पॉश मशीन, इंटरनेट, राशन और अंगूठाराज

बीकानेर 27/618 ( मोहन थानवी ) । शिक्षा प्रसार का चारों और ढिंढोरा पीटने वाली व्यवस्था में अंगूठा लगाकर राशन प्राप्ति का नया फंडा कितना सफल है इसका उदाहरण पोस मशीन के इंटरनेट से चलने से संबंधित देखा जा सकता है। डिपो होल्डर के पास महीने का राशन लेने पहुंचने पर उपभोक्ता को पता चलता है पोस मशीन नहीं चल रही । नेट नहीं है। सिग्नल नहीं मिल रहा। उपभोक्ता 5 किलो प्रति व्यक्ति गेहूं के लिए कई बार तो पहले ही चक्कर में अंगूठा लगाकर डिपो होल्डर से कनक लेने में सफल हो जाता है । लेकिन बहुत सी बार चक्कर पर चक्कर लगते हैं और दस्तखत करने की बजाय उसे अपनी पहचान में अंगूठा पोस मशीन को दिखाना होता है। यह आधुनिक तकनीक का ही संस्करण है। उच्च शिक्षा का समाज में संदेश देते देते व्यवस्था अंगूठे पर टिकी । ऊपर से तुर्रा यह कि अंगूठा तो लगा लिया और राशन कार्ड में एंट्री करवा कर गेहूं भी ले लिया लेकिन पता चलता है कि 2 महीने पहले जो अंगूठा लगाया था वेरिफिकेशन के लिए तब भी आपके राशन कार्ड पर गेहूं जारी हुआ। उस मशीन में बताया जा रहा है। उपभोक्ता कहता है मैंने तो गेहूं लिया नहीं। होल्डर बताता है मशीन तो कह रही है कि आपने गेहूं लिया ।अंगूठे का खेल व्यवस्था की ही देन है। पढ़ा लिखा भी भौचक्का रह जाता है। पोस मशीन यह तो पारदर्शिता कर देती है कि किस राशन कार्ड पर कितना गेहूं वितरण हुआ लेकिन पोस मशीन को पढ़ता कौन है? उपभोक्ता तो पढ़ता नहीं । जो मशीन संचालक कहेगा उसे मानना पड़ेगा। रसद विभाग भी समय पर डिपो को राशन वितरित कर देता है और इसकी पारदर्शिता के तहत सूचना समाचार पत्रों और मीडिया के माध्यम से समाज तक पहुंच जाती है । बावजूद इसके डिपो होल्डर कहता है कि उसे इस महीने कम राशन मिला है तो उपभोक्ता चक्कर में पड़ जाता है। उसे नहीं मालूम कि डिपो होल्डर को रसद विभाग ने कितना गेहूं दिया । जिनके साथ ऐसा हो चुका है वे पोस मशीन का अंगूठा करण भली भांति समझते हैं। बीते समय में तो एक डिपो होल्डर पोस मशीन में अंगूठा लगवाने के लिए उपभोक्ताओं को किसी उच्च स्थान पर ले गया था ऐसा समाचार भी पढ़ने में आया था।

error: Content is protected !!