राजस्थान ने लॉन्च की भारत की पहली डिजिटल लोक अदालत; ज्युपीटाईस के साथ की साझेदारी

जयपुर, 18 जुलाई, 2022: भारत की पहली एआई-पावर्ड, आधुनिक डिजिटल लोक अदालत का उद्घाटन राजस्थान के जयपुर में आयोजित 18वें अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक के दौरान राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन माननीय श्री उदय उमेश ललित द्वारा किया गया। राजस्थान राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के टेक्नोलॉजी पार्टनर ज्युपीटाईस टेक्नोलॉजीज़ द्वारा इस डिजिटल लोक अदालत का डिज़ाइन और अवधारणा विकसित की गई है। दो दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय श्री एनवी रमाना द्वारा कानून एवं न्याय मंत्री श्री किरण रीजीजू और राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत की मौजूदगी में किया गया।
हाल ही के वर्षों में भारत में कानूनी मामलों का लंबित रहना सुर्खियों में रहा है, खासतौर पर महामारी के दौरान स्थिति और भी बदतर हो गई, जब अदालतों की कार्रवाई रुक सी गई थी। हाल ही में बिहार के जि़ला न्यायालय ने 108 सालों के बाद एक विवादित जम़ीन के मामले में फैसला सुनाया, यह देश के सबसे पुराने लंबित मामलों में से एक है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सभी मामलों का निपटान करने मे तकरीबन 324 सालों का समय लगेगा। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 75 से 97 फीसदी न्यायिक समस्याएं अदालत तक कभी पहुंचती ही नहीं हैं, यानि 5 मिलियन से 40 मिलियन मामले प्रति माह अदालत तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे में तकनीकी हस्तक्षेप द्वारा भारत में विवादों की निपटान की इस गंभीर स्थिति को जल्द से जल्द हल करना बेहद ज़रूरी है।
दुनिया की पहली जसटेक (जस्टिस टेक्नोलॉजी) कंपनी-ज्युपीटाईस देश के विभिन्न अर्ध-न्यायिक संस्थानों और एडीआर सेंटरों के साथ काम कर रही है ताकि विवादों के निपटान के लिए डिजिटल प्रणाली को अपनाया जा सके। ज्युपीटाईस ने न्याय प्रणाली की मौजूदा समस्याओं को हल करने के लिए गहन अनुसंधान के बाद डिजिटल लोक अदालत की अवधारणा डिज़ाइन और विकसित की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वेब, मोबाइल और सीएससी के ज़रिए देश के दूर-दराज के इलाकों तक भी न्याय पहुंचें तथा अन्य सेवाओं की तरह न्याय को किफ़ायती बनाया जा सके।
श्री रमन अग्रवाल, संस्थापक एवं सीईओ, ज्युपीटाईस ने कहा, ‘‘हमारा हमेशा से यही मानना रहा है कि तकनीक के उपयोग द्वारा हम न्याय को सुलभ बनाने के विश्वस्तरीय स्वप्न को साकार कर सकते हैं, अर्थात ऐसी समावेशी न्याय प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं जहां कोई भी न्याय से वंचित न रहे। आज आरएसएलएसए के साथ साझेदारी के द्वारा हम अपने इस लक्ष्य के और करीब आ गए हैं। ज्युपीटाईस में हम हर व्यक्ति को न्याय का आसान एवं सशक्त अनुभव प्रदान करने के लिए तत्पर हैं ताकि विवादों के निपटान को नया आयाम दिया जा सके।’’
हाल ही में आरएसएलएसए और ज्युपीटाईस ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जहां ज्युपीटाईस ने टेक्नोलॉजी पार्टनर के रूप में आरएसएलएसए को कस्टमाइज़्ड डिजिटल लोक अदालत प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया। यहां आधुनिक तकनीकों के द्वारा डिजिटल अदालत के संचालन किया जाता है ताकि सभी हितधारकों को ऑनलाईन सेवाएं प्रदान कर न्याय प्रक्रिया में दक्षता, सुविधा और पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जा सके।
डिजिटल लोक अदालत के माध्यम से पुराने लंबित मामलों का निपटान किया जा सकेगा या ऐसे मामलों को भी आसानी से निपटाया जा सकेगा जो राजस्थान राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण में आरंभिक चरण में हैं। इससे विवाद निपटान की प्रक्रिया आधुनिक बनेगी, जहां आवेदन के ड्राफ्ट और फाइलिंग से लेकर एक क्लिक पर ई-नोटिस जनरेशन, स्मार्ट टैम्पलेट, ड्राफ्ट सैटलमेन्ट समझौता और वीडियो-कॉन्फ्रैंसिंग के ज़रिए डिजिटल सुनवाई तक सभी पहलुओं को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा यह एआई-पावर्ड वॉइस-बेस्ड इंटरैक्टिव चैटबोट भी उपलब्ध कराएगा, जहां आधुनिक डेटा एनालिटिक्स टूल्स, लोक अदालत की सुगम कार्रवाई को सुनिश्चित करने में मदद करेंगे। इसमें डेटा उन्मुख फैसलों के लिए कस्टम रिपोर्ट और बीआई डैशबोर्ड का उपयोग किया जाएगा।
‘‘भारतीय संविधान में जल्द से जल्द न्याय का महत्व है। इसीलिए, हमारा मानना है कि डिजिटल लोक अदालत की यह पहल न्याय प्रणाली को ज़ोमेटो और स्विगी फूड डिलीवरी सिस्टम की तरह तीव्र बनाएगी। उम्मीद करते हैं कि ज्युपीटाईस के साथ साझेदारी में हम अपने इस लक्ष्य को पूरा कर बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकेंगे।’’ श्री रविकांत सोनी, माननीय संयुक्त सचिव, राजस्थान राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने कहा।
दुनिया भर में न्याय प्रणाली को जटिल माना जाता है। न्याय की पूरी प्रक्रिया में शामिल व्यक्ति पर तनाव बना रहता है, इसक अलावा इसमें बहुत अधिक पैसा और समय भी खर्च होता है। ओईसीडी की एक रिपोर्ट के अनुसार इन विपरीत प्रभावों के चलते लोगों के स्वास्थ्य, आय और रोज़गार को जो नुकसान होता है, वह ज़्यादातर देशों के जीडीपी का 0.5 फीसदी से 3 फीसदी हिस्सा बनाता है। एक देश के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए न्याय को सुलभ बनाने के साथ-साथ न्याय के अनुभव को भी बेहतर बनाना ज़रूरी है ताकि हर मामले को ठीक से निपटाया जा सके।

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