साधना के शिखर पुरुष थे उपाध्याय पुष्कर मुनि : आचार्य शिवमुनि

– विश्वसंत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि का 25वां पुण्य स्मरण दिवस मनाया-
– 15 राज्यों के पांच हजार से ज्यादा श्रावकों की रही उपस्थिति-
– समारोह में नई परम्परा की शुरुआत, कोई विशिष्ट, अति विशिष्ट व्यक्ति नहीं-

उदयपुर। विश्वसंत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि साधना के शिखर पुरुष थे। उन्होंने संयम साधना, सतत ज्ञान साधना, आत्मकल्याण व प्राणी मात्र के कल्याण के जो गूढ़ मंत्र दिए उनसे सीख लेकर हम जीवन को धन्य बना सकते हैं। जिनशासन के आलोकित संसार में कोई छोटा-बड़ा नहीं, कोई अपना-पराया नहीं, कोई ऊंचा-नीचा नहीं, सबको एक समान समझने का जो भाव उपाध्यायश्री ने दिया हमें निरंतर साधना से उसे अपने व अपनों के जीवन में साकार करना है।
यह विचार श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर युग प्रधान आचार्य सम्राट शिव मुनि ने रविवार को उदयपुर में तारक गुरु जैन ग्रंथालय एवं जैनाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि शिक्षण व चिकित्सा शोध संस्थान ट्रस्ट की ओर से विश्वसंत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि महाराज के 25वें रजत पुण्य स्मरण दिवस में कही।
तारक गुरु जैन ग्रंथालय, शास्त्री सर्कल पर आयोजित स्मरण दिवस समारोह में आचार्य सम्राट शिव मुनि ने कहा कि पहली बार जैन समाज की ओर से ऐसा समारोह आयोजित किया गया है जिसमें न तो कोई अतिथि था, न अध्यक्ष। ना ही इसमें किसी किसी राजनेता, दानवीर, समाजसेवी का स्वागत सत्कार ही किया गया है, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है।
उन्होंने कहा कि उपाध्याय पुष्कर मुनि की नियति थी कि उन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया, उनका पुरुषार्थ था कि जैनत्व की उंचाइयों को छू लिया। माता-पिता के संस्कार ही ऐसे थे कि साधु-साध्वियों के दर्शन करने व उपदेश के श्रवण मात्र से ही जीवन में वैराग्य जाग गया। मात्र 14 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली। दीक्षा से शिक्षा का प्रसार किया, गुरू सेवा की। उन्होंने आगमों के सूत्र 52 बार किए। उन्होंने साहित्य का जो भंडार दिया, उसके एक-एक अध्याय का भी हम अध्ययन कर लें तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। उन्होंने उपाध्याय पुष्कर मुनि मसा.के जीवन के कई प्रसंगों की चर्चा करते हुए सार रूप में समारोह में मौजूद हजारों धर्मानुरागियों से कहा कि अपने बच्चों को संस्कारवान बनाना है तो उन्हें साधु-संतों के पास अवश्य लेकर जाइये। उनमें स्वाध्याय का भाव जगाइये तभी संयम व ज्ञान साधना का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने उपाध्यायश्री को युगपुरुष बताया व कहा कि महापुरुष के भीतर जब धर्म,साधना, तप और त्याग की सिद्धि होती है, संकीर्ण सीमाएं चली जाती हैं तो अपने आप चमत्कार होने लगते हैं। अनंत ज्ञान तुम्हारे भीतर है, खोजो, ढूंढो तुम्हें मिलेगा। भीतर का बंद किया हुआ दरवाजा खटखटाओ, ढूंढों तुम्हें मिलेगा, यही महावीर ने ढूंढा, गुरु पुष्कर ने ढूंढा। उनकी परम्परा निर्मल परम्परा है। सूरज को, समंदर को मत बांधो, गुलाब के फूल को मत बांधों, खुले आकाश में विचरण करो। शरीर के भीतर जो चेतना है उसमें भेद नहीं है। उन्होंने भेद से अभैघ बनाना सिखाया। उनकी उस आत्मदृष्टि को अपनाओ तो जयंती मनाना सफल है।
श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने कहा कि उपाध्याय सदैव नवकार मंत्र को महत्व देते थे, समय की कद्र करते थे। बड़े से बड़ा राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री भी आ जाए तो भी वे उसे छोडक़र साधना में लीन हो जाते थे। उनके शाकाहार, व्यसन मुक्ति आदि के संदेश आज भी सार्थक हैं। देश की आजादी में भी उनका योगदान रहा।
