कितने सुरक्षित है स्कूली वाहन, कही खतरे में तो नही आपके बच्चे

प्लीज लाडलों की जान मत डालिए खतरे में

शैलेजा बंसल ( क्राइम रिपोटर)
जयपुर । अच्छी पढ़ाई को बड़ी रकम देकर बच्चों को स्कूल भेजते हैं अभिभावक बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश में अभिभावक बड़ी रकम खर्च कर प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं. जिनमें से अधिकांश बच्चे उन स्कूलों के वाहन से आते जाते हैं. लेकिन इन स्कूली बसों पर नजर दौड़ाएं, तो इन बसों में आपके बच्चे कितने सुरक्षित हैं? यह बड़ा सवाल है. बसों के लिए निर्धारित मानक को पूरा नहीं करने से बच्चों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही नजर आती है. लिहाजा, लापरवाही के चलते होनेवाले हादसे के बाद प्रशासन की नींद खुलती है. परंतु, मानक का अनुपालन नहीं कराने से उनकी कोशिश ढाक के तीन पात साबित होती है. हालांकि शिक्षा विभाग की आरे से मामले में कड़ाई से पेश आने की बात कही जाती रही है. सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल बसों के संचालन के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया है. अनुपालन नहीं कर ज्यादातर स्कूल प्रबंधन बिना ट्रांसपोर्ट परमिट के बच्चों को लाने-ले जाने का काम कर रहे हैं. शहर में संचालित निजी शिक्षण संस्थाएं परिवहन शुल्क के नाम पर अभिभावकों मोटा पैसा वसूलते हैं, लेकिन सुरक्षा को लेकर उतने ही लापरवाह। स्कूली वाहनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त दिशा निर्देशों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
थ्री सीटर ऑटो में आधा दर्जन से अधिक बच्चों को लादकर ले जा रहे ऑटो वालों परिवहन विभाग ट्रैफिक पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
अभिभावकों का कहना है कि प्रत्येक स्कूली बस में बच्चों के नाम की सूची, उनका पता, कक्षा और उनका ब्लड ग्रुप तथा रूट चार्ट उपलब्ध होना अनिवार्य है, लेकिन निजी ऑपरेटरों की बसों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। वैसे आग से निपटने के नहीं इंतजाम प्रत्येक बस में अग्निशमन यंत्र अनिवार्य है। 12 सीट की बस में 2 किलोग्राम, 20 सीट तक की बस में 5 किलोग्राम और 20 से ज्यादा सीट वाली बसों में 5 किलोग्राम के 2 अग्निशमन यंत्र ड्राइवर केबिन में होने जरूरी हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल बसों में ऐसा कोई इंतजाम दिखाई नहीं देता।ओवर स्पीड से दौड़ते हैं वाहन नियमानुसार स्कूली वाहनों में चालक की सीट के पास स्पीड अलार्म की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे कि गति अधिक होने पर शिक्षक या बस इंचार्ज को पता चल सके और गति नियंत्रण के लिए चालक को दिशा-निर्देश दिए जा सकें।आखिर किसके भरोसे हैं आपके बच्चे जिन स्कूली वाहनों में आप अपने बच्चों को भेज रहे हैं, उनके चालक और परिचालक के बारे में शायद ही आपको जानकारी होगी। स्कूली वाहनों में सुरक्षा की दृष्टि से यह एक बड़ी चूक है। चालकों के वेरिफिकेशन के नाम पर कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। अधिकांश बच्चे प्राइवेट वाहनों से सफर करते हैं, लेकिन इनके चालकों की वेरिफिकेशन का ख्याल न तो स्कूलों वालों को है और न ही अभिभावकों को।
अधिकांश बसों पर स्कूल का नाम व टेलीफोन नंबर ही नही मिलते।
वाहनों में ड्यूटी के समय चालक व सहायक वर्दी में नज़र नहीं आते है। कई वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को ढोया जा रहा था। बस में चढ़ने के लिए फुटबोर्ड व फुट स्टेप्स की नहीं दिखी व्यवस्था। अधिकांश बसों की खिड़कियों पर नहीं लगी थी ग्रिल।
ये हैं नियम-निर्देश – स्कूल बस का रंग गोल्डन येलो के साथ ब्राउन लाइनिंग होना जरूरी। क्षमता से अधिक संख्या में बच्चों को बैठाना प्रतिबंधित। बस चालक के लिए कम से कम पांच वर्ष का अनुभव अनिवार्य। वाहनों में प्राथमिक उपचार किट उपलब्ध होना जरूरी। वाहनों के दरवाजों में लॉक की व्यवस्था जरूरी है। बस में आगे से चढ़ाने और पीछे से उतारने का नियम है। निजी शिक्षण संस्थानों के संस्था प्रधानों की तरफ से बड़ी लापरवाही वरती जा रही है। कई बार इन्हें चेतावनी देकर या चालान भरकर पाबन्द किया जाता है। लेकिन फिर भी स्कूलो की लापरवाही सामने आती है। इसके खिलाफ उचित कार्यवाही की जाएगी। छोटे छोटे बालक बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर स्कूली वाहनों के विरुद्ध अभियान चलाया जाएगा ।स्कूलो के संस्थप्रधानो को भी बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान देने के लिए निर्देशित करेंगे।नियमों का उल्लंघन करने पर वाहनो पर कार्यवाही की जाएगी ।

error: Content is protected !!