शिव और शंकर में अंतर

shivji 7 bshiv lingलोगों में शिव और शंकर को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। इसे हर किसी को समझने की जरूरत है। इसे समझने के बाद ही श्रद्धालुओं को उसके अनुरूप ही पूजा अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान करना चाहिए।

ऐसे समझें शिव और शंकर को
शिव ज्योति बिंदु है, जबकि शंकर का शारीरिक आकार है। शिव परमात्मा सारी सृष्टि का रचयिता है, जबकि शंकर स्वयं शिव की रचना है। शिव को कल्याणकारी कहते हैं, जबकि शंकर को संहारकारी माना जाता है। शिव परमधाम वासी हैं, लेकिन शंकर सूक्ष्मवतन वासी हैं। शिव की प्रतिमा शिवलिंग के रूप में बताते हैं जबकि शंकर की प्रतिमा शारीरिक आकार की, शिव परमात्मा तो स्वयं रचयिता हैं, दाता हैं, उसे किसी की तपस्या करने की आवश्यकता नहीं, जबकि शंकर को सदा माला हाथ में लिए तपस्वी रूप में बताते हैं। शिव की प्रतिमा शिवलिंग सदा शंकर की प्रतिमा के आगे ही दिखाया जाता है। इसका अर्थ है शंकर सदा शिव की तपस्या करता था। क्योंकि यदि शिव व शंकर एक होते तो शंकर क्या खुद की ही तपस्या कर रहा है। क्या कभी कोई स्वयं, स्वयं की ही तपस्या करेगा क्या ? यदि शंकर स्वयं परमात्मा हैं तो उसे किसी की तपस्या करने की क्या जरूरत? शिव की प्रतिमा को शिवलिंग कहते हैं, शंकर लिंग नहीं है। परमात्मा शिव के अवतरण निवास को शिवरात्रि कहते हैं न कि शंकर रात्रि। इसमें एक और अंतर है-ब्रह्मम देवाए नम:, विष्णु देवाए नम:, शंकर देवाए नम: लेकिन शिव के लिये सदा शिव परमात्मा नम: कहा जाता है, कभी भी शिव देवताये नम: नहीं कहते।

परमात्मा के तीन दिव्य कर्तव्य हैं
स्वयं शिव परमात्मा इन तीनों देवताओं द्वारा अपने तीन कर्तव्य कराते हैं। इसमें प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की स्थापना, विष्णु द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की पालना तथा शंकर द्वारा पुरानी कलयुगी सृष्टि का विनाश। इससे जाहिर होता है कि शिव परमात्मा इन तीनों आकारी देवताओं के भी रचयिता हैं। इसलिए शिव परमात्मा को त्रिमूर्ति भी कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि शिव और शंकर में महान अंतर है।
-ब्रह्मम कुमार रामसिंह, दिव्य दर्शन भवन रेवाड़ी।

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