जांबाज व्यक्तित्व केसरसिंह जी कोठारी

kesarsing kothariराजकीय कर्मचारी या अधिकारी का हौसलापूर्ण कार्य, वीरता का प्रदर्शन, पब्लिक को भयमुक्त रखने वाले को कौन परखता था। उस समय तो राजनेता अपना वर्चस्व बनाने में लगे थे। वे अपनी पैठ बनाने में व्यस्त थे। उन्हें इस प्रकार का कतई ध्यान नहीं था कि स्वतंत्र देश में कौन अच्छे कार्य को अंजाम देकर देश का मान सम्मान बढ़ा रहा है और कौन अपनी जान की परवाह न कर देश और समाज की सेवा में लगा हुआ है। स्वतंत्र भारत की नई नई सरकार की आंखे जब खुली, जब सन 1920 में चीन ने हमारे देश पर आक्रमण कर दिया और मुंह की खानी पड़ी।
देश की ऐसी स्थिति में भी पुलिस सेवा में कई जांबाज व्यक्तित्व अपनी जान पर कुर्बान कर देते थे। और देश व समाज की सेवा व सुरक्षा में पीछे नहीं रहे थे। ऐसे ही एक जांबाज व्यक्तित्व था- श्री केसर सिंह जी कोठारी, जिन्होंने शाहपुरा कस्बे और पूरी तहसील में अपने पद से अधिक गरीमापूर्ण कार्य कर पुलिस विभाग का विश्वास आम जनता में बनाये रखा था।
लगभग 55 वर्ष पूर्व भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा कस्बे में श्री केसरसिंह जी कोठारी थानेदार थे। वे उंट या घोड़े पर सवार हो अपने हलके की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते थे। वे इस कार्य में न रात देखते और न ही दिन। उनहें देखकर कुख्यात डाकू, चोर, लफंगे, गुंडे, बदमाश छिप जाते थे या उनके सामने आत्मसर्मपण कर देते थे। उन्होनें उस समय क्षेत्र में व्याप्त डाकुओ के आतंक का भी कई बार सामना किया। कुख्यात डाकू मोड़सिंह, मानसिंह आदि ने उनका लोहा मान लिया था। कई डकैतों को उन्होंने पकड़ा भी और सजा भी दिलायी।
आजादी के बाद एक बार 6 डाकुओ को एक साथ पकड़ने पर उस समय पुलिस विभाग ने उन्हें सिर्फ एक सौ रूपये पुरूस्कार में दिये थे। इसी प्रकार 1956 में डाकू हनुमान सिंह को पकड़ने पर उन्हें सिर्फ 51 रूपये का पुरूस्कार मिला था। ये पुरूस्कार उंट के मुंह में जीरा था। इन पुरूस्कारों के बजाय उन्हें इस जांबाज कार्य के बदले उनहें पदोन्नति दी जाती तो और अधिक कार्य करने का लाभ मिलता।
शाहपुरा के श्री सगतमल जी डांगी व श्रीमती सुगनकंवर की पहली संतान थी लरूबाई। इनका विवाह मसूदा अजमेर निवासी श्री केसरसिंह जी कोठारी से हुआ था। शाहपुरा में वे थानेदार के नाम से जाने जाते थे। मुझे अचछी तरह से स्मरण है कि जब फुफासा. श्रीकेसर सिंह जी कोठारी उंट पर बैठकर अपने ससुराल डांगी मोहल्ले में पधारते थे तो मोहल्ले के सभी मौतबीर व्यक्ति उनके स्वागत और समाचार जानने के लिए एकत्रित हो जाते थे। डाकूओं की कई घटनाएं वे सुनाते, जिन्हें सुनकर हमारे रौंगटे खड़े हो जाते थे।
मसूदा का ओसवाल जैन समाज के सुप्रसिद्व कोठारी परिवार में श्री माधवसिंह जी कोठारी के पितृत्व व श्रीमती पेफकंवर के मातृत्व में मसूदा में ही आपका जन्म हुआ। आप चार भाई थे। प्रथम श्रीदलपतसिंह जी उदयपुर में मेजर रहे। द्वितीय श्री दरियावसिंह, तहसीलदार थे। तृतीय श्री गुलाबसिंह जी थानेदार थे। आपके दो बहिन श्री मती फिरोजकंवर सांगानेर में व श्रीमती संतोशकंवर मांडलगढ में ब्याही थी।
