जयपुर । (अशोक लोढ़ा) कलंदर संस्था पिछले 15 वर्षो से नाट्य कला जगत में सक्रिय रूप से काम कर रही है। पिछले एक साल से रेपर्टरी का भी संचालन कर रही है। यंहा गुरु शिष्य परंपरा के तहत नाट्य कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी श्रखंला के तहत कलंदर में कार्यशाला 02 के अंतर्गत प्रतिभागियों ने सआदत हसन मंटो की कहानियों पर आधारित प्रस्तुति मंटो के ज़हन से तैयार की है। कार्यशाला में प्रतिभागियों ने अपनी कहानियां खुद चुनी हैं और अपनी प्रस्तुति आप के सामने लेकर आए हैं। प्रशिक्षण के दौरान कथ्य को समझना और और उसके अर्थों को परिभाषित करना और प्रक्कथन को समझने की प्रक्रिया में ही इन कहानियों का निर्माण किया और टैगोर नाट्य योजना के तहत रविन्द्र मंच सोसायटी द्वारा मंटो के ज़हन से का मंचन आज शुक्रवार 27 सितंबर को मिनी ऑडिटोरियम रविन्द्र मंच पर शाम 6:30 पर किया जा रहा है।इस अवसर पर तीन कहानियां और मंटो के कुछ किस्से 1.पेशावर से लाहौर तक 2. टोबा टेक सिंह 3. खोल दो प्रस्तुत किये जाएंगे।
1.जावेद पेशावर से ही ट्रेन के ज़नाना डिब्बे में एक खूबसूरत औरत को देखता चला आ रहा था और उसके हुस्न पर फ़िदा हो रहा था। रावलपिंडी स्टेशन के बाद उसने जान-पहचान बढ़ाई और फिर लाहौर पहुँचने तक उसने सैकड़ों तरह के मंसूबे बना डाले। लाहौर पहुँच कर जब उसे मालूम हुआ कि वह एक तवायफ़ है तो वह उलटे पाँव रावलपिंडी लौट गया।
2.सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ 1955 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय लाहौर के एक पागलखाने के पागलों पर आधारित है। विभाजन के दर्द को बयां करती यह एक कालजयी कहानी है। मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में प्रवासन की पीड़ा पर फोकस किया गया है। यह काहनी विभाजन के समय लाहौर के एक पागलख़ाने के पागलों पर आधारित है और समीक्षकों ने इस कथा को पिछले 75 सालों से सराहते हु भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर एक “शक्तिशाली तंज़” बताया है।
3. खोल दो विभाजन के दौर की एक ऐसी ही कहानी है जिसे काल्पनिक रूप से मानवीय दुर्गुणों की गहराई के समानांतर बताया गया है जो 2012 में दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के दौरान भी देखी गई थी। यह लघुकथा सिराजुद्दीन के दृष्टिकोण से बताई गई है, जिसकी बेटी सकीना उस समय लापता हो जाती है। वे जिस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, उस पर दंगाइयों ने हमला कर दिया था। सिराजुद्दीन पाकिस्तान में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपनी बेटी की तलाश के लिए एक खोज दल बनाने के लिए कहता है। तब यह पता चलता है कि उसे खोजने के बाद, पुरुष खुद उसका बलात्कार करते हैं और उसे शरणार्थी शिविर के पास मरने के लिए छोड़ देते हैं, जिसमें सिराजुद्दीन रह रहा है।
इस नाटक के प्रस्तुति नियंत्रक कैलाश चोपड़ा, वंशिका शर्मा ,
मंच प्रबंधक कनिष्क शेखर शर्मा, संगीत संयोजन चारु भाटिया, प्रकाश परिकल्पना राजीव मिश्रा, कंटेंट क्रिएशन और मीडिया प्रमोशन वंशिका शर्मा, कनिष्क शेखर शर्मा, मंच कलाकार राहुल नांबियार, कनिष्क शेखर शर्मा, कपिल मंघनानी, मेंटोर रुचि भार्गव नरूला है।