शिवरात्री के सम्बन्ध में कुछ रोचक जानकारियां

shivji 7 bभगवान शंकर के नाम का अर्थ—– शिव के ‘श’ का अर्थ है कल्याण और ‘कर’ का अर्थ है करने वाला | शिव, अद्वैत, कल्याण- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं | शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं. ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं

फाल्कुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को क्यों कहते हैं महाशिवरात्रि?——-

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन मन में सवाल उठता है कि क्यों इसी दिन शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है और क्यों इसी दिन को महाशिवरात्री कहते हैं ?

ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी। मध्यरात्रि में भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। ईशान सहिंता के अनुसार- फाल्गुन चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में भगवान शंकर लिंग के रूप में अवतरित हुए। चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में महेश्वर के निराकार ब्रहम स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है |

इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान स्वरूप(आकार) प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – श्री ब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया इससे ब्रह्मा-विष्णु के मध्य में संघर्ष छिड़ गया। वे दोनोंअपना अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए आमादा हो उठे। तब श्रीशिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। श्रीशिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। श्रीविष्णु और श्रीब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। श्रीविष्णु नीचे पाताल की तरफ इसे जानने गए और श्रीब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनका क्रोध भी समाप्त हो चुका था तथा तब ब्रह्मा-विष्णु दोनों को भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब ब्रह्मा-विष्णु ने अपने-अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब श्रीशिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।

कहा जाता है कि शिवरात्री के दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। (भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्वपूर्ण दिन है )।

ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था। भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया।

आयुर्वेद के नजरिये से महाशिवरात्रि का महत्व?—–

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है, अगर आयुर्वेद के नजरिये से देखा जाए तो सावन में दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये क्‍योकि इसमें वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। शरीर में वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ पैदा होती हैं। तभी हमारे पुराणों में सावन के समय शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई थी क्‍योंकि सावन के महीने में गायें या भैंसें घास के साथ- साथ कई तरह के कीडे़-मकौड़ों का भी सेवन कर लेती हैं। जो दूध को हानिकारक बना देता है इसलिये सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया था ।
जे.के. गर्ग

सन्दर्भ—References——-cafe Hindu.com,sadar India People patrotic Plateform-S Mathur,Poonm Negi,Vinayk Vastu Times,Web Duniya, Aajtak, India Today, Wikipediya etc etc

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