महाश्रमण जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि उपाध्याय पुष्कर मुनि ने आत्मनिरीक्षण करते हुए आत्मचिंतन का भाव जगाया। उन्होंने मुनिश्री के जीवन के कई प्रेरणास्पद प्रसंग भी बताए व कहा कि सत्य महावीर जैसा है। सत्य को बताया नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। यह स्वयं अनुभूति का विषय है। उपाध्यायश्री की तरह ज्ञान, ध्यान कर हमें जीवन को धन्य बनाना है। उपाध्याय दीक्षा ग्रहण करने के बाद जैन साधना पद्धति पर बढ़ते गये। गीता एवं उपनिषद् के घोषों के बीच आगम की गाथाओं एवं नमोक्कार महामंत्र का निनाद उनके व्यक्तिव का एक आवश्यक सोपान बन गया।
पंडित रत्न उपप्रवर्तक अक्षय ऋषि ने कहा कि उपाध्याय संस्कृत के साथ-साथ वैदिक, बौद्ध, न्याय आदि दर्शनों तथा गीता, उपनिषद् एवं आगम ग्रन्थों के प्रकाण्ड विद्वान थे। शिरीष मुनि ने भावपूर्ण प्रसंगों के साथ कहा कि उपाध्याय ने उन्हें जीवन की सार्थकता से तो अवगत करवाया ही, ज्ञान के माध्यम से भगवान महावीर के संदेशों के उत्तरोत्तर प्रसार का भी संदेश दिया। डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने कहा कि जैन कथा के 111 भागों, 300 विषय, 1000 से अधिक कहानियों का लेखन कर अपना नाम अमर किया। उनके उपदेश प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता पर आधारित होते थे। उन्होंने अपने प्रवचनों और व्यवहार द्वारा जीवन के उच्चतम नैतिक, मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों को प्रस्तुत किया।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि उपाध्यायश्री की संत साध्वी परम्परा संयम पुरुषार्थ की परम्परा है। बेदाग जीवन, उच्च विचार, संगठन और संवाद से जुडक़र धर्म जागरण करना, इस संत परम्परा का मौलिक गुण है।
साधवी डॉ. दिव्यप्रभा ने कहा कि पुष्कर मुनि ने जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के साथ ही आध्यात्म के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण की बात कही। साध्वी प्रियदर्शना ने गुरु महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि यशस्वी पूज्य उपाध्याय को 25वें पुण्य स्मरण दिवस पर हम बारम्बार नमन करते हैं। साध्वी डॉ. रुचिका ने कहा कि पुष्कर मुनि श्रमण संस्कृति के अनूठे सेतू थे। उनके उपदेशों को हमें जीवन में व्यावहारिक रूप से अपनाना चाहिए।
इससे पूर्व पुण्य स्मरण दिवस कार्यक्रम का शुभारंभ 21 बार नवकार महामंत्र के साथ सोहन कुंवर महिला मंडल द्वारा किया गया। गुरु पुष्कर चालीसा का भी पाठ किया गया। पूरे कार्यक्रम के दौरान डॉ. पुष्पेंद्र मुनि ने श्रृंखलाबद्ध रूप से उपाध्याय पुष्कर मुनि की जीवनी की शब्द चित्रों रूप में प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर प्रर्वतक रूप मुनि, उपाध्याय रमेश मुनि, प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि, उप प्रवर्तक नरेश मुनि, महामंत्री सौभाग्य मुनि के संदेशों का भी वाचन किया गया।
महासति हर्ष प्रभा, कल्पना ने भजन प्रस्तुत किया। डॉ. सुलक्षण प्रभा, डॉ. प्रतिभा, महासती प्रियदर्शना, डॉ. रुचिका, डॉ. दिव्यप्रभा, महासती चंदनबाला हर्षप्रभा आदि ने भी उपाध्याय का पुण्य शब्दिक स्मरण करते हुए आशीर्वचन कहे, महासती कल्पना म.सा., महासती निरूपमा, सौम्याजी, आर्याश्रीजी, चरित्रप्रभाजी, महासति रुचिकाजी, विनय प्रभाजी, राजश्रीजी, आभाश्री, महिमाजी, नमिताजी, जिनाज्ञाजी, रशिताश्री, प्रियदर्शनाजी, साध्वी विचक्षणाश्री, साध्वी सुकृतिश्री, साध्वी सुप्रज्ञप्तिश्री, साध्वी प्रतिभाश्री प्राची, साध्वी डॉ. प्रशंसाश्री, साध्वी मोक्षा, सुलक्षणाश्री मसा., हर्षप्रभा मसा., प्रखर वक्ता बाल ब्र. महासति चंदनबाला, उप प्रवर्तिनी महासाध्वी डॉ. दिव्यप्रभा, महासति डॉ. रुचिका, विनय प्रभाजी, राजश्रीजी, महासति प्रियदर्शनाजी, महासति प्रतिभाजी, महासति सुलक्षणाजी भी मौजूद थे।
