गुजरात की राज्यपाल श्रीमती कमला एक बार फिर जमीन को लेकर विवाद में आ गई है। जयपुर महानगर की अधीनस्थ अदालत ने श्रीमती कमला से जुड़े अरबों रुपए की सरकारी जमीन हड़पने के मामले में पुलिस को जांच के आदेश दिए हैं। इस मामले में गुजरात की राज्यपाल कमला सहित अन्य प्रभावशाली लोगों के शामिल होने की बात सामने आई है।
कमला ने 7 प्लॉट प्राप्त किए लेकिन राज्यपाल होने के कारण अनुच्छेद 261 के तहत उन पर अभियोजन नहीं चलाया जा सकता इसलिए उन्हें आरोपी नहीं बनाया गया। अदालत ने यह आदेश संजय किशोर अग्रवाल के परिवाद पर दिया। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जयपुर महानगर प्रेमलता सैनी ने करधनी थाना पुलिस को अनुसंधान के आदेश दिए है।
कोर्ट ने मामले में 17 आरोपियों के खिलाफ जांच कर 21 दिसंबर तक रिपोर्ट पेश करने को कहा है। गवाही देने वालों में समिति का मूल सदस्य रामदेव सिंह भी शामिल है। आरोपियों ने इसे 1985 में ही मृत बता दिया था।
समिति के सदस्यों ने खेती के लिए प्रतिदिन 14 से 16 घंटों तक 41 हजार श्रम दिवस काम करना बताया। इनमें सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित और राजनीतिज्ञ स्व. कुंभाराम आर्य और उनके पुत्र विजयपाल आर्य, सुरजाराम मील, पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के ओएसडी रहे राधाकिशन चौधरी सहित वर्तमान में गुजरात की राज्यपाल कमला तक के नाम शामिल है।
अतिरिक्त रजिस्ट्रार सहकारी समिति ने भी अपनी जांच में इसे झूठ माना। प्रत्येक आरोपी को मुआवजे के रूप में सात-सात विकसित आवासीय भूखंड मिले है। जबकि एक भी सदस्य समिति का मूल सदस्य नहीं है। आरोपियों ने जमीन हड़पने के लिए मूल सदस्यता रजिस्टर और अन्य दस्तावेज फर्जी बनाए और पिछली तारीख में इंद्राज किया। पूरा इंद्राज एक ही हस्तलेख में है और 1953 की एंट्री अंग्रेजी में की गई है। मामले में गुजरात की राज्यपाल कमाल भी लाभार्थी है। उन्हें भी 7 विकसित भूखंड मिले है।
परिवाद में कहा गया है कि कमला को 22 मई, 11 को समिति की बैठक में कार्यकारिणी में शामिल किया है। जबकि इस दिन वह राज्यपाल के पद पर आसीन थी और कानूनी दृष्टि से वह ऐसा पद ग्रहण नहीं कर सकती थी। उन्होंने 1 जनवरी, 12 को समिति कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा ले प्रस्ताव पारित करवाए। जबकि इस दिन तक समिति ने उन्हें कार्यकारिणी सदस्य बनने को अनुमोदित नहीं किया था। कमला ने समिति को करीब 20 लाख रुपए का कर्जा देना भी बताया है। अन्य सदस्यों ने समिति से कुल 8 करोड़ 55 लाख 70 हजार 309 रुपए लेना बताया गया है।
राज्यपाल होने के कारण उनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद-261 के तहत आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती, इसलिए उन्हें परिवाद में अभियुक्त नहीं बनाया गया है।
गौरतलब है कि सहकारी कृषि को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने 5 जनवरी, 1953 को राजेन्द्र सिंह और अन्य को सहकारी समिति बनाकर खेती करने को 219 एकड़ जमीन आवंटित की। राजेन्द्र सिंह और अन्य ने किसान सामूहिक कृषि सहकारी समिति लि. झोटवाड़ा के नाम से 13 फरवरी, 1953 को समिति का पंजीयन करवाया।
नियमानुसार जमीन 25 साल बाद स्वत: ही सरकार को वापस होनी थी। समिति ने शुरू में तो खेती की लेकिन बाद में बंद कर दी। कानूनी रूप से 1978 में ही जमीन 25 साल पूरे होने पर स्वत: ही सरकार में निहित हो गई। इस समय तक शहर का आबादी क्षेत्र बढ़ चुका था। मूल सदस्यों को दरकिनार कर समिति में नए-नए सदस्य बन गए। इन लोगों ने जमीन को आपस में बांटकर कब्जा कर लिया। राजस्व अधिकारियों ने भी षड़यंत्रपूर्वक जमीन को पुन: राज्य सरकार के नाम दर्ज नहीं की। जेडीए ने 6 अक्टूबर, 1999 को 17 बीघा 10 बिस्वा तथा 12 मई, 2000 को 204 बीघा 3 बिस्वा जमीन करधनी और पृथ्वीराज नगर के लिए अवाप्त कर ली। जमीन कानूनी रूप से 1978 में ही सरकारी हो गई थी, इसलिए किसी प्रकार के मुआवजे का प्रश्न ही नहीं था। इसके बावजूद आरोपियों को अवाप्ति के बदले 15 प्रतिशत विकसित भूखंड प्राप्त करने का प्रस्ताव पारित हुआ।
आरोपियों ने सरकारी जमीन को अपनी बताया और समिति फर्जी बैठक की रिपोर्ट बनाई। इससे पहले भी कमला के परिजनों द्वारा जयपुर में एक जमीन पर कब्जा करने का मामला सामने आया था।