दोस्तो, नमस्कार। कभी कभी कौतुहल होता है कि यह जगत जैसा हमें दिखाई देता है, क्या अन्य जीव-जंतुओं को भी वैसा ही दिखाई देता है? इस पर विज्ञान का मत है कि हर प्राणी को दुनिया अलग दिखाई देती है। इसका कारण यह है कि अलग-अलग जीवों की इन्द्रियाँ, दिमाग की संरचना और क्षमता अलग-अलग होती हैं। हम मनुष्य तीन रंगों (लाल, हरा, नीला) को देखने वाले ट्राइकोमैटिक दृष्टि वाले हैं। जबकि कुत्ते सिर्फ दो रंग (पीला और नीला) देख पाते हैं, बाकी रंग उन्हें धुंधले या ग्रे लगते हैं। इसी प्रकार मधुमक्खियाँ अल्ट्रावायलेट किरणें देख सकती हैं, जो हमें बिल्कुल भी नजर नहीं आतीं। उनके लिए फूल अलग चमकते हैं। सांप कुछ खास स्थितियों में इन्फ्रारेड किरणों से गर्मी भी देख सकते हैं। चमगादड़ इकोलोकेशन से देखता है यानी आवाज की गूंज से आकार-आकार पहचानता है। डॉल्फिन भी अल्ट्रासोनिक ध्वनियों से “दुनिया” का बोध करती हैं। हाथी धरती में कंपन सुनकर कई किलोमीटर दूर का आभास कर सकते हैं। कुत्तों की सूंघने की क्षमता हमसे हजारों गुना तेज होती है। उनके लिए गंधों की एक पूरी अलग “दुनिया” है। सांप अपनी जीभ से हवा में मौजूद कणों को पकड़कर “सूंघते” हैं। यानि हर जीव-जंतु की अपनी अनोखी इन्द्रिय-दृष्टि और अनुभूति होती है। इसलिए उनका “जगत” वैसा नहीं जैसा हमें दिखाई या सुनाई देता है। दुनिया वही है, लेकिन हर प्राणी का अनुभव अलग।