आसक्ति व राग-द्वेष को हटाएं-प्रवर्तिनी साध्वी शशि प्रभा म.सा.

बीकानेर, 23 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्यश्री मणि प्रभ सूरिश्वर की आज्ञानुवर्ती, साध्वी सज्जनश्रीजी म.सा की शिष्या वरिष्ठ साध्वी, प्रवर्तिनी, शशि प्रभा म.सा. ने मंगलवार को बागड़ी मोहल्ले की ढढ्ढा कोटड़ी में प्रवचन में कहा कि स्वयं ज्ञाता व दृष्टा बनकर अपना माप तोल कर मोक्ष की प्राप्ति कि प्रयास व प्रयत्न करें। आसक्ति व राग-द्वेष को हटाना है।
उन्होंने कहा कि आंतरिक हृदय से मोक्ष के भाव रखने वाला भव्य कहलाता है। हमें भव्य बनने के लिए आंतरिक शक्तियों को जागृत करना होगा तथा संसार व सांसारिक विषय वस्तुओं के प्रति आसक्ति और राग-द्वेष को हटाना है। जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा प्राप्त करने की तीव्र लालसा रखना है। । ज्ञानी कहते ज्यादा राग व द्वेष नहीं करें, राग व द्वेष मारने वाला तथा आसक्ति भाव तारने वाला है। स्वाध्याय में ऐसी बातें आती है 14 पूर्वधारी और उत्कृष्ट श्रावक भी आसक्ति के कारण निगोद में जा सकता है। इसलिए हमें आसक्ति का त्याग करना चाहिए।
साध्वीश्री ने का कि जहां आसक्ति है वहीं बंधन है। आसक्ति निगोद, त्रियंच, संसार परिभ्रमण का मूल बीज है। हर व्यक्ति को अपनी आसक्ति का माप तोल कर इसको त्यागना चाहिए। राग-द्वेष की कथा विकटा तथा कर्म बंधन कारण। देव, गुरु व धर्म की हमें जिनवाणी व जिन शासन मिला है इसमें हित व अहित की सोच सकते है। हमें अहित में नहीं जाए। देव, गुरु व धर्म कृपा से प्रवचन सुन रहे है। प्रवचन सुनने वाले भाग्यशाली । प्रवचन सुनने के बाद भगवान महावीर की वाणी को हृदय में प्रतिष्ठित करें। वीतराग की प्रभावना व बोल लेकर जाए । आत्महित की बात सोचकर जाएं। स्व व आत्मा का कल्याण करना है । साध्वीश्री सौम्यगुणा ने महोपाध्याय विनय विजयजी म.सा. द्वारा विरचित तथा आचार्य देव विजय रत्न सेन सूरिश्वर जी.म.सा. द्वारा आलेखित ’’शांत सुधारस’’ धर्म ग्रंथ का वाचन विवेचन किया।
अजीत कोचर का अभिनंदन- आठ दिन अट्ठई की तपस्या करने वाले अजीत कोचर की तपस्या की अनुमोदना साध्वीवृंद व श्रावक-श्राविकाओं ने जयकारों से की। श्रीसंघ की ओर से अभिनंदन किया गया।

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