सनातन धर्मावलंबियों की संस्कृति तथा सभ्यता वेद एवं वेद मूलक शास्त्रों पर अवलंबित है

आज दिनांक 19 सितंबर 2020 शनिवार को हरी शेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर भीलवाड़ा में चल रहे अधिक मास धार्मिक अनुष्ठानों के अंतर्गत श्री पुरुषोत्तम कथा में द्वितीय दिन की कथा प्रस्तुत करते हुए व्यासपीठ से स्वामी योगेश्वरानंद जी महाराज ने बताया कि सनातन धर्मावलंबियों की संस्कृति तथा सभ्यता वेद एवं वेद मूलक शास्त्रों पर अवलंबित है। समस्त भारतीय आस्तिक दर्शन शास्त्रों का मूल वेद हैं। पुराणों के अंतर्गत वृहद नारदीय पुराण तथा पदम पुराण पुरुषोत्तम कथा को प्रस्तुत करते हैं , जिसके माध्यम से पतित से पतित व्यक्ति को आत्म उत्थान का रास्ता प्राप्त होता है। कथा का उपक्रम प्रस्तुत करते हुए व्यासपीठ से नैमीषारण्य तीर्थ में हजारों वर्षों तक चलने वाले ज्ञान सत्र में उपस्थित ऋषियों का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा प्रवर्तित दर्शन शास्त्रों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। आश्रम में इसके अतिरिक्त नित्य प्रातः मंडलों की पूजन अभिषेक हवन यज्ञ, गोपाल सहस्त्रनाम पाठ,विष्णु सहस्त्रनाम पाठ ,श्री सूक्त पाठ नारायण कवच, गीता पाठ ,अन्नपूर्णा स्त्रोत, दुर्गा पाठ एवं भागवत मूल पाठ पारायण वैदिक पद्धति से ब्राह्मण मंडली द्वारा किए जा रहे हैं। सांय कालीन सत्र में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण में कथा प्रवक्ता ने बताया कि सनातन धर्म से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है।श्रीमद्भागवत में राजा परीक्षित का जन्म, कलयुग का प्रवेश, भगवान कपिल की कथा का सारगर्भित वृतांत सुनाया। वेदों की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म से मृत्यु तक सुख की तलाश में रहता है और वह सुख केवल भागवत प्रेम से ही प्राप्त हो सकता है। भागवत कथा की महिमा बताते हुए कहा कि वेद एक कल्पवृक्ष के समान हैं और भागवत कथा उस कल्पवृक्ष का फल है, भागवत कथा का अमृत रस का पान व्यक्ति को जीवन में बार बार करना चाहिए । कथा के अंत में सनातन सेवा समिति के महासचिव अशोक मूंदड़ा एवं सचिव महेश चंद्र नरवाल ने आरती की।महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम उदासीन ने बताया कि धार्मिक अनुष्ठान एवं विविध कार्यक्रम लोकवाणी आवाज भीलवाड़ा की चैनल एवं फेसबुक पर लाइव प्रसारित हो रहा है।

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