श्रीकेसर सिंह जी का भरा पूरा परिवार है। तीन संतान है। पुत्रों में श्री नरेन्द्रसिंह जयपुर में और श्री लहर सिंह जी भीलवाड़ा में रहते है। एक मात्र पुत्री श्रीमती विमला लोढ़ा जो जयपुर में रहती है। इन्हीं के सुपुत्र श्री अनिल लोढ़ा ख्यातनाम पत्रकार है जिन्होंने अपने नानाजी की स्मृति में शाहपुरा में प्रतिवर्ष एक पत्रकार साथी को शहीद केसरसिंह कोठारी स्मृति पुरूस्कार देने की घोषणा की, इसके तहत प्रथम पुरूस्कार 3 अगस्त 2014 रविवार को शाहपुरा में आयोजित प्रेस क्लब शाहपुरा के वार्षिकोत्सव समारोह में रामस्नेही संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगतगुरू आचार्यश्री स्वामी रामदयाल महाराज के सानिध्य में प्रदान किया जायेगा।
उस समय शाहपुरा से 30 किमी दूर बनास नदी के किनारे पंडेर ग्राम की बाहरी बस्ती में डाकुओं, सांसी, कंजरों का भारी आंतक था। शाहपुरा से जहाजपुर जाने वाले किसी भी प्रकार के वाहन पंडेर से होकर रात्रि में नहीं आ जा सकते थे। यहां तक कि पैंसेजंर बस भी रात में नहीं चलती थी। अगर कोई टक अनजाने में रात्रि में उस मार्ग से निकल जाती तो उसका माल वे बड़ी तकनीक से उतार लेते थे। ऐसे खतरनाक बस्ती में भी थानेदार सा. श्री केसरसिंह कोठारी ने समझा बुझा कर सुधारा था। और कईयों को पकड़ा था। भीलवाड़ा जिले भर में थानेदार कोठारी सा का दबदबा और रौब था।
इतना कुछ होते हुए भी एक दिन थानेदार सा. उन डाकुओं से धोखा खा गये और अपनी जान गंवा बैठे। दिनांक 4 जून 1961 को डाकूओं ने उनका आत्मसर्मपण करने का प्रस्ताव भेजा और समझौते की बाते तय करने के लिए उन्हें ससम्मान बुलवाया। थानेदार श्री केसर सिंह जी कोठारी समझौते के लिए डाकूओं के आवास की ओर चल दिये लेकिन उनके साथ वहां क्या हुआ, क्या बाते हुई, क्या शर्ते तय हुई कोई पता नहीं चल सका। जंगल में क्या हुआ, कोई नहीं जानता। पर वे उस रात वापस नहीं लौटे और उनका शव ही शाहपुरा पहुंचा।
बाद में हुई चर्चाआंें में ऐसा लगा कि उन्हें डाकूओं ने बहुत शराब पिलाई और उन्हांेंने अपना होश खो दिया। चर्चा यह भी सुनी गई कि पंडेर ग्राम के पास जंगल में जिधर से कच्चा मार्ग था, डकैतों ने एक खड्डा खोदकर उस पर दरी बिछा दी। थानेदार कोठारी सा जैसे ही उस पर बैठे, धड़ाम से खड्डे में जा गिरे और डकैतों ने उनको दबोच कर उनकी हत्या कर दी। ऐसा भी सुना गया कि डकैतों ने पूरी तरह से उन्हें पकड़ने के लिए चारों ओर से बाड़ बना दी थी जिसमें वो फंस गये और मार डाले गये। लेकिन समझ में नहीं आता कि ऐसा जांबाज व्यक्तित्व कैसे डाकुआं, कंजरों के बहकावे में आ गए और उस गिरोह में उलझ गये। यह समाचार ज्यौंही फैला, सबने आश्चर्य किया। उनकी वीरता और दिलेर सेवाओं की सर्वत्र प्रशंसा हुई लेकिन उस समय की राज्य सरकार ने न तो मरणोंपरंात तमगा बख्शा और न ही उनकी प्रशंसा में समाचार पत्र रंगे गये। उनके परिवार को फैमिली पेंशन भी नहीं मिली और परिवार के एक सदस्य को अनुकपात्मक नियुक्ति नौकरी भी नहीं मिली।
यह वीर जांबाज की अतुलनीय शहादत थी, जिसे आज देश भूल गया है।
-राजेंद्र प्रसाद सिंह डांगी
डांगी मौहल्ला, शाहपुरा जिला भीलवाड़ा
मोबा. 91 9413054966

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