हरेक मां को जरूरत है कि वो अपने बच्चों को मातृभाषा सिखाए : जय प्रकाश सेठिया

एमजीएसयू के राजस्थानी विभाग एवं आइक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी वेबिनार आयोजित की गई जिसमें सीमा पार पेरिस फ्रांस से अंतरराष्ट्रीय विभूति प्रोफेसर डॉ. सरस्वती जोशी द्वारा भाग लिया गया। संगोष्ठी में सर्वप्रथम स्वागत भाषण आइक्यूएसी निदेशक प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने दिया व कहा कि हमें राजस्थानी के तौर तरीकों को अपनाना होगा, राजस्थानी को शिक्षा का माध्यम बनाने की पैरवी करना अब वक्त की ज़रूरत बन चुका है।
संगोष्ठी की आयोजन सचिव डॉ मेघना शर्मा ने बताया कि संगोष्ठी में राजस्थानी भाषा के शिक्षाविद, राजस्थानी मान्यता आंदोलन आधारित संस्थाओं के पदाधिकारी, चिंतक – विचारक व समाजसेवियों द्वारा प्रतिभागिता निभाई गई। समन्वयक डॉ. नमामी शंकर आचार्य द्वारा संगोष्ठी का संयोजन करते हुए समस्त अतिथियों का परिचय दिया गया।
वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए जोधपुर के डॉ गजे सिंह राजपुरोहित ने मातृभाषा उन्नयन और नई शिक्षा नीति के तकनीकी पक्ष पर जोर दिया व शिक्षा नीति के अंतर्गत मातृभाषा को लेकर हुए प्रावधानों पर विस्तृत विवरण देते हुए अपनी बात। साहित्यकार मोनिका गौड़ ने कहा कि जब बच्चा राजस्थानी बोलता है तो हम घर में ही उसे डांट कर हिंदी या अंग्रेजी बोलने को विवश करते हैं, यहीं मातृभाषा दम तोड़ती नजर आती है। हमें अपने आसपास से ही मातृभाषा उन्नयन आरंभ करना होगा क्योंकि राजस्थानी भाषा संस्कारों का बीज है।
मरू देश संस्थान सुजानगढ़ के अध्यक्ष डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि राजस्थानी बोलने की हिचकिचाहट को हमें दूर करना होगा तभी यह भाषा जनसामान्य की भाषा बन पाएगी। राजस्थानी मोटियार परिषद के प्रदेशाध्यक्ष डॉ शिव दान सिंह जोलावास के विचारों में राजस्थानी भाषा की लेखन पद्धतियां विगत, टीका आदि विरासत को सुरक्षित रखना हमारा प्राथमिक दायित्व है।
प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि केंद्रीय साहित्य अकादेमी की राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक श्री मधु आचार्य आशावादी ने अपनी बात अपनी बात रखते हुए कहा कि राजस्थानी कम मान सम्मान हम सबकी जिम्मेदारी है शिक्षण संस्थान राजस्थानी को उचित स्थान दिलाने में अग्रणी साबित हो सकते हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह ने राजस्थानी भाषा को अपनाने और उसे पाठ्यक्रमों में समुचित स्थान दिलवाने की बात कही।
आभार प्रदर्शन राजस्थानी विभाग प्रभारी बीकानेर डॉ मेघना शर्मा द्वारा किया गया।
द्वितीय सत्र में डॉ लक्ष्मीकांत व्यास ने कहा कि मातृ भाषा अतः चेतना है, यह भाषा मां के दूध की तरह रग रग में शामिल है। उदयपुर के डॉ. सुरेश सालवी ने राजस्थानी को संवाद का माध्यम होने के साथ साथ इसे अपनी पहचान, अपना अस्तित्व बताया तो वहीं राजस्थानी साहित्यकार डॉ गौरीशंकर प्रजापत ने मायड़ को आगे बढ़ाने में सर्वप्रथम परिवार के महत्व को उजागर किया ।
जनार्दन राय नागर विद्यापीठ के डॉ राजेंद्र बारहठ ने कहा कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से राजस्थानी को मान्यता मिलने की राह प्रशस्त हुई है।
कोलकाता के चिंतक विचारक जयप्रकाश सेठिया ने कन्हैयालाल सेठिया की राजस्थानी कविता की पंक्तियां ‘मायड़ भाषा के बिना कैसा राजस्थान’ के उच्चारण के साथ अपना उद्बोधन दिया। राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास ने राज्य व केंद्र सरकार से राजस्थानी की मान्यता की बात व्यक्तिगत रूप से उठाने की बात कही। अंत में
संगोष्ठी के सह संयोजक राजेश चौधरी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

डॉ मेघना शर्मा
प्रभारी, राजस्थानी विभाग
महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर
संपर्क : 9610927913

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