कांग्रेस पार्टी के युवा नेता आजाद सिंह राठौड़ ने बताया की मनरेगा के बजट में कटौती करने के सरकार के इस फैसले से ग्रामीण इलाकों के मजदूर वर्ग पर भारी आर्थिक चोट पड़ेगी । इससे बैरोजगारी और बढ़ेगी, कोविड-19 के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है । राठौड़ ने बताया की राजस्थान में नरेगा के सम्पूर्ण बजट का 20 % बजट केवल बाड़मेर जिले पर खर्च होता है, बाड़मेर जिला सीमान्त क्षेत्र में स्थित है एवं यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से मनरेगा का आम लोगों को रोजगार प्रदान करने में विशेष स्थान है। वर्तमान बजट में लगभग 73 हजार करोड़ रुपये का मनरेगा के लिए आवंटन किया गया है, जो की पिछले वित्तिय वर्ष से 25 % कम है, पिछले वित्तीय वर्ष में मनरेगा का कुल बजट 98 हजार करोड़ रुपये था। इसमें कटौती का सीधा असर बाड़मेर ज़िले के मनरेगा बजट पर पड़ेगा। जो कि यहाँ गरीब परिवारो की रोज़ी रोटी पर कुठाराघात साबित होगा। मोदी सरकार ने बाड़मेर के ग़रीब परिवारों के आजीविका के सबसे बड़े माध्यम मनरेगा के बजट में कटौती कर मजदूर वर्ग के साथ गहरी आर्थिक चौट की है। कोरोना काल के दौरान राजस्थान राज्य मनरेगा के तहत रोज़गार देने में रिकोर्ड स्तर पर पहुँच गया था, जिसका सीधा लाभ गरीब परिवारों के घर तक पहुँचा।
राठौड़ ने बताया की अगर आप बेरोजगारी के आंकड़े देखेंगे तो यह पिछले सालों में सर्वाधिक है, पिछले कई सालों में कभी भी बेरोजगारी की दर इतनी अधिक नहीं रही, युवा बेरोजगारी की दर काफी अधिक है। मोदी सरकार ने युवाओं को रोजगार देने के सिर्फ लोक लुभावने चुनाव के समय वादे किये थे, इस बजट में युवाओं के लिए रोजगार की कोई स्पष्ट योजना सरकार की तरफ से नहीं दिख रही है।
राठौड़ ने बताया की पिछले कुछ वर्षों से कोरोना की वजह से आम लोगों की आर्थिक हालात वैसे भी खराब है, इस स्थिति में भाजपा सरकार ने खाद्य सब्सिडी में कटौती, उर्वरक सब्सिडी, पेट्रोलियम सब्सिडी में कटौती करना बढ़ती हुई महंगाई का सामना करने के लिए सामान्य व्यक्ति की स्थिति और कमजोर करेगा। सरकार ने क्रिप्टो करेन्सी के अवैध व्यापार पर बिना लगाम कसे या क़ानून बनाये, उस पर टैक्स लगा देने से अवैध व्यापार को बढ़ावा ही मिलेगा।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के क्षेत्र में भी कटौती करना आमजन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, कोविड की स्थिति अभी भी बनी हुई है और ऐसे में इस क्षेत्र में कटौती करने से आमजन की स्थिति सुधर नहीं पाएगी। अभी कुछ समय पहले देश में कोरोना के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत नहीं होने की वजह से आम लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था। ऐसी स्थिति में सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के क्षेत्र में बजट कटौती करना गलत है।
आम लोगों को इस बजट से बहुत सी उम्मीदे थी लेकिन उम्मीदे सिर्फ उम्मीदे ही रही, मध्यम वर्ग को टैक्स में कोई राहत नहीं, आर्थिक स्थिति कोरोना के कारण पहले से ही खराब थी, आम आदमी को राहत की उम्मीद थी। पिछले एक साल में सरकार ने रिकॉर्ड 20.79 लाख करोड़ रु. का कुल टैक्स जुटाया है, जो कि सरकार के खुद के अनुमान से 2.9 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है। मगर कर दाताओं को राहत नहीं दी गई है, बल्कि दूसरे मकान के ब्याज पर मिलने वाली 1.5 लाख की छूट भी खत्म कर दी है। मध्यम वर्ग के पास अगर कम पैसा रहेगा तो अर्थव्यवस्था की स्थिति नहीं सुधर पाएगी। साथ ही मोदी सरकार के इस बजट में शहरी गरीब वर्ग के रोजगार को लेकर कोई योजना नहीं, ना ही कोई रोजगार देने का रोड़मेप दिखाई दे रहा है । सेवा क्षेत्र के प्रोत्साहन को लेकर कोई योजना नहीं है इस बजट में। देश में बहुत सारे लोग सेवा क्षेत्र में कार्यरत है, जिनको मजबूत करने के लिए इस बजट में सरकार के पास कोई ना तो योजना है, और ना ही दिशा इस बजट में दिख रही है ।
कोरोना के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा व बुरा प्रभाव पड़ा है, पहला कर्तव्य सरकार का अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का है, केवल घोषणाओं और इरादों से कार्य नहीं होता है, इन सब बातों को ध्यान देकर धरातल पर लागू किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह K-Shaped इकॉनमी रिकवरी माडल प्रतीत होता है अर्थात अमीर और अमीर, गरीब और गरीब होता दिख रहा है।
– गिरधर सिंह ( कार्यालय – श्री आज़ाद सिंह राठौड़, बाड़मेर )
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