तारक गुरु जैन ग्रंथालय के महामंत्री वीरेन्द्र डांगी, उपाध्यक्ष गणेशलाल गोखरू, कोषाध्यक्ष विजयसिंह छाजेड़, मानसिंह रांका ने भी विचार रखे।
लुधियाना के नीरु-विजयकुमार, भव्या-पीयूष, रोहाना जैन, मुम्बई के धनसुखभाई, अश्विनभाई, रशेषभाई, जयराजभाई दोशी, उदयपुर-दुबई के नगिनादेवी-स्व. सम्पतिलाल, राजकुमार-नीता बोहरा रजत स्मृति समारोह के मुख्य सहयोगी परिवार थे। स्व. बसंतदेवी-स्व.हनुमतमल की स्मृति में वीरेन्द्र-रजनी, डॉ. वैभव, डॉ. अनिता, शुभम, अंकिता, निलय, मानस डांगी परिवार, उदयपुर गौतम प्रसादी के लाभार्थी थे।
गूंज उठे उपाध्याय के जयकारे
समारोह में कोर्ट चौराहा से शास्त्री सर्कल मेन रोड़ पर 30,000 वर्गफीट के भव्य पांडाल में राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, दिल्ली सहित 15 राज्यों के पांच हजार से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने उपाध्याय पुष्कर मुनि का पुण्य स्मरण करते हुए जिन शासन और गुरु वंदन के जयकारे लगाए। कार्यक्रम के बाद पुष्कर मुनि के समाधिस्थल श्री गुरु पुष्कर धाम पर नतमस्तक भी हुए।
पुस्तकों का लोकार्पण
समारोह में विभिन्न पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया। ‘जैन कर्म सिद्धांत में आचार्य देवेंद्र मुनि का अवदान’ का उद्योगपति धनसुख भाई अरूण भाई, रशेष भाई, जयराज भाई मुंबई, ‘अनुभूति के आलोक में’ का विमोचन राजकुमार बोहरा उदयपुर,‘पुष्कर सूक्ति कोष’ का विजय जैन लुधियाना, ‘स्वर्ण किरण’ का कन्हैयालाल मोदी, ‘कुछ हीरे, कुछ मोती’ का डॉ. किशोर सर्राफ पूना, ‘जैन कथाएं भाग-62’ का अशोक बागमार, ‘जैन कथाएं भाग-70’ का राजेंद्र हिमांशु लोढ़ा, जैन कथाएं भाग-61 का पारस चपलोत मीरा रोड, जैन कथाएं भाग-77 का सुमेरमल मेहता सूरत, बिन्दू में सिंधु का वीरेंद्र डांगी, स्वर्ण किरण आचार्य देवेंद्र मुनि का निखिल बोहरा पूना, विचार और अनुभूतियां का शिव कुमार बागरेचा मेरण ने विमोचन किया।
सोमवार 26 मार्च को आयंबिल
सोमवार 26 मार्च को दोपहर 12 बजे आयंबिल दिवस का आयोजन तथा मंगलवार 27 मार्च को प्रात: 8.30 बजे नमस्कार महामंत्र का जाप किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पुष्कर मुनि के 25वें पुण्य स्मरण दिवस की कड़ी में गत 17-18 मार्च को अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध चिकित्सकों द्वारा फ्री चेकअप केम्प का आयोजन किया गया था।
विहार यात्रा 6 अप्रेल को
श्री दिनेश मुनि ने बताया कि उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि के 25वें पुण्य स्मृति दिवस को भव्य रूप प्रदान करने के लिए वे पूना (महाराष्ट्र) का चातुर्मास संपन्न कर डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि एवं डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि के साथ 77 दिनों में 1500 किलोमीटर का विहार कर उदयपुर पधारे। मुनित्रय का अगला चातुर्मास नासिक (महाराष्ट्र) में है जिसके लिए उन्हें 1000 किलोमीटर की यात्रा करेंगे तथा 6 अप्रेल से तारक गुरु ग्रंथालय से विहार यात्रा आरंभ होगी।
इनका रहा सहयोग
कार्यक्रम को सफल बनाने में विजयसिंह छाजेड़, मानिसिंह रांका, राजेंद्र खोखावत, प्रकाश सिंयाल, प्रमोद खाब्या, प्रकाश झगड़ावत, कालूलाल सिंघवी, दिनेश चोरडिया, निर्मल हड़पावत, विजयसिंह सेठ, महेंद्र लोढ़ा, अशोक मोदी, चेतन छाजेड़, मुकेश छाजेड़, विक्की छाजेड़, दीपक मोदी, संदीप बोल्या, राजू बाफना, लहरसिंह छाजेड़, मांगीलाल जैन तथा श्री युवक परिषद, श्री महिला परिषद, ब्राह्मी महिला मंडल उदयपुर संघ, जैनाचार्य श्री देवेंद्र महिला मंडल की सदस्याएं, धर्मीचंद जैन सोहन कुंवर महिला मंडल, डा. जीएल चपलोत, चांदमल जैन, एडवोकेट रोशनलाल जैन, कमल भंडारी, हंसराज चौधरी, मुकेश चौधरी, गणेशलाल गोखरू आदि का सहयोग रहा।

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