*…और डॉ लोहानी बन गए “खालिस”*..

*राजकीय सेवा के साथ ही निभाया लेखन धर्म*

सुशील चौहान
भीलवाड़ा। अमूमन सरकारी नौकरी की चाह सभी को होती है और राज सेवक बनने के बाद सरकारी काम काज के अलावा कुछ याद नहीं रहता।बिरले ही होते है जो राजकाज के साथ ईश्वर द्वारा दिये गए “उपहार” और “प्रतिभा” को न केवल संभालते है बल्कि आजीवन उसे “सहेजते” है और ऐसा काम करते है कि लोग भी “लोहा” मानते है। ऐसी ही प्रतिभा है डॉ एस के लोहानी जो बिजली विभाग में अधीक्षण अभियंता के निजी सहायक तो है ही साथ ही “लेखनी” के भी “लोहानी” यानी “लोहा” मनवाते आए है। “साठ बरस” के होने आए डॉ लोहानी को लेखनी , कविता, गजल ओर कहानी का शौक सोलह बरस की उम्र में ही लग गया।रुझान लेखनी पर रहा लेकिन सेवा राजकीय लिखी थी सौ नौकरी लगी तो राजकार्य में व्यस्त हो गए।मगर डॉ लोहानी बने तो लेखनी का लोहा मनवाने के लिए। सौ राजकार्य के साथ समय निकलते ही लेखन को भी दिन चर्या बना लिया। बरसों की मेहनत का सुपरिणाम यह है कि डॉ एस के लोहानी केवल राजसेवा में ही नहीं वरन लेखन और कविता पाठ में भी स्थापित नाम है।
बचपन से काव्य पढ़ने का शौक था। जिले में कहीं भी कवि सम्मेलन होते थे तो वो सुनने के लिए जाते थे। कवियों को सुनकर ही उनके मन में आया कि वो काव्य क्षेत्र में जाए। तो फिर समाचार पत्रों में जिन कवियों की कविता, गजल प्रकाशित होती थी उन्हें पढ़ते थे। कविता व गजल में जो कठिन शब्द आते थे। उन्हें भावार्थ के साथ अपनी डायरी में लिख लेते थे। इसी आदत ने उन्हें कविता के क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया। फिर शहर में होने वाली काव्य गोर्ष्ठी में भाग लेते थे। पहले पहले तो वो दूसरों की कविता पढ़ते थे। इस पर उनको खूब दाद मिलती थी। तो उन्होंने सोचा कि क्यों नहीं वो अपनी कविता लिखे और सुनाए। बस यहीं से साल 2010 में काव्य पाठ करने का सिलसिला शुरू हो गया। मंच पर काव्य पाठ किया तो लोगों ने हौंसला बढ़ाया तो और प्ररेणा मिली। यहां से कविता व गजल लिखने का दौर शुरू हो गया पहले स्थानीय स्तर पर काव्य पाठ फिर जिला स्तर होने वाले कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया। इसके बाद काव्य संग्रह करने की धुन लगी तो साल 2013 में पहला काव्य संग्रह ” इश्क सूफियाना” लिखा। इसके बाद 2014 में ” शब्द निशक्त” 2017 में ” एक बीज की संभावना” 2018 में ” जिंदगी ही जलसा” फिर 2019 में उदासीन से आंनद की ओर” काव्य संग्रह लिखा। वर्तमान में छह हिन्दी व दो सिंधी भाषा में काव्य संग्रह प्रकाशित होने वाले हैं।वो हिन्दी के साथ उर्दू, सिंधी, संस्कृत, राजस्थानी व अंग्रेजी में भी कविता व गजल लिखते हैं। अब तक 70 बार सम्मानित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त देश व प्रदेश की 125 पत्र पत्रिका में उनकी लगभग 150 कविता व गजलें प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य के साथ समाज सेवा में काम करते हैं अब तक 51 बार रक्तदान कर चुके हैं उनकी इच्छा हैं सेवानिवृत्त होने तक 65 वां रक्तदान करें। वो नव मानव सृजनशील चेतना समिति के संयोजक भी हैं। सेवानिवृत्ति के बाद पूरा समय वो काव्य पाठ को ही देंगे।
– *सुशील चौहान -*
– *98293 03218*
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब,भीलवाड़ा*
– *sushilchouhan953@gmail.com*

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