मध्यमवर्गीय जनता को टेस्टिंग व अनावश्यक इलाज के बहाने लूट रहे निजी हॉस्पीटल

हेमन्त साहू
हेमन्त साहू

-हेमन्त साहू- ब्यावर। देश में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार एवं उसके विकास की प्रक्रिया के लिए आपका प्रयास काबिले तारीफ है। किन्तु साथ ही समूचे देश, प्रदेश के छोटे मोटे शहरो में घरेलु स्तर पर बड़े बड़े निजी हॉस्पिटल खोल कर व्यावसायिक लाभ के दृष्टिकोण से चल रहे गोरख धंधे के माध्यम से देश की मध्यम वर्गीय जनता को टेस्टिंग के बहाने,अनावश्यक इलाज के बहाने जिस प्रकार लूटने की मानसिकता जारी है,उस पर लगाम लगना आज बहुत जरुरी हो गया है! बहुत ही आसानी से ये घरेलु चिकित्साकेन्द्र लोगों की भावनाओं के सहारे रोगी के परिजनों की सालों साल की मेहनत से की गयी पसीने की कमाई और जमा पूंजी को नयी नयी तकनीकों के सहारे एक ही झटके में लूट लेते हैं वह एक प्रकार से धोखाधड़ी ही है !श्रीमानजी आज ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं,जिसमे रोगी के बचने की सम्भावना  (5प्रतिशत) भी नहीं होने के बावजूद उसे और उसके परिजनों को बिना मतलब लूटने के उद्देश्य से रोगी को आईसीयू में भर्ती कर लेते हैं और फिर रोगी को वेंटिलेटर पर रख देते हैं! पहले तो सिर्फ आईसीयू में भर्ती कर 5 या 7 दिनों में लाख पचास हजार का बिल बना देते थे,किन्तु अब रोगी को वेंटिलेटर पर रख देते हैं,जबकि चिकित्सक से जब जब भी पूछा जाता है की श्रीमानजी रोगी बच तो जाएगा ना,तो डॉक्टर ढुल मुल जवाब दे देते हैं,अक्सर 99 प्रतिशत मामलों में वेंटिलेटर पर रखे रोगी नहीं बचते और घरेलु हॉस्पिटलवाले रोगी को 15 से बीस दिन तक नकली धोंकनी जैसी मशीन यानि वेंटिलेटर पर रख कर उसे संताप तो देते ही हैं साथ में एक एक दिन का 30,40,50,हजार रुपये का बिल बना देते हैं! परिजन बेचारा मरता क्या नहीं करता की तरह अपने रोगी को, जैसा डॉक्टर बोलता है वैसे करने को बाध्य होता है! उसी प्रकार दिल के मरीजों के साथ होती है,ब्लोकेज के बहाने स्टंट लगाने के अलग अलग भाव बताये जाते हैं,एक स्टंट वाले को भी तीन स्टंट लगा देते हैं,और ये देशी है,ये विदेशी है के नाम से लूटने की प्रक्रिया जारी है,रोगी के परिजन तो क्या किसी को क्या मालूम किसका क्या रेट है!सुनने में आया है की इस समय घरेलु हॉस्पिटल के लिए उन्हीं डॉक्टरों की सालाना पैकेज (तनख्वाह) ज्यादा है जो हॉस्पिटल के लिए ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग और वेंटिलेटर द्वारा कमाई करवाते हैं! यानि मानविकता बिलकुल ख़त्म हो गयी है,धनवानों के लिए तो कोई समस्या नहीं,किन्तु बेचारा मध्यवर्गीय आदमी अपनी जिंदगी भर की कमाई को इन अस्पतालों की भेंट चढ़ाकर अपने प्रिय रोगी की लाश को लेकर जब घर आता है तो समाज में इन हॉस्पिटलों के प्रति घृणा पैदा होने के साथ साथ भय का वातावरण भी बन जाता है। जब रोगी के बचने की सम्भावना हो,उस समय में यदि वेंटिलेटर पर रखा जाए तो लोग फिर भी बर्दाश्त कर लेंगे,किन्तु 99 प्रतिशत मामलों में वेंटिलेटर पे रखा रोगी मरने के बाद ही घर लाये जा रहे हैं,ऐसी अनेक घटनाओं में लोगों को अक्सर जब किसी रोगी को वेंटिलेटर पर रखा गया है की खबर मिलती है तो आज के माहोल में समझ जाते हैं की अब यह रोगी नहीं बचेगा और ये सत्य भी है!श्रीमानजी एक तो हार्ट में स्टंट लगाने के मूल्य निर्धारित हो और यदि धोका धडी की बात नजर में आये तो उस हॉस्पिटल और डॉक्टर पर कड़ी कार्यवाही हो,और वेंटिलेटर पर रखने से पहले रोगी के बचने की सम्भावना 40,50 प्रतिशत हो ये सुनिश्चित किया जाये,परिजनों को इसका आश्वाशन दिया जाये,तभी रखा जाए वरना ये लूटने का गोरखधंधा चिकित्सा की आड़ में चलता रहेगा और लोगों की खून पसीने की कमाई इन धनाढ्य वर्गों की जेब भरती रहेगी!

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