नवग्रह आश्रम में नवाचार- हमारी प्रार्थना भी एक सहयोगी उपचार की विधि बनी

*मदीना की प्रार्थना से मंत्रमुग्ध केंसर रोगी हो रहे है ठीक*
शाहपुरा/भीलवाड़ा/रायला
भीलवाड़ा जिले में केंसर रोग निदान केंद्र के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके रायला के निकटवर्ती मोतीबोर का खेड़ा में स्थित श्रीनवग्रह आश्रम में रोगियों के उपचार प्रांरभ करने से पूर्व की जाने वाली सामूहिक प्रार्थना के भी सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे है। वहां की कार्यकर्ता एवं कैंसर सैनिक मदीना रंगरेज द्वारा सर्वजन सुखाय के निहितार्थ एक प्रार्थना की प्रस्तुति की जाती है। उनके द्वारा जितना डूब के इस वंदन किया जाता है भगवान धन्वंतरि की आराधना की जाती है और मां सरस्वती से निवेदन किया जाता है कि इस दुनिया के जितने रोगी हैं उन सब को ठीक करो प्रभु, इसी का जीता जागता उदाहरण है। मदीना रंगरेज की इस प्रार्थना से देश व दुनियां के कौने से कौने से आने वाले रोगी जब यह प्रार्थना सुनते है तो मानों उनमें अपनी बिमारी से लड़ने का जज्बा व रोग के ठीक होने का ताना बना साफ तौर पर झलकता है। हालांकि सनातन काल से रोगों का उपचार प्रार्थना से होता आया है पर वर्तमान परिवेश में यह प्रार्थना आज नवग्रह आश्रम का एक सफलता का सूत्र बन गया है।
नवग्रह आश्रम के संचालक हंसराज चैधरी ने बताया कि दिव्य-दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति किसी-भौतिक साधन की सहायता लिए बिना धरती के भीतर छिपे पानी, तेल, धातुओं आदि के भण्डार का पता लगा लेते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग अपनी क्षमताओं से शारीरिक रोगों का कारण जानकर निदान कर देते हैं। यह अपनी साधना से ही संभव होता है। मदीना रंगरेज ने इसी मूल तत्व को स्वीकार कर उनके आश्रम में आने वाले रोगियों के उपचार के लिए यह सामूहिक प्रार्थना उनके समक्ष प्रस्तुत कर अपने अल्लाह व ईश्वर से सभी रोगियों के ठीक होने की कामना करती है। उन्होंने बताया कि इसके आश्चर्यजनक सकारात्मक परिणाम भी आने लगे है। रोगी न केवल स्वयं के ठीक होने का आभास करता है वरन सबके मंगलमयी होने की कामना भी करता है। उस रोगी की दुआओं के फलस्वरूप ही आज आश्रम देश व दुनियां में केंसर रोग निदान के क्षेत्र में इस मुकाम पर पहुंच सका है।
संचालक चैधरी कहते है कि विश्वास कितना वैज्ञानिक है अथवा कितना अवैज्ञानिक, इस विवाद का कोई हल भले ही न निकले, परन्तु इतना तो निस्संकोच कहा जा सकता है कि विज्ञान-जगत का मूल विश्वास है कि हर कार्य का कोई न कोई विशेष कारण होता है। तब फिर यह भी मानना पड़ेगा विश्वास-चिकित्सा का भी विश्वास अकारण नहीं है। हालाँकि विज्ञान अलौकिक शक्यों के अस्तित्व को नकारता है, जो एक छोटी-सी फुंसी से लेकर कैंसर, पागलपन जैसे रोगों का उपचार कर दें, लेकिन आस्था-चिकित्सकों या फेथहीलर लोगों ने कई बार इस मान्यता को बड़े ही चमत्कारिक ढंग से झुठलाया है। उन्होंने अनेकों बार बहुत दूर से रोगी की अनभिज्ञता व असहयोग रहने पर भी सफलतापूर्वक रोगोपचार किया है।
मदीना रंगरेज निःसंकोच भाव से स्वीकार करती हैं कि वो उस शक्ति के, जिसका स्रोत कोई भी हो, माध्यम मात्र हैं। रोग-निदान के लिए एकाग्रतापूर्वक ध्यान-प्रार्थना करती हैं और शक्ति-प्रवाह का माध्यम बन जाते हैं। इससे रोगी के शरीर में उचित शक्ति प्रक्षेपित करती हैं। जिससे वह रोगमुक्त हो नयी चेतना, नया स्वास्थ्य प्राप्त करता है। मदीना रंगरेज की प्रार्थना-इतनी शक्ति हमें दे दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना, हम अंधेरे में है रोशनी दे दाता, कल जो गुजरा वो फिर से ना गुजरे, हम चले इक नेक रास्ते पर, जितनी भी दे भली जिन्दगी दे, बैर हो ना किसी से जब उसके कोकिल स्वर में नवग्रह आश्रम में गूंजती है तो वहां मौजूद रोगी एकाग्र भाव से तल्लीन हो जाते है। रोगी यहां तक एक बारगी तो स्वयं के रोगी होने की बात को भी अस्वीकार कर लेता है। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रार्थना की गूंज जब उसके कानों में पड़ती है तो वो मानसिक रूप से अपने आप को तंदूरूस्त मानता है। अपनी प्रार्थना में मदीना जब कहती है- अपनी करूणा का जल बहाकर कर दे पावन हर इक कोना तो लगता है कि वहां पर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल ही पेश हो जाती है। अपनी प्रार्थना में मदीना यह भी कहती है कि जो खिल सके ना है वो फूल हम है तुम्हारे चरणों की धूल हम है दया की दृष्टि सदा ही हम पर रखना, तो लगता है कि मदीना की यह प्रार्थना वसुधैव कुटुम्कब की भावना से ओत प्रोत हो गयी।
यहा बताना समीचीन होगा कि पश्चिमी देशों में इस प्रकार के रोगोपचार करने वाले को आस्था-चिकित्सक या फेथहीलर कहा जाता है। यद्यपि ऐसे चिकित्सकों एवं उनकी चिकित्सा-पद्धति को अभी वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल सकी है, फिर भी उनकी सफलताएँ स्पष्ट हैं और चैंकाने वाली हैं। विश्वास अथवा आस्था को वैज्ञानिक समुदाय कितना भी अवैज्ञानिक करार दे, किन्तु मानवीय जीवन के इस अद्भुत तत्व की प्रक्रिया एवं परिणाम अपने हर पहलू पर वैज्ञानिक शोध को आमंत्रण देने रहते हैं। भारत का प्राचीन इतिहास तो ऐसे अनेक उद्धरणों एवं उदाहरणों से भरा है। तप-शक्ति एवं महर्षियों के आशीर्वाद से रोग निवारण की अनेकों कथाएँ पुराण-साहित्य में पढ़ी जा सकती हैं। अथर्ववेद तो जैसे दैवी चिकित्सा की महाविद्या का प्रथम वैज्ञानिक महाकोश ही है।

प्रेषक- मूलचन्द पेसवानी
9414677775

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