दोस्तो, नमस्कार। यदि आप किसी से सम्मोहित नहीं होना चाहते या अप्रभावित रहना चाहते हैं या नहीं चाहते कि वह आप पर मानसिक रूप से दबाव बनाए तो एक ही काम कीजिए। आप जब भी उससे बात करें तो उसकी आंख में नहीं झांकिये। यथासंभव उसके चेहरे को नहीं देखिए। इधर उधर देखते हुए बात कीजिए। यदि आपको लगता है कि वह समझ सकता है कि आप उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दे रहे तो उसके चेहरे पर देखिए, लेकिन उसके होंठ, दंत पंक्ति, ठुड्डी, कान आदि पर नजर रखिए। उससे उसको लगेगा कि आप उसकी ओर देख रहे हैं, उसको तवज्जो दे रहे हैं। लेकिन भूल कर भी उसकी आंख में नहीं झांकिए। आप उसके आभा मंडल की गिरफ्त में आने से बच जाएंगे। वस्तुतः आंख ही वह खिडकी है, जिसके माध्यम से कोई अपनी भीतरी मानसिक षक्ति को आपकी ओर फेंकता है। और आंख ही वह खिडकी है, जिसके जरिए हम सामने वाले की मानसिक षक्ति को ग्रहण करते हैं। अगर हम आंख से आंख नहीं मिलाएंगे तो प्रभावित होने से बच जाते हैं। यह तथ्य उसी मूल मंत्र का हिस्सा है कि कोई भी आपको तभी सम्मोहित कर सकता है, जब कि आप उसके लिए तैयार हों। अगर आप सम्मोहित नहीं होना चाहते तो कोई भी आपको सम्मोहित नहीं कर पाएगा। इसका विपरीत तथ्य यह है कि अगर आप किसी को सम्मोहित करना चाहते हैं या उसे प्रभावित करना चाहते हैं तो बात करते हुए पूरे मनायोग से उसकी आंख में झांकिये। आंख की महत्ता को यूं भी समझ सकते हैं कि प्रेमी-प्रेमिका के बीच आंतरिक संवाद आंख के जरिए ही होता है। वे आंख के माध्यम से ही एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। आपको ख्याल में होगा कि यदि हम किसी को डराना धमकाना चाहते हैं तो षब्दों के साथ साथ आंख का ही उपयोग करते हैं।
