आपने रावण के दस सिरों के ऊपर एक सिर गधे का भी देखा होगा। क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों? वस्तुतः रावण को लेकर हमारे यहा कई तरह की मान्यताएं, पुराणकथाएं और लोककथाएं प्रचलित हैं। रावण के सिर पर गधा होना भी एक लोकमान्यता या रूपकात्मक व्याख्या है, उसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण या रामचरित मानस में नहीं है।
ज्ञातव्य है कि गधा भारतीय संस्कृति में प्रायः मूर्खता और हठ का प्रतीक माना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि रावण के दस सिरों पर उसके ज्ञान और विद्या के बावजूद मूर्खता का बोझ गधे के रूप में रहता था। यह बताने का संकेत है कि अत्यधिक ज्ञान होने पर भी यदि विवेक न रहे तो अंततः वह गधापन ही है। यह प्रतीक रावण के उस व्यवहार को दर्शाता है, जहां उसने सीता का हरण जैसा विनाशकारी काम किया और हनुमान द्वारा लंका जलाए जाने के बाद भी अपनी जिद नहीं छोड़ी।
लोककथाओं में कई बार रावण को दंभी और अभिमानी बताया गया है। वहां यह कल्पना की गई कि उसके दस सिरों के ऊपर गधे का सिर रखा है, ताकि लोग याद रखें कि इतना बड़ा ज्ञानी भी अपने अहंकार से गधे जैसा बन गया। एक मान्यता यह भी है कि रावण ने पिछले जन्मों में किसी ऋषि का अपमान किया था। शाप की वजह से उसके सिर पर गधे का प्रतीक चिह्न उत्पन्न हुआ, जो उसके अज्ञान और पापकर्म का स्मरण कराता है। लोक नाटकों, रामलीला और चित्रों में कलाकार कई बार रावण को हास्यास्पद बनाने के लिए गधे के सिर का उल्लेख करते हैं। यह धार्मिक ग्रंथों की बात नहीं, बल्कि लोकरीति और हास्य-व्यंग्य का अंश है।
कुल मिला कर रावण के सिर पर गधा होना कोई शास्त्रीय तथ्य नहीं, बल्कि लोककथाओं और रूपक की बात है। इसका संकेत यही है कि विद्या और शक्ति के बावजूद अहंकार और मूर्खता सबसे ऊपर बैठी थी।