मकर संक्राति : विभिन्न प्रान्तों में पर्व को मनाने के विभिन्न तरीके

तिल संक्राति

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल,चावल,उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाई जाएँ,किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को“तिल संक्राति”के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के गोल-गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं।ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है;गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है।मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है,वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं |
खिचड़ी संक्रान्ति
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट,पाचक व ऊर्जासे भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगा नदी मेंस्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़,चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है,इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।
विभिन्न प्रान्तों मेंमकर संक्राति के विभिन्न तरीके—
भारत के अलग-अलग प्रांतों में इस त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय एकता,समानता व आस्था दर्शाना होता है.
पंजाब मे संक्रांति के एक दिन पूर्व में लोहड़ी मनाई जाती है। लोग घर-घर जाकर लकडिय़ां एकत्रित करते हैं और फिर लकडिय़ों के समूह को आग के हवाले कर मकई की खील,तिल व रवेडिय़ों को अग्न देव को अर्पित कर सबको प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है,क्योंकि इन दिनों में खिचड़ी खाई भी जाती है और दान में भी दी जाती है।
‍मध्य प्रदेश में इस त्योहार को गिल्ली-डंडे के खेल के रूप में मौज-मस्ती के रूप में इस त्योहार को मनाया जाता है, इस त्योहार पर परिवार के बच्चे से लेकर बूढ़े सभी एक साथ गिल्ली-डंडे के इस खेल का आनंद उठाते हैं |
उत्तर प्रदेश व बिहार में संक्रांति के दिन देसी घी कोखिचड़ी में डाल कर खाने का प्रचलन है |
महाराष्ट्र और गुजरात में मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घर के सामने रंगोली अवश्य रचते हैं। फिर एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हैं। साथ ही कहते हैं- तिल और गुड़ खाओ और फिर मीठा-मीठा बोलो।
मकर सक्रांति को आसाम में माघ बिहु या भोगाली बिहु के रूप में मनाया जाता है। यहां चावल से बने व्यंजन प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं।
राजस्थान,गुजरात मे इस दिन आसमान पतंगो से ढक जाता है |गुजरात में मकर सक्रांति के दिन पतंगबाजी के आयोजन में इसी प्रकार का सांप्रदायिक सद्भाव देखने को मिलता है. यहाँ सुबह से ही सभी लोग अपने घरों की छतों पर जमा होकर पतंगबाजी करके खु‍शी व उल्लास के साथ इस त्योहार का भरपूर आनंद उठाते हैं | लाल,हरी,नीली,पीली आदि रंग-बिरंगी पतंगें जब आसमान में लहराती हैं तो ऐसा लगता है मानो इन पतंगों के साथ हमारे सपने भी हकीकत की ऊँचाईयों को छू रहे हैं और हम सभी सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे की पतंगों के पेंच लड़ा रहे हैं|
केरल में मकर-सक्रांति
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है,जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा‘मकर ज्योति’दिखाई पड़ती है।
कर्नाटक में मकर-सक्रांति
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी,ईख,सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
दक्षिण भारत में दूध और चावल की खीर तैयार कर पोंगल मनाया जाता है |
प्रस्तुती —डॉ. जे.के गर्ग
सन्दर्भ—विकिपीडिया,भारत ज्ञान कोष,गूगल सर्च आदि
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