनुसार प्रसव के दौरान यदि 500 मिली से अधिक रक्त बह जाए तो पोस्ट पार्टम हेमरेज यानिकी पीपीएच माना जाता है। ये आमजन के लिए भी जानना जरूरी है कि रक्त बहकर स्पष्ट रूप से कपड़ों से बाहर गिरने लगे, सांस में तकलीफ व बेहोशी आने लगे तो ये पीपीएच की श्रेणी में आएगा। नब्ज देखकर भी इसका समय रहते निर्धारण किया जा सकता है। डिलीवरी के दौरान लगभग 10 फीसदी महिलाओं को पीपीएच यानिकी पोस्ट पार्टम हेमरेज की समस्या होती है। जिसमें से 2 फीसदी महिलाओं की मौत भी हो जाती है। इसकी मुख्य वजह एनीमिया या पहले कई बार हो चुके ऑपरेशन हो सकते हैं। कई बार बच्चे का बड़ा आकार या जुड़वाँ बच्चे भी इसकी वजह हो सकते है। इससे मांसपेशियों की सिकुड़ने की क्षमता कम हो जाती है और रक्त लगातार बहता रहता है। सामान्य तौर पर प्रसव के 3-5 मिनट के बाद रक्त का बहना बंद हो जाता है। लेकिन पीपीएच के मामलों में गर्भाशय की मांपेशियां न सिकुड़ने से रक्त लगातार बहता रहता है। कई बार मरीज को बचाने के लिए ऐसे मामलों में गर्भाशय को निकालना भी पड़ सकता है। कई बार मरीज कोमा में आ जाता है या फिर हृदय के काम करना बंद कर देने पर उसकी मृत्यु भी हो जाती है।

वर्जन —
“निश्चय ही स्टॉप प्रशिक्षण में “बीकाणा बैलून” का उपयोग सीखकर दूर-दराज गाँवों के चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी पीपीएच का बेहतर प्रबंधन कर सकेंगे जिससे मातृ मृत्यु दर में स्पष्ट गिरावट परिलक्षित होगी” विभिन्न बैच बनाकर समस्त ग्रामीण चिकित्सकों को स्टॉप प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।” — डॉ. देवेन्द्र चौधरी, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, बीकानेर

– मोहन थानवी

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