कश्मीर में बदल रहा आतंक का चेहरा

terrorism-change-faces-in-kashmirश्रीनगर। कश्मीर में लगातार घटते आतंकवाद के दावों के बीच बढ़ रही आतंकी हिंसा को लेकर सुरक्षा एजेंसियां चिंतित हैं। इस चिंता की खास वजह आतंकी गतिविधियां न होकर आतंक का बदलता चेहरा है। यह चेहरा तब सामने आता है, जब किसी मुठभेड़ में मारे गए आतंकी की शिनाख्त होती है। किसी को यकीन नहीं होता कि मरने वाला उनके आसपास ही घूमने वाला शर्मीले स्वभाव का वह युवक है जो इंजीनियर था, डॉक्टर या फिर पढ़ा-लिखा कोई सामान्य युवक। इनमें से कई तो नाबालिग हैं।

आतंक का दामन थामने वाले ऐसे युवकों के परिजनों को भी पता नहीं होता कि जिस बेटे को वह अपना पेट काटकर एक काबिल इंसान बनाना चाहते हैं, वह आतंकी संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों के बीच कोड नाम से एक अलग पहचान रखता है। कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए बीते तीन सालों से सिरदर्द बना बुरहान एक स्कूल प्रिंसिपल का ग्रेजुएट बेटा है। उसके साथियों में शामिल रफीक, जो पिछले माह त्राल में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया, एक सरकारी कर्मचारी का बीटेक बेटा था। उसके परिजनों को उसके मारे जाने के बाद पता चला कि वह इंजीनियर नहीं, आतंकी बन चुका था।

2008 के बाद लश्कर, जैश और हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल हुए स्थानीय आतंकियों में से ज्यादातर पढ़े-लिखे टेक्नोक्रेट युवक हैं। कोई इंजीनियर है तो कोई डॉक्टर, कोई लॉ ग्रेजुएट। संबंधित सूत्रों की मानें तो बीते तीन साल में आतंकी संगठनों में शामिल हुए युवाओं में से लगभग 50 ऐसे हैं जो च्च्छी पृष्ठभूमि के हैं।

गत सप्ताह शोपियां में मारा गया हिज्ब कमांडर सज्जाद यूसुफ इस्लामिक स्टडीज में परास्नातक और एमसीए था। पिछले साल सोपोर में मारे गए स्थानीय आतंकियों में शामिल अतहर यूसुफ डार कामर्स ग्रेजुएट और कंप्यूटर एक्सपर्ट था। उमर अहसान भट्ट उर्फ खातिब जंतु विज्ञान में परास्नातक कर रहा था, जबकि मुजमिल भी स्वास्थ्य विभाग में थियेटर असिस्टेंट था। दक्षिण कश्मीर में मारे गए आतंकियों में शामिल जावेद मलिक और जोहर अली इंजीनियर, मसीउल्लाह एमटेक, नईम अहमद मीर बीटेक, अल्ताफ अहमद उर्फ गौहर कंप्यूटर इंजीनियर और मुदस्सर डॉक्टर था। जान मुहम्मद अहंगर उर्फ हमजा भी मैकेनिकल इंजीनियर था।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि स्थानीय आतंकियों की यह पौध 2008 के बाद ही तैयार हुई है। इनमें कई तो नाबालिग हैं। शोपियां में मुहम्मद आमिर नामक एक आतंकी 16 साल का है। उसकी तरह अब्बास रेशी, इनाम-उल-हक और आशिक लोन की आयु भी 16 से 25 साल के बीच है। इस नई पौध में से ज्यादातर का कोई भी आतंकी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। ये युवा इस्लामिक कट्टरवाद से प्रभावित होकर पूरी तरह सोच समझकर आतंक की राह पर निकले हैं।

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