सात पीढी ही क्यों, आठ या नौ क्यों नहीं?

दोस्तो, नमस्कार। आपको जानकारी होगी कि हम पूर्वजों अथवा भावी पीढी के बारे में बात करते हैं तो सात पीढी का जिक्र आता है। इस सात के आंकडे के क्या मायने हैं? पीढी सात ही क्यों, आठ या नौ क्यों नहीं?
वस्तुतः सात पीढ़ी का उल्लेख खास तौर पर भारतीय संस्कृति, धर्म और सामाजिक परंपराओं में मिलता है। विद्वानों ने इसके पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण बताए हैं। सनातन धर्म के अनुसार कर्म और पाप-पुण्य का प्रभाव सात पीढ़ियों तक चलता है। अर्थात किसी व्यक्ति के कर्म उसके पूर्वजों की सात पीढ़ियों से प्रभावित होते हैं। और उसके वंशजों की सात पीढ़ियों पर भी असर डाल सकते हैं। इसी कारण तर्पण, श्राद्ध आदि में सात पीढ़ियों का स्मरण किया जाता है। आधुनिक आनुवंशिकी यानि जेनेटिक्स में भी माना जाता है कि किसी व्यक्ति के जीन का प्रभाव लगभग 5-7 पीढ़ियों तक साफ तौर पर रह सकता है। उसके बाद जीन के बदलाव इतने हो जाते हैं कि मूल प्रभाव क्षीण होने लगता है। इसलिए सात पीढ़ी एक प्राकृतिक चक्र की तरह समझा जाता है। पूर्व में विवाह और वंश परंपरा में भी यह नियम था कि एक ही गोत्र अर्थात में सात पीढ़ियों तक शादी नहीं करनी चाहिए, ताकि रक्त संबंध बहुत पास-पास न हों और वंश में आनुवांशिक दोष न आएं। इसी से स्वस्थ संतति यानि औलाद का विचार भी जुड़ा था। भारतीय दर्शन में सात के अंक को एक पवित्र और संपूर्ण संख्या माना जाता है, जैसे सप्तर्षि, सप्तलोक, सप्तस्वर, सप्तसागर आदि। इसीलिए सात पीढ़ी का भी विशेष महत्व बन गया। कुल जमा सात एक तरह का पूर्ण और संतुलित चक्र माना गया है। आठवीं पीढ़ी से असर इतना क्षीण हो जाता है कि उसे सामाजिक या धार्मिक जिम्मेदारी के दायरे में रखना आवश्यक नहीं समझा गया। इसी प्रकार विवाह में सात फेरे व सात जन्मों का साथ रहने के पीछे भी यही साइंस प्रतीत होती है।

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